दिल्ली में पुलिस थानों से वीडियो गवाही के एलजी वी.के. सक्सेना के आदेश पर बवाल और बढ़ गया है। आदेश के खिलाफ दिल्ली के जिला और उच्च न्यायालयों में वकीलों का आंदोलन बुधवार को और तेज हो गया। एलजी ने उस आदेश को लेकर 13 अगस्त को अधिसूचना जारी की थी जो पुलिस अधिकारियों को पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में गवाही देने की अनुमति देती है। वकीलों के विरोध के बीच अब दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों से इस आदेश के खिलाफ प्रतीकात्मक विरोध के रूप में अदालत में काले रिबन पहनने का आह्वान किया है जब तक कि इसे वापस नहीं लिया जाता। वकीलों ने इस आदेश को 'काला कानून' करार देते हुए इसे निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया।

एलजी द्वारा जारी अधिसूचना के तहत दिल्ली के सभी 226 पुलिस थानों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग केंद्र के रूप में नामित किया गया है, जहां से पुलिस अधिकारी अपनी गवाही दर्ज कर सकते हैं। यह कदम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 265(3) और 308 के तहत उठाया गया। ये धाराएँ गवाही को तय जगहों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दर्ज करने की अनुमति देती हैं। हालाँकि, वकीलों का कहना है कि यह व्यवस्था निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को कमजोर करती है और सबूतों में हेरफेर की संभावना को बढ़ाती है।
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वकीलों की आपत्ति क्यों?

दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव कुणाल मल्होत्रा ने एक नोटिस में कहा, 'पुलिस थानों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कक्षों को गवाही के लिए 'नामित स्थान' घोषित करने वाली अधिसूचना न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करती है।' उन्होंने सभी सदस्यों से इस विरोध में सहयोग करने की अपील की। वकीलों का तर्क है कि पुलिस थानों से गवाही देने की अनुमति देने से गवाहों पर प्रभाव डालने, दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़, या पहले से तैयार बयानों की संभावना बढ़ जाती है, जो निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों के खिलाफ है।

वकीलों का प्रदर्शन

दिल्ली के छह जिला न्यायालयों में वकील 22 अगस्त से प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार और मंगलवार को उन्होंने अदालत परिसरों के बाहर धरना दिया और नारेबाजी की। मंगलवार को वकीलों ने 'काला कानून वापस लो' के नारे लगाए और राउज एवेन्यू कोर्ट परिसर के पास उपराज्यपाल का पुतला जलाया। पटियाला हाउस कोर्ट के वकीलों ने इंडिया गेट सर्कल पर मार्च निकाला, जबकि साकेत कोर्ट के बाहर सड़क जाम कर विरोध प्रदर्शन किया गया।
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रिपोर्टों के अनुसार दिल्ली के सभी जिला न्यायालय बार एसोसिएशन के समन्वय समिति के महासचिव अनिल बसोया ने कहा कि वे यह प्रदर्शन अपने लिए नहीं, बल्कि अपने मुवक्किलों के लिए कर रहे हैं, जो निष्पक्ष सुनवाई के हकदार हैं। उन्होंने कहा कि जब तक यह अधिसूचना वापस नहीं ली जाती, हमारा आंदोलन जारी रहेगा। समन्वय समिति ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करेंगे।

बीसीआई, एससीए का समर्थन

बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी बीसीआई) ने भी इस अधिसूचना का कड़ा विरोध किया है। बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और सह-अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने उपराज्यपाल को पत्र लिखकर तत्काल इस आदेश को वापस लेने की मांग की। इसमें कहा गया है कि निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार तभी सुनिश्चित हो सकता है जब गवाही प्रभाव-मुक्त वातावरण में दी जाए। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जिरह कमजोर हो जाएगी, क्योंकि वकील गवाह के हाव-भाव और दस्तावेजों का ठीक से अवलोकन नहीं कर पाएंगे। गवाही को कोर्टरूम से बाहर ले जाना न्यायिक नियंत्रण को कम करता है और प्रक्रियात्मक त्रुटियों का जोखिम बढ़ाता है।
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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन यानी एससीबीए ने भी इस अधिसूचना को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया है। इधर, हड़ताल के बीच दिल्ली हाईकोर्ट में एलजी की अधिसूचना के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई है। एडवोकेट कपिल मदान ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर अधिसूचना को चुनौती दी है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह बीएनएसएस, 2023 की धारा 308 का उल्लंघन करती है, जो गवाही को आरोपी की उपस्थिति में और न्यायाधीश के नियंत्रण में दर्ज करने की ज़रूरत बताती है। 

वकीलों का आंदोलन तब तक जारी रहने की संभावना है जब तक अधिसूचना वापस नहीं ली जाती। दिल्ली के वकील इस मुद्दे को न केवल अपने पेशे से, बल्कि आम जनता के हित से जोड़ रहे हैं। समन्वय समिति के अतिरिक्त महासचिव तरुण राणा ने कहा, 'यह विरोध वकीलों के लिए नहीं, बल्कि निष्पक्ष सुनवाई के मौलिक अधिकार के लिए है। प्रत्येक व्यक्ति को संवैधानिक रूप से निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।'