अमेरिका में ट्रम्प भक्तों और विरोधियों के मंचन दृश्य रोचक व उग्र होते जा रहे हैं। जहां ट्रम्प भक्तों का नारा है ‘अमेरिका को फिर महान बनाओ’, वहीं देश भर में जुनूनी विरोधियों का नारा भी गूंज उठा है- ‘आओ, अमेरिका को फिर से 1932 बनायें।’ पाठकों को मालूम होगा, अमेरिका के इतिहास में वर्ष 1932 का अभूतपूर्व महत्व है। इसने अमेरिका को महामंदी की खाई में धकेल दिया था। एक साल में ही क़रीब 1 हज़ार 700 बैंक डूब गए थे। चारों तरफ़ बेकारी (33% - क़रीब एक करोड़ 40 लाख), जीडीपी 13% गिरी, भुखमरी, गरीबी, महंगाई, असंतोष, अपराध, बेबी अपहरण, फिरौती, हत्या जैसे अपराधों का राज था। भूमिगत फाफिया संस्कृति फैली हुई थी। लोगों के करोड़ों डॉलर डूब गए। लोगों को घरों से बेदखल होना पड़ा था। घरविहीनता बढ़ी। विस्थापन बढ़ा। 20वीं सदी के प्रथम महायुद्ध के बाद तीसरे दशक में आर्थिक महामंदी का विस्फोट हुआ और 1932 में यह मंदी अपने चरम पर थी। महामंदी के बावजूद चंद लोगों और परिवारों ने बॉन्ड में इन्वेस्टमेंट के माध्यम से खूब धन कमाया और ब्याजदर से तिजोरियाँ भरी थीं। इस दौर में रिपब्लिकन पार्टी का शासन था।

ऐसे हाहाकार के माहौल में अमेरिकियों ने शासन -परिवर्तन का संकल्प लिया। अमेरिकी संसद के 1932 के चुनावों में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन (वर्तमान में ट्रम्प के नेतृत्व में यह पार्टी सत्तारूढ़ है) के मध्य कड़ी चुनावी जंग हुई। राष्ट्रपति पद के लिए इस ऐतिहासिक जंग में डेमोक्रेट पार्टी के प्रत्याशी प्रसिद्ध फ्रेंक्लिन डी. रूजवेल्ट धमाके के साथ विजयी हुए और रिपब्लिकन के राष्ट्रपति प्रत्याशी हर्बर्ट हूवर बुरी तरह से हार गए।