मात्र तीन दिन चले युद्ध या सैनिक अभियान ने पारंपरिक अर्थ में निर्णायक जीत हार का फ़ैसला नहीं किया लेकिन इसने भारत और पाकिस्तान के राजनेताओं में जीत और हार के दावे से लेकर दुनिया भर के सैन्य विशेषज्ञों के लिए आगे काम करने का काफ़ी मसाला दे दिया है। अब टीवी की चर्चाओं और हमारे पक्ष-विपक्ष के राजनैतिक अभियानों से किसी को भ्रम हो सकता है कि हम युद्ध का तकनीक़ और वैज्ञानिक अध्ययन और फिर सुधार का प्रयास नहीं कर रहे हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। सबको इस सैन्य कार्रवाई में इतना साफ़ लगा कि लड़ाई का मैदान बदल गया है और अगर भारत ने साफ़ बढ़त ली या अपने उद्देश्य लगभग हासिल कर लिए तो इसलिए कि उसके पास बेहतर तकनीक वाले ड्रोन थे और उसकी क्रूज मिसाइलों का निशाना सटीक बैठा जबकि पाकिस्तान बदमाशी करते हुए सिर्फ़ तोप और विमानों के सहारे हमारे नागरिक ठिकानों पर बमबारी करता रहा। 

इस हमले को भी भारत ने तकनीक के सहारे काफ़ी हद तक विफल किया क्योंकि हमारे एयर डिफेंस में बेहतर तकनीक वाले उपकरण थे। पाकिस्तान के ज़्यादातर हमलों को हवा में ही उड़ा दिया गया। हमने उनके एयर डिफेंस सिस्टम को जाम करके उनके नौ सैनिक हवाई अड्डों को निशाना बनाया और उनकी ताक़त ख़त्म की।