क्या बिना सबूत के ही इंडियन मुजाहिदीन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया से संबंध के आरोप में अब्दुल सुबहान कुरैशी और उसके साथी आरिज खान को गिरफ़्तार कर लिया गया था? इस मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बड़ा फ़ैसला सुनाया है। इंडियन मुजाहिदीन यानी आईएम के कथित बड़े ऑपरेटिव अब्दुल सुबहान कुरैशी और उनके साथी आरिज खान को बरी कर दिया गया। उन पर आरोप था कि वे प्रतिबंधित संगठन IM और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी SIMI को फिर से सक्रिय करने की साजिश रच रहे थे। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई ठोस और मान्य सबूत नहीं है जो यह दिखाए कि वे इन संगठनों के सदस्य थे या भारत की सुरक्षा के खिलाफ कोई साजिश की।

यह मामला 2014 में दर्ज किया गया था। आरोप यूएपीए की धारा 18 यानी आतंकी साजिश और आईपीसी की धारा 120बी यानी आपराधिक साजिश के तहत लगे थे। पुलिस का कहना था कि 2014 में बिजनौर में ब्लास्ट के बाद दिल्ली और यूपी के बॉर्डर इलाकों में जांच शुरू हुई थी।
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अब्दुल सुबहान कुरैशी को 23 जनवरी 2018 को पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर इलाके से गिरफ्तार किया गया था। उसको 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट और 2008 के गुजरात ब्लास्ट का एक मुख्य आईएम ऑपरेटिव आरोपी माना जाता है। आरिज खान को 14 फरवरी 2018 को भारत-नेपाल बॉर्डर से पकड़ा गया जो कथित तौर पर 2008 के बटला हाउस एनकाउंटर के बाद देश से भाग गया था।

कोर्ट ने क्यों बरी किया?

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमित बंसल ने 20 दिसंबर के आदेश में कहा, 'इस मामले की चार्जशीट में कोई ऐसा मान्य सबूत नहीं है जो यह संदेह पैदा करे कि दोनों आरोपी SIMI और IM को भारत में फिर से सक्रिय करने की साजिश कर रहे थे, या वे इन संगठनों के सदस्य थे, या भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के खिलाफ कोई प्लान बना रहे थे।'

कोर्ट ने बताया कि पुलिस का मुख्य सबूत आरोपियों के कबूलनामे और दूसरे केसों की लिस्ट थी। लेकिन कानून के मुताबिक, पुलिस कस्टडी में दिया गया कबूलनामा तब तक मान्य नहीं होता जब तक उससे कोई नई चीज बरामद न हो। इस केस में ऐसा कुछ नहीं मिला।

अदालत ने कहा कि दूसरे केसों की चार्जशीट या एफ़आईआर की कॉपी से भी इस मामले में कोई संदेह नहीं पैदा होता।

रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि गवाहों की लिस्ट में ज्यादातर ड्यूटी ऑफिसर या रिकॉर्ड क्लर्क थे, जो दूसरे केसों की एफ़आईआर साबित करने के लिए थे। इससे इस केस में कोई अपराध का संदेह नहीं बनता।
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कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर दोनों आरोपी किसी दूसरे केस में जरूरी नहीं हैं तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाए। लेकिन दोनों अन्य मामलों में भी आरोपी हैं, इसलिए फिलहाल रिहा नहीं होंगे।

यह फैसला आतंकवाद से जुड़े मामलों में सबूतों की मजबूती पर सवाल उठाता है। पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए यह एक झटका है, जबकि आरोपियों के लिए राहत।