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दिल्ली चुनाव में हारती बीजेपी क्या बदलेगी रणनीति? क्या नहीं चली ध्रुवीकरण की चाल?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की संभावित जीत कई सवाल खड़े करती है, कई मामलों में देश को आश्वस्त करती है और कई नए समीकरणों की ओर संकेत देती है, जिसके दूरगामी नतीजे होंगे। इन नतीजों से बीजेपी को अपनी रणनीति बदलने का अल्टीमेटम मिलता है तो विपक्ष को एकजुट होने की सलाह भी।
लेकिन यह सवाल तो बना हुआ है कि क्या वाकई बीजेपी इन नतीजों से कुछ सीख लेकर अपनी रणनीति में तात्कालिक ही सही, कोई बदलाव करेगी, या वह अपनी ध्रुवीकरण की नीति पर और धार चढ़ाएगी। 

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यह बात बहुत साफ़ है कि दिल्ली की जनता ने सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण की रणनीति को खारिज कर दिया है। जनता के लिए न पाकिस्तान कोई मुद्दा है न ही वह बिरियानी को बुरा कहने पर उसे बुरा मान लेती है।

हद कर दी आपने!

इन चुनावों से जो एक बात बहुत ही साफ़ हो गई है कि वह यह है कि आम जनता सांप्रदायिकता से प्रभावित नहीं हो रही है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि उत्तेजक भाषण देने और सांप्रदायिक बातें करने में तमाम सीमाओं को तोड़ दिया गया।

चुनाव प्रचार पर हिन्दुत्व का रंग तो पहले भी चढ़ाया जाता रहा है, हिन्दू-मुसलिम पहले भी किया जाता रहा है पर इस बार यह कहा गया कि ‘शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन करने वाले आपके घरों में घुस कर आपकी बहन-बेटी से बालात्कार करेंगे।’ इसे स्पष्ट रूप से एक धर्म विशेष से जोड़ा गया।

यह भी कहा गया कि ‘बीजेपी जीत गई तो सरकारी जम़ीन पर बनी सभी मसजिदें गिरा दी जाएंगी।’ यह नारा भी खूब चला, ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को।’

बदनाम बिरियानी!

एक राज्य के मुख्यमंत्री को आतंकवादी कहा गया और एक केंद्रीय मंत्री ने उसे दुहरा कर कहा, ‘हां, अरविंद केजरीवाल आतंकवादी हैं।’ फिर उसे उचित ठहराने के तर्क भी दिए। 

स्वादिष्ट और बेहद लोकप्रिय भोजन, बिरियानी को एक धर्म विशेष से ही नहीं जोड़ा गया, इसे पाकिस्तानी खाना कह कर प्रचारित किया गया। ऐसी तसवीर खींची गई मानो बिरियानी खाना देशद्रोह हो।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग की महिलाओं को बिरियानी खिला रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि सुलझे हुए और अच्छे राजनेता की है, मोटे तौर पर उनकी छवि कभी सांप्रदायिक और हिन्दू-मुसलमानों की बात करने वाले नेता की नहीं रही है। पर इस चुनाव में उन्होंने दिल्ली में कहा कि ‘केजरीवाल लोगों को बिरियानी खिला रहे हैं और हमसे कह रहे हैं कि हम कार्रवाई करें, क्यों करे हम कार्रवाई।’

शाहीन बाग कार्ड

शाहीन बाग जिस ओखला विधानसभा क्षेत्र में है, वहाँ से आम आदमी पार्टी ने अमानतुल्ला ख़ान को अपना उम्मीदवार बनाया। बीजेपी ने इस मुसलिम-बहुल इलाक़े में भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया। लेकिन यह तो बिल्कुल साफ़ है कि शाहीन बाग कार्ड नहीं चला, बिरियानी कार्ड नहीं चला, पाकिस्तान पर लोगों ने मतदान नहीं किया। 
शाहीन बाग कार्ड का बेहद सीमित असर रहा, अधिकतम दो सीटों पर उसका असर पड़ा और यह कहा जा सकता है कि इन जगहों पर लोग उसके प्रभाव में आए। पर मोटे तौर पर दिल्ली की जनता ने इसे खारिज कर दिया।

