Bihar Voter list Controversy: बिहार में चुनाव आयोग ने 11 आवश्यक दस्तावेजों की सूची मतदाताओं के लिए जारी की है। इनमें से 5 दस्तावेज़ों में जन्मतिथि या स्थान का प्रमाण नहीं है। ऐसे में यह सूची कितनी शुद्ध होगी, अंदाजा लगाइए।
ECI के दस्तावेज और विवाद
ECI ने 24 जून 2025 को बिहार में SIR की घोषणा की थी, जिसका मकसद मतदाता सूची की शुद्धता को बनाए रखना और अवैध प्रवासियों सहित अयोग्य मतदाताओं को हटाना बताया गया था। इसके लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की गई, जिसमें जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र, सरकारी पहचान पत्र, पेंशन भुगतान आदेश, और डोमिसाइल, जाति या वन अधिकार प्रमाण पत्र शामिल हैं। जबकि इनमें से अनुसूचित जाति/जनजाति प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, और स्थायी निवास प्रमाण पत्र (डोमिसाइल सर्टिफिकेट) जैसे पांच दस्तावेज जन्म तारीख या जन्म स्थान का उल्लेख नहीं करते। आयोग ने आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र (EPIC), और राशन कार्ड को इस सूची से बाहर रखा गया है, जो कि बिहार में आमतौर पर उपलब्ध दस्तावेज हैं।
एससी/एसटी और ओबीसी प्रमाणपत्रों में केवल धारक का नाम, वह स्थान जहाँ वे "आमतौर पर निवास करते हैं", उनके समुदाय का नाम, उनके माता-पिता का नाम और समुदाय का नाम ही दर्ज होता है। इनमें से किसी में भी धारक के जन्म स्थान या जन्मतिथि की जानकारी नहीं होती। यह जानकारी आवेदन पत्र में आवश्यक होती है, लेकिन प्रमाणपत्रों में नहीं दी जाती।
सिर्फ 10% के पास ज़रूरी दस्तावेज़
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और परिवार रजिस्टर, जो एसआईआर प्रक्रिया के तहत स्वीकार किए जाने वाले दो अन्य दस्तावेज हैं, बिहार में मौजूद नहीं हैं। एक बूथ अधिकारी ने मीडिया को बताया, "भरे गए फॉर्मों में से सिर्फ़ 10% के पास ज़रूरी दस्तावेज़ थे। ऐसे सभी लोगों ने स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र जमा किए। जिन्हें आमबोलचाल में यूपी-बिहार में टीसी भी कहा जाता है। जिन लोगों के पास 11 में से कोई भी दस्तावेज़ नहीं था, उन्होंने बताया कि उन्होंने निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है और अगले 10-12 दिनों में इसे मिलने की उम्मीद है। आवेदकों ने बताया कि उन्होंने निवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड की कॉपी भी जमा की है। जिसे चुनाव आयोग के बीएलओ ने स्वीकार किया।"इस प्रक्रिया ने बिहार में 2.93 करोड़ मतदाताओं को प्रभावित किया है, जिन्हें 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल किया गया था। इन मतदाताओं को अपनी और अपने माता-पिता की जन्म तारीख और स्थान साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने हैं। इसीलिए विपक्ष सारी प्रक्रिया को साजिश बता रहा है, क्योंकि इसकी आड़ में बड़े पैमाने पर समुदाय विशेष के मतदाता बाहर हो जाएंगे। जो आमतौर पर बीजेपी को वोट नहीं देते और किसी विपक्षी दल को वोट देते हैं। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग से ऐसी प्रक्रिया अपनाने के लिए बीजेपी-आरएसएस ने कहा। चुनाव आयोग बीजेपी का एजेंट बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट को भी चुनाव आयोग का निर्देश पसंद नहीं आया
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जब इस मामले की सुनवाई हुई तो यह साफ हो गया कि चुनाव आयोग के 11 दस्तावेजों वाली बात अदालत के गले नहीं उतरी। हालांकि उसने प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई। लेकिन उसने यह सुझाव दे डाला कि आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को इन दस्तावेजों की सूची में शामिल करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की दो महत्वपूर्ण टिप्पणियां
पहली टिप्पणीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- : ‘यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर के तहत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए थी; अब थोड़ी देर हो चुकी है... मतदाता सूची से गैर-नागरिकों को हटाना गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है, चुनाव आयोग का नहीं।’
