न्याय का इंतज़ार आख़िर कब तक! एसिड अटैक पीड़िता शाहीन मलिक इसी पीड़ा में हैं। 16 साल से न्याय के लिए लड़ रहीं शाहीन को तब बड़ा झटका लगा जब दिल्ली की एक अदालत ने 2009 के उस भयावह एसिड अटैक मामले में तीन मुख्य आरोपियों को बरी कर दिया। पानीपत की एमबीए छात्रा शाहीन मलिक पर तेजाब फेंका गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह ने यशविंदर, बाला और मनदीप मान को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया। ये हमले की साजिश रचने के आरोपी थे। 16 साल की लंबी न्यायिक जंग, 25 से ज्यादा सर्जरी, एक आंख की रोशनी गंवाने और जिंदगी भर के जख्मों के बावजूद शाहीन को मिली सिर्फ अदालत की 'सहानुभूति', न्याय नहीं! शाहीन ने कहा, 'न्याय व्यवस्था ने मुझे तोड़ दिया।'

16 साल पहले हुए एसिड अटैक ने शाहीन मलिक का चेहरा, आँखों की रोशनी और पूरी जिंदगी बदल दी। लेकिन अब 42 साल की शाहीन कहती हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा दर्द उस हमले से नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था से हुआ है, जिस पर उन्होंने डेढ़ दशक से ज्यादा भरोसा किया था।
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रोहिणी कोर्ट के इस फैसले ने शाहीन की लंबी लड़ाई पर ब्रेक लगा दिया। शाहीन अपनी उम्र के 20 के दशक से यह केस लड़ रही हैं। एचटी की रिपोर्ट के अनुसार शाहीन ने कहा, 'मैंने 16 साल तक यह केस लड़ा, क्योंकि मुझे यकीन था कि सच और लगन काम आएगी। मैं हार गई, इसलिए नहीं कि मुझ पर एसिड अटैक से हमला हुआ, बल्कि इसलिए कि सिस्टम न्याय नहीं दे सका।'

शाहीन के लिए 2009 का वह काला दिन

2009 में शाहीन सिर्फ 26 साल की थीं। पनीपत में नौकरी कर रही थीं और एमबीए कर रही थीं। वे एक स्टूडेंट काउंसलर के तौर पर काम करती थीं। शाहीन कहती हैं कि ऑफिस के बाहर सहकर्मियों की ईर्ष्या और दुश्मनी की वजह से उन पर एसिड फेंक दिया गया। शाहीन ने एचटी से कहा, 'मुझे आज भी उस लिक्विड का रंग याद है। एक पल को लगा जैसे मजाक हो। फिर जलन शुरू हुई और सब कुछ बदल गया।'

हमले से शाहीन का चेहरा बुरी तरह झुलस गया और एक आँख की रोशनी चली गई। अब तक उन्होंने 25 सर्जरी कराई हैं, आंखों के कई ऑपरेशन और लंबा इलाज कराया है।

उन्होंने कहा, 'सालों तक दर्द, दवाइयां, अस्पताल और रिकवरी का सिलसिला चला। मैं इसलिए आगे बढ़ती रही क्योंकि मुझे यकीन था कि एक दिन कोर्ट मेरे साथ हुए अन्याय को मानेगा।' लेकिन बुधवार का फैसला आया तो उनका भरोसा टूट गया।

अन्य सर्वाइवर्स पर असर

शाहीन को ज़्यादा चिंता अपने केस से नहीं, बल्कि अन्य एसिड अटैक और जेंडर बेस्ड हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए है। 2013 से वे पूरे देश में सर्वाइवर्स की मदद कर रही हैं। 2021 में उन्होंने ब्रेव सोल्स फाउंडेशन शुरू किया और ‘अपना घर’ नाम का शेल्टर होम भी बनाया। इस फाउंडेशन से उन्होंने 300 से ज्यादा एसिड अटैक सर्वाइवर्स को मेडिकल केयर, सर्जरी, मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग, शिक्षा, ट्रेनिंग और मुआवजा दिलाने में मदद की है।
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रिपोर्ट के अनुसार शाहीन ने कहा, 'ये सर्वाइवर्स मुझसे पूछती हैं कि अगर आपको न्याय नहीं मिला तो हमें क्या उम्मीद है? अब मैं उन्हें कैसे हौसला दूं? युवा लड़कियों को कैसे कहूं कि लड़ो, जब सिस्टम दिखा रहा है कि सालों की मेहनत बेकार जा सकती है?'

वे डरती हैं कि यह फैसला पीड़िताओं को चुप रहने या समझौता करने पर मजबूर कर देगा। उन्होंने कहा, 'कई सोचेंगी कि लड़ाई में समय, एनर्जी और पैसा खराब होगा और कुछ हासिल नहीं होगा। यह फैसला पीड़िताओं को बता रहा है कि न्याय मांगना फायदे का सौदा नहीं है।'

शाहीन का हौसला

शाहीन दिल्ली के एक रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ीं। घर से बाहर काम करना भी मुश्किल था। फिर भी उन्होंने हिम्मत दिखाई, हरियाणा गईं और पढ़ाई की। उन्होंने कहा, 'मैंने एक आंख खो दी, लेकिन हिम्मत नहीं खोई। आज लगता है सिस्टम ने वह हिम्मत भी छीनने की कोशिश की।'
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अब वे क्या करेंगी? शाहीन ने कहा, 'मैं हाई कोर्ट में अपील करूंगी। न्याय मिलेगा या नहीं, अब पता नहीं।' उन्होंने कहा, 'एसिड अटैक सर्वाइवर्स और रेप सर्वाइवर्स के लिए यह सिस्टम क्या दे रहा है? जब न्याय नहीं मिलता तो जिम्मेदारी किसकी है?' वे कहती हैं कि संस्थाओं में संवेदनशीलता की कमी है। उन्होंने कहा, 'जो लोग इस दर्द को कभी नहीं झेले, वे हमारे जीवन पर फैसले सुना रहे हैं।'

शाहीन ने अपने दर्द को दूसरों की मदद में बदल दिया था। लेकिन यह फैसला उनके घावों को फिर से हरा कर गया। शाहीन ने कहा, 'मैं एसिड से बच गई। लेकिन न्याय व्यवस्था से इतना निराश होना नहीं सोचा था।' अब वे फिर लड़ाई के लिए तैयार हैं, लेकिन दिल टूटा हुआ है। यह मामला सिर्फ शाहीन का नहीं, बल्कि हजारों पीड़िताओं की उम्मीद का सवाल बन गया है।