बिहार की मतदाता सूची में एक पाकिस्तानी महिला का नाम दर्ज पाया गया। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह चूक हुई या फिर कुछ और मामला है?
बिहार एसआईआर। प्रतिकात्मक तस्वीर।
बिहार एसआईआर पर बवाल के बीच मतदाता सूची में एक हैरान करने वाली घटना सामने आई है। पूर्णिया जिले के एक गांव में एक पाकिस्तानी मूल की महिला का नाम स्थानीय वोटर लिस्ट में दर्ज पाया गया है। एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उसका वेरिफ़िकेशन भी हो चुका है। रिपोर्टों में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि यह महिला लगभग सात दशक पहले यानी 1947 के भारत-पाकिस्तान बँटवारे के आसपास भारत में आई थीं। इस खुलासे ने चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन में हलचल मचा दी है, और अब इसकी गहन जांच की जा रही है।
बिहार के पूर्णिया जिले के एक गांव में रहने वाली 85 वर्षीय महिला का नाम 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए तैयार की गई वोटर लिस्ट में दर्ज है। महिला के दस्तावेजों में ज़िक्र है कि वे मूल रूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत की रहने वाली हैं और 1947 के बंटवारे के आसपास भारत आ गई थीं। वे तब से ही बिहार में रह रही हैं और अब तक भारतीय नागरिकता के रूप में वोटिंग का अधिकार प्राप्त कर चुकी हैं।
रिपोर्टों के अनुसार महिला के पाकिस्तान के होने का यह खुलासा गृह मंत्रालय की जाँच के दौरान हुआ। मंत्रालय वीज़ा अवधि से अधिक समय तक विदेश में रहने वाले विदेशी नागरिकों की जाँच कर रहा था। इसमें भागलपुर की महिला का मामला सामने आया। न्यूज़ एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, बूथ लेवल ऑफिसर फरज़ाना खानम ने कहा, 'वह बात करने की स्थिति में नहीं थीं; वह बूढ़ी और अस्वस्थ हैं। विभाग के आदेशानुसार, मैंने फॉर्म भरकर उनका नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उनका पासपोर्ट 1956 का है और उन्हें 1958 में वीज़ा मिला था। वह पाकिस्तान से हैं... जाँच का अगला चरण विभाग द्वारा किया जाएगा... मुझे 11 अगस्त को गृह मंत्रालय से एक नोटिस मिला था।'
एक रिपोर्ट के अनुसार महिला के परिवार के सदस्यों ने बताया कि उनका जन्म 1938 में पाकिस्तान (तत्कालीन अविभाजित भारत) में हुआ था। बँटवारे के दौरान सांप्रदायिक दंगों और हिंसा के कारण वे अपने परिवार के साथ भारत की ओर पलायन कर गईं। वे पूर्णिया जिले के एक छोटे से गांव में बस गईं, जहां उन्होंने शादी की और अपना जीवन यापन किया।
महिला के परिवार का दावा है कि 1950 के दशक में उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था, जो स्वीकृत हो गया। इसके बाद से वे स्थानीय वोटर लिस्ट में शामिल हो गईं और कई चुनावों में वोट डाल चुकी हैं।
बँटवारे के दौरान क्या हुआ था?
1947 का बँटवारा भारत के इतिहास का एक दर्दनाक अध्याय था, जिसमें क़रीब 10-20 लाख लोग मारे गए और करोड़ों विस्थापित हुए। भारत सरकार ने 1955 के नागरिकता अधिनियम के तहत ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता दी। बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में आज भी ऐसे कई परिवार रहते हैं जो उस दौर के पलायन की कहानी लेकर आए।
पूर्णिया के जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। एक विशेष टीम गठित की गई है, जो जन्म प्रमाण पत्र, शादी का सर्टिफिकेट, और नागरिकता आवेदन जैसे महिला के दस्तावेजों की जांच कर रही है। चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह मामला 1947 के बँटवारे से जुड़ा लगता है, जब लाखों लोग दोनों देशों के बीच पलायन कर गए थे। भारत सरकार ने ऐसे कई आप्रवासियों को नागरिकता दी थी। हालांकि, हम वोटर लिस्ट की सत्यता सुनिश्चित करने के लिए सभी दस्तावेजों की पुष्टि कर रहे हैं। यदि कोई अनियमितता पाई जाती है, तो ज़रूरी कार्रवाई की जाएगी।'
भागलपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट डॉ. नवल किशोर चौधरी ने कार्रवाई की पुष्टि की और कहा कि औपचारिक जाँच चल रही है। द इंडयिन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'उपलब्ध जानकारी के अनुसार, उनका नाम मतदाता सूची में पाया गया। सत्यापन के बाद फॉर्म 7 जमा करके नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह प्रक्रिया पूरी की जाएगी।'
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने बताया है कि महिला का नाम न केवल राज्य की मतदाता सूची में है, बल्कि एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उसका सत्यापन भी हो चुका है।
एसआईआर पर विवाद
बता दें कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का एसआईआर करा रही है। इस पर काफ़ी विवाद है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं और मतदाताओं के नाम काटने की साज़िश का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को सही करने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन 65 लाख मतदाताओं की अपडेटेड सूची जारी की है जिनके नाम एसआईआर प्रक्रिया के बाद हटा दिए गए थे। 14 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद प्रकाशित यह सूची चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर आम जनता के लिए उपलब्ध है।