बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार के जेडीयू में उथल-पुथल है, 11 नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। क्या यह बगावत का संकेत है या रणनीतिक सफाई?
बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक दो सप्ताह पहले जनता दल यूनाइटेड ने 11 नेताओं को पार्टी से निकाल दिया है। क्या यह बर्खास्तगी जेडीयू की कमजोर होती पकड़ का संकेत है? यह कदम न केवल पार्टी की आंतरिक अनुशासनहीनता को दिखाता है, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सियासी मजबूती पर भी सवाल खड़े करता है।
जेडीयू द्वारा जारी बयान में कहा गया कि ये 11 नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और पार्टी की विचारधारा का उल्लंघन कर रहे थे। निष्कासित नेताओं में पूर्व मंत्री शैलेश कुमार (जमालपुर से स्वतंत्र उम्मीदवार), पूर्व विधायक श्याम बहादुर सिंह (बरहड़िया), सुदर्शन कुमार, पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद (चकाई) और रणविजय सिंह शामिल हैं। अन्य नामों में विवेक शुक्ला, असमा परवीन, लव कुमार, अमर कुमार सिंह, आशा सुमन और दिव्यांशु भारद्वाज हैं। ये विभिन्न सीटों से बाग़ी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
एक वरिष्ठ जेडीयू नेता ने कहा है कि ये नेता पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों और एनडीए सहयोगियों के खिलाफ काम कर रहे थे। यह बर्खास्तगी चुनावी मैदान में विद्रोह को कुचलने का प्रयास दिखती है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह जेडीयू की आंतरिक कमजोरी को दिखाता है। अब विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर दो चरणों में वोटिंग होनी है और 14 नवंबर को नतीजे आने हैं। ऐसे में ये विद्रोही उम्मीदवार एनडीए के वोटों को बाँट सकते थे, जो नीतीश के लिए घातक साबित होता।
टिकट आवंटन पर खींचतान रही
चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले, जेडीयू में टिकट वितरण को लेकर गंभीर असंतोष और आंतरिक कलह उभरा। एनडीए गठबंधन ने 13-14 अक्टूबर 2025 को सीट बंटवारे की घोषणा की, जिसमें जेडीयू को 101 सीटें मिलीं। बीजेपी को भी 101, एलजेपी को 29, और अन्य सहयोगियों को बाकी सीटें मिलीं। लेकिन, यह फैसला जेडीयू के कई वरिष्ठ नेताओं को नागवार गुजरा। टिकट आवंटन में स्थानीय सांसदों-विधायकों की राय को नजरअंदाज करने के आरोप लगे। जेडीयू की गढ़ मानी जाने वाली सोनबरसा जैसी सीटें पार्टी को नहीं मिलीं और इससे जेडीयू नेताओं में यह धारणा बनी कि बीजेपी ने बिग ब्रदर की भूमिका निभाई।
टिकट वितरण में युवा या नए चेहरे जैसे 'बाहरी' उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी गई, जबकि पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया गया। पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दिया। इससे जातिगत संतुलन का दावा तो किया गया, लेकिन स्थानीय स्तर पर असंतोष बढ़ा।
विरोध प्रदर्शन हुआ, इस्तीफे की धमकी दी
भागलपुर से जेडीयू सांसद अजय कुमार मंडल ने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस्तीफा देने की पेशकश की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि भागलपुर लोकसभा क्षेत्र की 5 विधानसभा सीटों पर टिकट तय करने में उनकी सलाह नहीं ली गई, और 'बाहरी' लोगों को टिकट देकर पार्टी की जड़ें कमजोर की जा रही हैं। मंडल ने कहा, 'स्थानीय सांसद होने के बावजूद मेरा कोई औचित्य नहीं रह जाता।' यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसी दिन, गोपालपुर विधानसभा से चार बार के विधायक गोपाल मंडल ने सीएम आवास के बाहर धरना दिया। उन्होंने टिकट की मांग की, लेकिन पुलिस ने उन्हें हटा दिया।
औरंगाबाद जिले के नवीनगर विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक बीरेंद्र कुमार सिंह समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने टिकट वितरण में स्थानीय नेताओं की उपेक्षा का आरोप लगाया। इससे जेडीयू का स्थानीय संगठन कमजोर हुआ।
नीतीश कुमार ने नाराज नेताओं से बातचीत की कोशिश की, लेकिन सार्वजनिक रूप से कोई बड़ा बयान नहीं दिया। इस बीच अब पार्टी ने 11 नेताओं को निकालने की घोषणा की है। इधर, जेडीयू में मुस्लिम नेताओं का असंतोष बढ़ रहा है- वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में पांच मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया था। बिहार में मुस्लिम वोट (17%) निर्णायक हैं और नीतीश का भाजपा से गठजोड़ इस वोट बैंक को खिसका रहा है।
नीतीश की राजनीति
बिहार की राजनीति हमेशा गठबंधनों की भूलभुलैया रही है। 2020 बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के जेडीयू ने एनडीए के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा और जीता। लेकिन जुलाई 2022 में उन्होंने एनडीए तोड़ा और अगस्त 2022 में आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल हो गए। नीतीश कुमार ने 28 जनवरी 2024 को महागठबंधन तोड़ा, इस्तीफा दिया और फिर एनडीए में लौट आए। नीतीश की यह 'पलटीमार' वाली छवि विपक्ष का हथियार बन चुकी है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को कहा, 'एनडीए जीत भी गया तो नीतीश को सीएम नहीं बनाया जाएगा। अमित शाह ने साफ कहा है कि विधायक चुनेंगे।' तेजस्वी ने बिहार को गरीब राज्य बताते हुए 20 साल के एनडीए शासन पर भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का आरोप लगाया।
नीतीश की उम्र और बार-बार गठबंधन बदलना उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित कर रहा। एनडीए प्रचार में मोदी ने समस्तीपुर-बेगूसराय में रैली की, लेकिन नीतीश को स्पष्ट सीएम फेस घोषित करने से बचा।
11 नेताओं की बर्खास्तगी से नीतीश ने अनुशासन का संदेश तो दिया, लेकिन यह जेडीयू की आंतरिक कलह को छिपा नहीं पा रहा। बिहार चुनाव अब नीतीश की 'अंतिम जंग' जैसा लग रहा। कहा जा रहा है कि एनडीए अगर जीता भी, तो सीएम पद पर भाजपा का दबाव बढ़ेगा। विपक्ष तेजस्वी के नेतृत्व में आक्रामक है, और प्रशांत किशोर का जन सुराज तीसरा फैक्टर बन सकता है। 14 नवंबर के नतीजे तय करेंगे कि बिहार के 'सुशासन बाबू' कितना मजबूत बचेंगे।