दूसरी टिप्पणीः सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट कहा - "दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, चुनाव आयोग ने बताया है कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं और यह संपूर्ण नहीं है। इसलिए, हमारी राय में, यह न्याय के हित में होगा यदि आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए। यह चुनाव आयोग पर निर्भर है कि वह दस्तावेज लेना चाहता है या नहीं। यदि वह दस्तावेज नहीं लेता है, तो उसे इसके लिए कारण बताना होगा और इससे याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट होना होगा।"
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाला बागची की पीठ ने SIR की टाइमिंग पर सवाल उठाए, क्योंकि यह प्रक्रिया नवंबर 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के ठीक पहले शुरू की गई है। जस्टिस धूलिया ने कहा, "इस प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसका समय गलत है। इसे चुनावों से जोड़ने की बजाय अलग से स्वतंत्र रूप से क्यों नहीं किया गया?" कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अगर 11 दस्तावेदों के आधार पर मतदाता सूची को अंतिम रूप दे दिया जाता है, तो कोई भी अदालत इसे चुनौती देने की स्थिति में नहीं होगी, जिससे वंचित मतदाताओं के लिए समस्या हो जाएगी।
इन टिप्पणियों के अलावा सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया की यह मौखिक टिप्पणी भी थी कि इन दस्तावेजों में तो बहुत सारे मेरे पास भी नहीं होंगे।
चुनाव आयोग के पास इज्ज़त बचाने का मौका
इस देश में सुप्रीम कोर्ट, विपक्षी दलों और आम लोगों को यह अच्छी तरह समझ में आ गया कि 11 दस्तावेजों की चुनाव आयोग और सरकार (बीजेपी) की जिद सही नहीं है। उसकी मंशा कुछ और है। लेकिन चुनाव आयोग के वकील सुनवाई के दौरान अड़े रहे। लेकिन अदालत ने चुनाव आयोग और इस देश की सरकार को इज्ज़त बचाने का मौका दे दिया है। अगर चुनाव आयोग 28 जुलाई से पहले आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को मान लेता है और दस्तावेजों की नई सूची जारी करता है तो मसला हल हो जाएगा और उसकी साख बच जाएगी। हो सकता है कि विपक्ष यह आरोप वापस ले ले कि चुनाव आयोग बीजेपी और सरकार का एजेंट बनकर काम कर रहा है। चुनाव आयोग ने 9 जुलाई के बिहार बंद से अंदाजा लगा लिया होगा कि जनता कितने गुस्से में है। राज्य में बीजेपी-जेडीयू की सरकार होने के बावजूद बंद सफल रहा और जनता सड़कों पर आई। जनता का गुस्सा साफ दिख रहा है। वैसे भी चुनाव आयोग की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19, और 21 का उल्लंघन करती है। हालांकि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत अपनी जिम्मेदारी बताया है। लेकिन बिहार में भारी गरीबी और खासतौर पर अनुसूचित जाति, जनजाति, और प्रवासी मजदूर के रूप में काम करने वाले लोगों के पास आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं। कोरोना काल की तस्वीरें याद कीजिए, जब भारी तादाद में बिहार के मजदूर मुंबई, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली से अपने घरों को भूखे-प्यासे लौट गए थे। ऐसे लोगों के पास चुनाव आयोग द्वारा निर्देशित दस्तावेज नहीं हैं। हां, आधार और वोटर कार्ड अधिकांश के पास है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को तय की है। ECI को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। या तो चुनाव आयोग इज्ज़त बचा ले या फिर पूरी प्रक्रिया को ही रद्द करके, पुरानी स्थिति पर लौट जाए। यह भारत के लोकतंत्र का भी सवाल है। क्योंकि अगर बिहार में इस प्रक्रिया से चुनाव हो गए तो हर राज्य में इसे लागू किया जाएगा। एनआरसी लाए बिना एनआरसी लागू हो जाएगी। इसीलिए यह मामला अब सामाजिक स्तर पर भी तीखी बहस का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस प्रक्रिया के भविष्य को तय करेगा।