“हम, स्वयं की शक्ति के दुरूपयोग की वज़ह से पारिस्थितिक पतन के कगार पर खड़े हैं” (युवाल नोआ हरारी, नेक्सस, पृ. X|)
इमरजेंसी: घोषित आपातकाल से अघोषित आपातकाल में
- विचार
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- 23 Jun, 2025

घोषित आपातकाल की आधी सदी हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल पर रामशरण जोशी एक शृंखला में लेख लिख रहे हैं। पढ़िए, इसकी पहली कड़ी।
संयोग से आपातकाल की अर्द्धसदी के साल में मैं डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में हूँ। संयोग है कि इसी समय अचानक ईरान-इसराइल जंग भी शुरू हो गई है। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर तड़ातड़ बमों की बरसात शुरू कर दी। जन्म से भड़ैती देश इसराइल ने ईरान के साथ जंग का अध्याय खोला। लेख के लिखे जाने तक दोनों देशों ने परस्पर तबाह करने के दावे किये हैं। लेकिन, तेहरान के हाथों तेल अवीव ने अप्रत्याशित रूप से मार खाई है। इसराइल के आका डोनाल्ड ट्रम्प भी भौंचक्के रह गए हैं। अब युद्ध विराम की जुगत में हैं। संयोग से इससे पहले पिछले महीने वे भारत-पाक के बीच संघर्ष विराम कराने का दावा भी कर चुके हैं। दोनों घटनाएं सप्ताह भर में निपट भी गईं। इसमें भी ट्रम्प और मोदी की भूमिकाओं की फ़ज़ीहत हुई।
नेपथ्य में संघर्ष विराम के असली दावेदार कौन हैं, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा। फ़ौरी तौर पर ट्रंप ने श्रेय को झपटने की कोशिश की, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी टापते ही रह गए। इस संवेदनशील मुद्दे पर उनके राष्ट्रीय सम्बोधन में क़यास ही छाया हुआ था, स्पष्टता नहीं थी। नतीज़तन, मीडिया में आलोचकों के शिकार भी हुए क्योंकि ट्रम्प ने संघर्ष विराम की घोषणा पहले की थी। क़ायदे से, इसकी घोषणा एक साथ नई दिल्ली और इस्लामाबाद से होनी चाहिए थी। यदि दोनों देशों के प्रधानमंत्री करते तो विवाद पैदा नहीं होता और नेतृत्व आत्मनिर्भर व स्वतंत्र दिखाई देते। ट्रम्प ने अपनी घोषणा में धमकी भी दे डाली कि यदि संघर्ष विराम नहीं होता है तो भारत व पाकिस्तान के साथ अमेरिका व्यापार नहीं करेगा। ट्रम्प- उवाच से सन्देश यही गया कि दोनों देश ‘यांकी सुलतान’ के सामने नतमस्तक हो गए। आम कहावत में कहें तो ‘अमेरिका बंदर निकला, शेष दोनों देश बिल्लियाँ।’