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कोरोना: बारूद के ढेर पर बैठा है बिहार, वायरस से कैसे लड़ेगी सरकार?

बिहार की 12 करोड़ आबादी कोरोना जैसी बीमारी से कैसे लड़ेगी? महामारी शैतान की तरह चमक रही है। वह हमारे छतों पर मंडरा रही है। क्या पता वह हमारे घरों में दाखिल होकर हमारा इंतजार कर रही हो! हम बारूद की ढेर पर बैठे हैं। 

अतीत ख़ुद को दुहरा रहा है?

अगर हम अपने महामारी का इतिहास देखें तो पहले दुनिया को प्लेग ने तबाह किया था। प्लेग ने इटली को तहस नहस कर दिया था। सबसे ज़्यादा तबाही रोम और पाविया में हुई थी। हमारे देश ने भी इसे भुगता था। प्लेग इतना भयंकर था कि लोगों को दफ़नाने के लिए जिन्दा लोगों की तादाद कम थी।
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आज फिर अतीत हमें दुहरा रहा है। इस बीमारी से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है। बिहार के लिए और भी मुश्किल है इस बीमारी से लड़ना। बिहार पहले से ही बीमार प्रदेश रहा है। अगर इस बीमारी ने उसे अपनी चपेट में लिया तो इस प्रदेश को बचाना मुश्किल होगा।

सरकार की ‘ठहरो और इंतजार करो’ की नीति बिहार की जनसंख्या को मौत के हवाले कर देगी। यहाँ पहले से ही डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है, अस्पताल की हालत ख़राब है, स्वास्थ्य की सुविधा चरमराई हुई है।

क्या कहते हैं आँकड़े?

आँकड़े बताते हैं कि १२ करोड़ की आबादी में सिर्फ 6,250 लोगों की जाँच हुयी, जिसमें 64 केस पॉजिटिव पाए गए। इनमें से 29 मामले सिर्फ एक ज़िला सिवान से हैं। इसके अलावा मुंगेर-बेगूसराय में सात-सात मामले पाए गए। इसी तरह  पटना-गया में कोरोना संक्रमण के पाँच-पाँच मामले पाए गए। 

क्या ये आँकड़े हमें आश्वस्त कर सकते हैं कि बिहार कोरोना से सुरक्षित है? जरा सोचिये, अगर बड़े पैमाने पर टेस्ट हुए और मरीजों की संख्या आंकड़ों को पार कर गयी तो क्या होगा?
क्या बिहार सरकार तैयार है इस हमले से मुक़ाबले के लिए? बिना किसी तैयारी के आप इतनी बड़ी जंग कैसे लड़ेंगे?

कोरोना के बीच चमकी का हमला

एक तरफ कोरोना है दूसरी तरफ चमकी बुखार ने फिर बच्चों पर हमला किया है। मुज़फ्फ़रपुर में एक बच्चे की मौत हो चुकी है। पिछले साल इस बीमारी से 200 बच्चों की मौत हुई थी।
अब कोरोना ने हमला किया है। इस तपती हुयी गर्मी में भी लोग उमड़ पड़े हैं जाँच के लिए, पर इनके पास कोई इंतजाम नहीं है। बाहर से हज़ारों की संख्या में आये प्रवासी मज़दूर किस हाल में हैं, यह कहना मुश्किल है। लोग अभी घरों में बंद हैं जब वे बाहर आयेंगे तो क्या कोरोना भाग चुका होगा?

 ‘रैपिड टेस्ट किट’

केन्द्र सरकार ने ‘रैपिड टेस्ट किट’ से कोरोना के मरीजों को जाँच करने की इजाज़त दी है। बिहार सरकार ने केंद्र से 50 हज़ार किट की माँग की है, पर अभी तक किट नहीं भेजा गया है।

आईसीएमआर से बिहार सरकार ने 5 और टेस्ट केंद्र खोलने की इजाज़त मांगी है जो अभी मिली नहीं है। सरकार की इस तैयारी से बीमारी को विदा करना नामुमकिन है।
कोरोना की वजह से सरकार ने सारे अस्पतालों की आउटडोर सेवा बंद कर दी है। निजी अस्पतालों के भी आउटडोर बंद हैं। ग़ैर कोरना मरीजों को काफी परेशानी हो रही है।
कैंसर, डायबिटीज़, गर्भवती महिलाओं का रूटीन चेकअप और गुर्दे की बीमारियाँ ऐसी हैं, जिसे नियमित डॉक्टरों की देख रेख में रहना होगा। सरकार के इस आदेश के कारण उनकी हालत ठीक नहीं है।

निजी अस्पताल के डॉक्टरों के सामने यह समस्या है कि सरकार उन्हें मास्क, ग्लव्स, पीपीई उपलब्ध नहीं करा पा रही है और ये चीजें बाज़ार में भी नहीं मिल रही हैं।
अति कुपोषित बच्चों का एनआरसी सेंटर बंद है। इन हालातों में हम कैसे एक स्वस्थ समाज की कल्पना कर सकते हैं? कैसे हम कोरोना जैसी महामारी से लड़ सकते हैं?

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