यह गिनवाने का अभी कोई मतलब नहीं रह गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सनकी फ़ैसलों से भारत और दुनिया के शेयर बाजारों को कितना नुक़सान हुआ है। यह बताने का हल्का ही मतलब बचा है कि ट्रंप को राष्ट्रपति चुनने वाले अमेरिकी समाज के एक हिस्से को पछतावा हो रहा है और वह उनके फ़ैसलों के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरा हुआ है। इनमें कोई ट्रम्प द्वारा अमेरिका को तोड़ने का काम करने का आरोप लगा रहा है तो कोई उनके पुतिन के रूप में ढल जाने का।
अभी ट्रम्प को आये तीन महीने भी नहीं हुए हैं और चुनाव प्रचार में वे नया अमेरिका बनाने के नाम पर जो बहकी बहकी बातें करते थे, उससे भी ऊपर के फ़ैसले वे ले चुके हैं और एलन मस्क जैसे व्यवसायियों की सोच पर एक सीमा से काफी ज्यादा निर्भर भी दिखने लगे हैं। यह भी लग रहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल हो न हो अमेरिकी अर्थव्यवस्था पस्त हो जाएगी और वैश्विक ताकत वाले इस मुल्क की शान भी रसातल में जाएगी। आज अमेरिकी अर्थव्यवस्था का दुनिया में हिस्सा एक चौथाई से ज्यादा बड़ा है लेकिन दंडात्मक सीमाशुल्क लगाकर ट्रम्प अमेरिकी प्रभुता के साथ ही उसके इकबाल में भी बट्टा लगा रहे हैं।