कभी बिहार की चुनावी रणनीति में अच्छी पकड़ रखने वाली वामपंथी पार्टियाँ अब बहुत चर्चा में नहीं रहती हैं लेकिन आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में अगर महागठबंधन की गोटी लाल होती है तो इसमें उनका और खास कर भाकपा माले का विशेष योगदान रहने की संभावना है। सीट-बंटवारे समझौते में उनकी संयुक्त हिस्सेदारी लगभग तीस मानी जा रही है।
बिहार चुनाव में लेफ्ट पार्टियों के सक्रिय होने से महागठबंधन को मिल सकता है बड़ा फायदा। सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई(एमएल) की भागीदारी से समीकरण कैसे बदलेंगे?

महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अब तीन हफ्ते ही बचे हैं और आगामी 6 और 11 नवंबर को मतदान के साथ 14 नवंबर को यह साफ हो जाएगा कि बिहार में एनडीए की सरकार रहती है या महागठबंधन को मौका मिलता है। राजनीतिक विश्लेषक यह भी कहते हैं कि एक जमाने में लालू प्रसाद ने वामपंथी दलों को कमजोर करने की कोशिश की लेकिन अब वह और उनकी पार्टी उन्हें वामपंथी दलों के सहारे बिहार में विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे में जो चुनावी मैदान-ए-जंग तैयार हुआ है उसमें एक तरफ़ तो बिना किसी वामपंथी दल वाला एनडीए है जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी के पास है। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन या महागठबंधन है जो वामपंथी दलों की मदद से मजबूत चुनौती दे रहा है।


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