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बिहार: गैंगरेप पीड़िता को ही जेल भेज दिया

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही यह दावा करते हों कि बिहार में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी है, लेकिन कुछ घटनायें हमेशा उनके इस दावे पर सवाल उठाते रहते हैं। ताज़ा घटना सीमांचल के अररिया ज़िले की है। अक्लियत समाज की बेहद ग़रीब बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ, थाने में शिकायत भी दर्ज हुई, लेकिन जब यह मामला ज़िला अदालत में पहुँचा तब उस पीड़ित बच्ची का सामना न्यायिक व्यवस्था की अड़चनों से हुआ। वहाँ और दुर्भाग्य उसका इंतज़ार कर रहा था। ज़िला अदालत में बयान दर्ज कराने के बाद पीड़िता समेत दो अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को न्यायालय की अवमानना के आरोप में जेल भेज दिया गया। 

इस मामले में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पुष्कर कुमार का कहना है, 'माननीय न्यायालय ने ही मामला दर्ज कराया है और उसी के आदेश के तहत यह कार्रवाई की गयी है। दुष्कर्म के मामले में एक अभियुक्त को जेल भेज दिया गया है। दूसरों पर पुलिस की अनुसंधान प्रक्रिया जारी है'।

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जब पीड़िता ही जेल में है तो बाक़ी की क़ानूनी प्रक्रिया कैसे पूरी की जायेगी, इस सवाल पर एसडीपीओ पुष्कर कुमार का जवाब था, 'पीड़िता का बयान पुलिस ने पूर्व में ही दर्ज कर लिया है। जब वो बाहर आएँगी तब उसी बयान के आधार पर आगे की कार्रवाई की जायेगी'।

अदालत ने पीड़िता से धारा 164 के तहत बयान के बाद तीन लोगों के ख़िलाफ़ न्यायिक कार्य में बाधा डालने, ड्यूटी कर रहे सरकारी अधिकारियों पर हमला करने, अदालती कामों में लगे कर्मियों की बेइज्जती करने और अदालत की अवमानना करने का आरोप लगाया और महिला थाना कांड संख्या 61/20 दर्ज कराकर पीड़िता समेत सामाजिक कार्यकर्ता कल्याणी बडोला और तन्मय निवेदिता को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। 

फ़िलहाल तीनों दलसिंह सराय जेल में बंद हैं। इस मामले में जब पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार को संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि वे स्तब्ध हैं। उनके अनुसार, 'क़ानून कहता है कि निचली अदालतों के समक्ष जब भी कोर्ट के आदेश की अवमानना के संबंध में कोई बात आती है तो संबंधित निचली अदालत उस मामले को उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाएगी। अदालत की अवमानना के इस मामले में जिस तरह से जेल भेज दिया गया है वह प्रक्रिया कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट के प्रावधान के ही विरूद्ध है'।

इस मामले को लेकर राज्य भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं में रोष का माहौल है। वे कहते हैं कि गैंगरेप पीड़िता एक तो कभी न भरने वाले घाव से गुज़र रही है और ऊपर से उसे जेल भेज दिया गया है।

सामाजिक संस्था जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष रंजन का कहना है, 'दुष्कर्म पीड़िता अपनी मददगार की मौजूदगी में धारा 164 के तहत लिखित बयान पढ़वाना चाहती थी लेकिन, यह बात मजिस्ट्रेट साहब को नागवार लगी और पीड़िता समेत दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई कर दी। उनपर आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के साथ आईपीसी की धारा 188 भी लगायी गयी है, जिसके तहत उनपर महामारी रोग अधिनियम के अंतर्गत भी कार्रवाई की जा सकती है'। पीड़िता अररिया ज़िले की मूल निवासी है जबकि दोनों सामाजिक कार्यकर्ता जन जागरण शक्ति संगठन से जुड़ी हैं और मामले में पीड़िता की मददगार भी हैं।

संगठन से जुड़े आशीष रंजन बताते हैं कि, 'छह जुलाई को 22 वर्षीय युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। युवती संगठन के लोगों से परिचित थी और घटना के बाद उसने कल्याणी से फ़ोन पर बात की थी। पीड़िता डरी-सहमी थी और वह अपने घर नहीं जाना चाह रही थी। वह कल्याणी के साथ ही रहने लगी।

घटना के दूसरे दिन सात जुलाई को महिला थाने में शिकायत दर्ज करायी गयी। अनुसंधान के क्रम में पुलिस ने पीड़िता से कई बार पूछताछ की।

संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बार-बार एक ही घटना और उससे जुड़े स्थलों के निरीक्षण के बाद पीड़िता मानसिक रूप से बेहद परेशान सी हो गयी थी। उधर उसपर आरोपी पक्ष की ओर से लगातार शादी करने का दबाव भी बनाया जा रहा था। 

कोर्ट में कैसे चला घटनाक्रम?

