कुछ दिन पहले एक ड्रॉइंग रूम में, जहाँ हँसी गूँज रही थी और क्रिस्टल के गिलास चमक रहे थे, मैंने एक पंजाबी सोशलाइट — शहर की पढ़ी-लिखी, समझदार महिला— से कहा कि अब शायद भूलने और माफ़ करने का वक्त आ गया है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जो सबको साथ लेकर चले, जो आगे देखे। वो मेरी तरफ़ देखती हैं, आँखों में कुछ मिला-जुला—गर्व भी, दर्द भी। और कहती हैं: "जिस तन लगा, वही जाने।"
भूला हुआ बँटवारा: पंजाब की यादों में बंगाल का दर्द
- विचार
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- 14 Aug, 2025

पंजाब की यादों में बंगाल का दर्द
भारत के बँटवारे की कहानी अक्सर पंजाब तक सीमित रह जाती है, जबकि बंगाल ने भी उतना ही गहरा दर्द सहा। यह लेख बताता है कि कैसे पंजाब की यादों में बंगाल का बंटवारा कहीं खो सा गया है।
यानी जिसके साथ हुआ है, वही समझ सकता है। मैं चुपचाप उनकी तरफ़ देखता रहा और सोचने पर मजबूर हो गया—क्या भारत का विभाजन सिर्फ़ पंजाब में ही हुआ था? मैं उन्हें बता सकता था कि मेरी शादी एक ऐसे परिवार में हुई है जो पूर्वी बंगाल के उजड़े हुए घरों से आया है—ढाका, बरिशाल, मैमनसिंह, सिलहट।
मेरा अपना परिवार भी उस सरहद से बस एक पीढ़ी दूर है। मैं उन लोगों के बीच बड़ा हुआ हूँ जिनकी ज़िंदगी उजड़ गई—पर जिन्होंने अपनी इज़्ज़त नहीं खोई। पंजाब की त्रासदी बहुत बड़ी थी। लाशों से भरी ट्रेनें, खून से सनी ज़मीनें, डर से भागते काफ़िले—हर आँसू जायज़ है। लेकिन हमारे देश की याददाश्त एकतरफ़ा हो गई है। जब भी बँटवारे की बात होती है, ज़्यादातर लोग पंजाब की कहानी सुनाते हैं।