जामिया मिलिया इस्लामिया की परीक्षा में एक सवाल ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। सोशल वर्क डिपार्टमेंट के प्रोफेसर वीरेंद्र बालाजी शहारे ने बीए (ऑनर्स) के पहले सेमेस्टर के पेपर 'सोशल प्रॉब्लम्स इन इंडिया' में सवाल पूछा- 'भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों पर चर्चा करें, उदाहरण दें।' इस पर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर आपत्ति की और इसे ग़लत और सांप्रदायिकता वाला सवाल बता दिया। शिकायत के बाद यूनिवर्सिटी ने प्रोफेसर को तुरंत सस्पेंड कर दिया और जांच कमेटी बना दी। लेकिन इस कार्रवाई का विरोध भी हो रहा है। कुछ छात्रों ने कहा है कि सोशल वर्क में भारत की सामाजिक समस्याओं पर चर्चा होती है। इन्होंने कार्रवाई को अकादमिक स्वतंत्रता के लिए ख़तरा बताया है।

यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया, 'हमने इस मामले को गंभीरता से लिया। प्रोफेसर की लापरवाही और असावधानी को देखते हुए उन्हें सस्पेंड किया गया है। जांच कमेटी रिपोर्ट देने तक सस्पेंशन जारी रहेगा।' सस्पेंशन ऑर्डर में ऑफिशिएटिंग रजिस्ट्रार सीए शेख सफीउल्लाह के हस्ताक्षर हैं। ऑर्डर में कहा गया कि प्रोफेसर का हेडक्वार्टर नई दिल्ली होगा और बिना इजाजत बाहर नहीं जा सकते।
ऑर्डर में पहले पुलिस में एफआईआर दर्ज करने की बात थी, लेकिन बाद में यूनिवर्सिटी ने साफ किया कि अभी कोई एफआईआर दर्ज करने का इरादा नहीं है। मामला आंतरिक जांच से सुलझाया जाएगा।

विवाद कैसे बढ़ा?

सवाल की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर होने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सीनियर एडवाइजर कंचन गुप्ता ने सस्पेंशन नोटिस शेयर किया। उन्होंने लिखा, 'जामिया मिलिया इस्लामिया एक केंद्रीय यूनिवर्सिटी है, जहां अलग-अलग समुदाय के छात्र पढ़ते हैं। यह सवाल दुर्भावनापूर्ण इरादे दिखाता है।' 

कंचन गुप्ता की पोस्ट का स्क्रीनशॉट

कई यूजरों ने प्रश्न की शब्दावली पर सवाल उठाए और कहा कि यह राजनीति या सांप्रदायिकता को दिखाता है।

अकादमिक फ्रीडम पर हमला?

लेकिन कई स्टूडेंट्स, एक्टिविस्ट्स और टीचर्स इसका विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यह सवाल कोर्स से जुड़ा है। सोशल वर्क में भारत की सामाजिक समस्याओं पर चर्चा होती है और अल्पसंख्यकों पर होने वाली घटनाएं वास्तविक मुद्दे हैं। छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी एसएफ़आई ने सस्पेंशन वापस लेने की मांग की है। इसने प्रोफेसर के निलंबन की कड़ी निंदा की और इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है।
इसने एक्स पर बयान में कहा है, "एसएफआई जामिया प्रोफेसर शहारे के 'सोशल प्रॉब्लम्स इन इंडिया' पेपर में अकादमिक स्वतंत्रता के प्रयोग पर निलंबन की निंदा करता है। हम प्रोफेसर के साथ हैं और निलंबन तत्काल रद्द करने की मांग करते हैं। ...जामिया आरएसएस का अड्डा नहीं बनेगा। अकादमिक स्वतंत्रता की रक्षा जरूरी है।' एसएफ़आई ने इस मामले को जामिया की बहस-विवाद और असहमति की परंपरा के लिए ख़तरा बताया है।

जांच में क्या होगा?

बहरहाल, यूनिवर्सिटी की जांच कमेटी देखेगी कि सवाल कैसे बनाया गया, कैसे अप्रूव हुआ और क्या यह यूनिवर्सिटी के नियमों या परीक्षा गाइडलाइंस का उल्लंघन है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई तय होगी।