बीते शुक्रवार 10 जुलाई को अररिया ज़िला न्यायालय के मजिस्ट्रेट मुस्तफा शाही के समक्ष उसका बयान दर्ज किया गया और उसपर हस्ताक्षर करने को कहा गया। समूची प्रक्रिया घंटों चली। 

आशीष के अनुसार, 'उस समय अदालत कक्ष में संगठन का कोई सदस्य मौजूद नहीं था। इसी बीच पीड़िता कोर्ट रूम से बाहर आकर कहती है कि वह बयान उसे समझ में नहीं आ रहा है और इसलिये उसने उसपर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। इस समय वह कल्याणी को बार-बार बुलाने को कह रही थी'।

आशीष आगे कहते हैं कि, 'झुंझलाई पीड़िता से अदालत के अनुसंधान अधिकारी ने समझा-बुझाकर उससे हस्ताक्षर ले लिये। और जब वह बाहर निकली तो बेहद नाराज़ थी। उसने शिकायत भरे लहजे में कहा कि आप लोग अंदर क्यों नहीं थे। वहाँ मुझे आपकी ज़रूरत थी। तब उसे समझाया गया कि 164 का बयान निजी बयान होता है और उस दौरान वहाँ कोई और नहीं रह सकता'।

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वह कहते हैं कि, 'उधर पीड़िता द्वारा कल्याणी के नाम का बार-बार ज़िक्र करने की वजह से उसे कोर्ट रूम में तलब किया गया। अदालत ने उससे उसका परिचय जानना चाहा और सवाल किया कि आप कौन हैं कि बिना आपकी उपस्थिति के पीड़िता कोर्ट को भी सुनना नहीं चाह रही है। अंदर से तेज़ आवाज़ आ रही थी और इसी बीच तन्मय भी न्यायालय कक्ष में चली गयीं। दोनों ने अपनी बात रखी और कहा कि जब पीड़िता चाहती है कि उसका बयान पढ़कर उसे सुना दिया जाये तो ऐसा करने में हर्ज क्या है। इसपर जज साहब बिफर गये, थाने को फ़ोन हुआ और तीनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया'। कोर्ट की कार्रवाई से सकते में आये आशीष कहते हैं- 

गैंगरेप की पीड़िता न्यायालय से न्याय के लिये गुहार लगाती है और कोर्ट ही उससे और उसकी मदद को आगे आये लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर देता है। क्या यह तर्कसंगत है।


आशीष रंजन, सामाजिक कार्यकर्ता, जन जागरण शक्ति संगठन

क्या है मामला?

दरअसल, इसी माह की छह जुलाई को अररिया ज़िले में एक बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया। इसकी शिकायत घटना के दूसरे दिन महिला थाना में की गयी और कांड संख्या 59/ 2020 दर्ज हुई। 

थाने में दर्ज शिकायत में कहा गया कि, 'छह जुलाई की शाम साहिल ने मुझे (पीड़िता) मोटरसाइकिल चलाना सिखाने को बुलाया। मेरा जाने का मन नहीं था, लेकिन बार-बार ज़िद करने की वजह से बिना मन के उसके साथ चली गयी। स्कूल कैंपस में थोड़ी देर बाइक सीखने के बाद मैंने कहा कि अब देर हो रही है और वह मुझे घर छोड़ आये। लेकिन, घर छोड़ने की बजाय वह मुझे नहर के समीप सुनसान सड़क पर ले गया जहाँ तीन और अज्ञात लोग थे। मुझे अगवा कर लिया गया और सुनसान जंगल में सभी ने बलात्कार किया। देर रात उसे नहर के समीप छोड़ दिया गया'। यहाँ से उसने कल्याणी को फ़ोन किया जिसके यहाँ वह काम करती है। कल्याणी उसे अपने साथ घर लेकर आयी।

दर्ज शिकायत में पीड़िता ने यह भी कहा है कि साहिल की मौजूदगी में ही उसे अगवा किया गया था और उसी ने यह साज़िश रची थी। उसने शिकायत में कहा है कि लाख मिन्नतों के बावजूद घटना के बाद उसने उसकी कोई मदद नहीं की और बाइक से वह चला गया।

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नीरज सहाय
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