Delhi Cabinet Minister Status: मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने अरविंदर सिंह लवली को यमुनापार विकास बोर्ड और राजकुमार चौहान को ग्रामीण विकास बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। दावों के बावजूद, दिल्ली में सिर्फ सात मंत्रियों की अनुमति है। दोनों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं मिल सकता।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने गांधी नगर के विधायक अरविंदर सिंह लवली को यमुनापार विकास बोर्ड का अध्यक्ष बनाते हुए यमुनापार विकास बोर्ड का मुख्यमंत्री तक घोषित कर दिया। ग्रामीण विकास बोर्ड का अध्यक्ष बनने पर मंगोलपुरी के विधायक राजकुमार चौहान के लिए ऑफिस तथा अन्य सुविधाओं की मांग की गई है। दोनों शीला सरकार में मंत्री रह चुके हैं और अब दोनों के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है जबकि सच्चाई यह है कि दिल्ली में कुल मिलाकर अधिकतम सात मंत्री ही बनाए जा सकते हैं जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। इस संख्या को किसी भी हालत में बढ़ाया नहीं जा सकता क्योंकि यह संख्या उस संविधान संशोधन में दी गई है जिससे दिल्ली को राज्य का दर्जा दिया गया था। उसमें कहा गया था कि दिल्ली के कुल विधायकों (यानी 70) का दसवां हिस्सा ही कैबिनेट में हो सकता है।
अब सवाल यह है कि जब लवली या चौहान मंत्री बन ही नहीं सकते तो फिर उन्हें कैबिनेट मंत्री के बराबर क्यों कहा जा रहा है। दरअसल यहां स्थिति हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और वाली स्थिति है। ये दोनों नेता कांग्रेस से बीजेपी में गए थे और उन्हें कैबिनेट में स्थान नहीं मिल सका। समर्थकों में उनकी स्थिति काफी खराब हो रही थी। अब उन्हें सम्मान देने के लिए यह पद दिया जाना था, इसलिए दिया गया है और इसीलिए कहा जा रहा है कि उनका केबिनेट मंत्री का दर्जा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है।
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एस.के.शर्मा का कहना है कि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता। यह स्थिति सरकार को भी पता है। इसलिए पहली अगस्त को जब कैबिनेट मीटिंग में इन दोनों को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास हुआ तो कैबिनेट नोट में भी दोनों को कैबिनेट मंत्री बनाने का कोई जिक्र नहीं है।
दरअसल यमुनापार विकास बोर्ड और ग्रामीण विकास बोर्ड संवैधानिक भी नहीं हैं। यह कैबिनेट प्रस्ताव से बनाए गए बोर्ड हैं। 2003 में जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस दोबारा चुनाव जीतकर दिल्ली की गद्दी पर विराजमान हुई तो शीला दीक्षित पिछली सरकार के कुछ मंत्रियों को दोहरा नहीं पाए। अपने कुछ मंत्रियों को ड्रॉप करना पड़ा। इनमें डॉ. नरेंद्र नाथ भी थे जिन्हें बाद में इसी तरह यमुनापार विकास बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया था। यह भी इत्तेफाक है कि जब जिन नए मंत्रियों को जगह मिली थी, उनमें लवली भी थे।
बहरहाल, दिल्ली सचिवालय की सातवीं मंजिल पर नरेंद्र नाथ को ऑफिस भी दिया गया और एक पीए और एक क्लर्क भी मिला। डॉ. नरेंद्र नाथ मानते हैं कि उन्हें गाड़ी भी दी गई लेकिन उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं मिला और न ही ऐसा दावा भी किया गया। जहां तक ऑफिस और गाड़ी जैसी सुविधाओं का सवाल है तो वह शहरी विकास मंत्रालय के कोटे से जुगाड़ करके दे दी गई थी। अब लवली और चौहान को भी ये सुविधाएं किसी और विभाग से मिलेंगी क्योंकि कैबिनेट मंत्री के तौर पर उन्हें कानूनन सुविधाएं नहीं दी जा सकतीं।
दिल्ली में मंत्रियों की संख्या की बंदिश को तोड़ने की एक बार पहले भी कोशिश हुई थी जब 1996 में मदनलाल खुराना की जगह साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने तब त्रिनगर से विधायक नंदकिशोर गर्ग को संसदीय सचिव पद की शपथ दिलवा दी थी और उनका दर्जा मंत्री का होने का दावा किया गया था लेकिन जब मुख्यमंत्री को कानूनी स्थिति से अवगत कराया गया तो गर्ग से तुरंत इस्तीफा ले लिया गया था।
जिस तरह अब लवली और चौहान के कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के दावे किए जा रहे हैं, ऐसे ही दावे जंगपुरा से मनीष सिसोदिया को हराने वाले तरविंदर सिंह मारवाह ने भी उस समय किए थे जब उन्हें शीला दीक्षित ने अपना संसदीय सचिव बनाया था। उन्होंने पूरे इलाके में इसके पोस्टर—बैनर भी लगाए थे लेकिन किसी ने एतराज नहीं किया था जैसे अब लवली और चौहान को कैबिनेट मंत्री के दर्जे पर सभी जश्न मना रहे हैं।