ब्रांड मोदी कमज़ोर

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि ब्रांड मोदी ख़राब हो चुका है, मोदी ब्रांड पहले की तरह बिकाऊ नहीं रहा, लोग अब मोदी की बातों पर उस तरह एकमुश्त वोट नहीं करते। यह अहम इसलिए भी है कि नरेंद्र मोदी ने दो रैलियाँ की थीं और उन्होंने ख़ुद शाहीन बाग का मुद्दा बहुत ही आक्रामक तरीके से उठाया था।
यह पहला मौका था जब प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘शाहीन बाग का विरोध प्रदर्शन संयोग नहीं है, एक प्रयोग है।’ उन्होंने जो कुछ कहा था, उसका मतलब यह था कि शाहीन बाग आन्दोलन पाकिस्तान की शह पर हो रहा है और देश को अस्थिर करने की नीति के तहत किया जा रहा है।
यह वही मोदी हैं, जिन्होंने तीन तलाक़ क़ानून पर कहा था कि वे अपनी मुसलिम बहनों के लिए यह सब कर रहे हैं। लेकिन शाहीन बाग में वही मुसलिम बहनें बैठी रहीं, मोदी ने सुध नहीं ली, उल्टे उन्हें भला-बुरा कह दिया। 

मोदी के ख़ुद मैदान में कूदने के बावजूद शाहीन बाग का कार्ड नहीं चला। मोदी के मंत्री उत्तेजक और सांप्रदायिक बातें कहते रहे, मोदी ने किसी को नहीं रुका, यह एक तरह से उनकी बातों का समर्थन करना ही तो था।

विकास की राजनीति

दिल्ली के चुनाव नतीजों से यह भी साफ होता है कि विकास की राजनीति के लिए जगह बची हुई है। इसे इससे समझा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल ने बहुत ही ज़ोर देकर कहा था कि ‘यदि आपको लगे कि हमने काम किया है, तो वोट देना, वर्ना मत देना।’
आम आदमी पार्टी ने बेहद आक्रामक ढंग से मुफ़्त पानी, मुफ़्त बिजली, मुहल्ला क्लिनिक, शिक्षा व्यवस्था में बदलाव और सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने के मुद्दे को उछाला। पहले बीजेपी ने इसकी हवा निकालने की कोशिश की, पर बाद में वह भी विकास की राजनीति में कूद पड़ी।
बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ग़रीबों को दो रुपए किलो आटा, लड़कियों को स्कूटी और स्कूल-कॉलेज की फ़ीस माफ़ करने बात की। आम जनता ने साफ़ कर दिया कि वह विकास की बात करने पर आम आदमी पार्टी की बातों को तरजीह देती है।
दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी की वापसी इसका पुख़्ता सबूत है कि लोगों ने विकास की राजनीति को ही माना है और ध्रुवीकरण को खारिज कर दिया है। 

सहयोगियों के तेवर बदलेंगे?

दिल्ली के नतीजों का असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा। उसके सहयोगी दल उसे आँखें तरेरेंगे और सीटों के मोल-तोल में उस पर दबाव बनाएंगे। यह जल्द ही बिहार में देखने को मिलेगा।
बिहार विधानसभा के लिए इस साल के नवंबर में चुनाव होंगे। जनता दल यूनाइटेड और उसके नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य बीजेपी पर दबाव डालेंगे और उसे कम सीटों पर समझौता करने पर मजबूर करेंगे। इससे गिरिराज सिंह जैसे स्थानीय बीजेपी क्षत्रप भी कमज़ोर होंगे। 

सॉफ़्ट हिन्दुत्व कार्ड!

लेकिन अरविंद केजरीवाल का सॉफ़्ट हिन्दुत्व को अपनाना कई सवाल खड़े करता है। विकास की बात करे वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री टीवी चैनल पर हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर गए तो वहाँ से निकल बताया कि हनुमान जी ने उनसे क्या कहा।

बीजेपी के उग्र हिन्दुत्व को कुंद करने के लिए केजरीवाल ने यह कहा, यह तो साफ़ है। यह भी साफ़ है कि हिन्दुत्व आम आदमी पार्टी  की नीति नहीं है, केजरीवाल ने सिर्फ़ रणनीतिक चालाकी दिखाई।
हिन्दुत्व पर केजरीवाल की रणनीतिक चालबाजी से यह साफ़ है कि चुनावों में हिन्दुत्व का मुद्दा रहेगा, इसे सिरे से खारिज नहीं कर सकते। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नैतिक जीत है। यह विकास की राजनीति और केजरीवाल की हार भी है।
इन नतीजों से यह भी साफ़ है कि बीजेपी अपनी रणनीति में पूरी तरह नाकाम नहीं है। उसे दिल्ली की जनता ने खारिज तो कर दिया है, पर ओखला और बल्लीमारान जैसे मुसलिम-बहुल इलाक़ों के मतदान पैटर्न से लगता है कि कम से कम वहाँ तो बीजेपी का कार्ड चला है।
पूरी दिल्ली की जनता बीजेपी के साथ न सही, उसका कार्ड पूरी दिल्ली में नहीं चला, पर उसे एकदम पूरी तरह खारिज भी नहीं कर सकते। यह जहाँ बीजेपी के लिए सांत्वना की बात है, धर्मनिरपेक्ष ताक़तों को यहीं से यह मुद्दा उठाना चाहिए। 

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प्रमोद मल्लिक
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