पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अंग्रेज़ी के सार्वजनिक इस्तेमाल पर वैसा ही प्रहार किया है, जैसा कभी गाँधीजी और लोहियाजी किया करते थे। भारत की तरह पाकिस्तान में भी क़ानून अंग्रेज़ी में बनते हैं और अदालत की बहस और फ़ैसलों की भाषा भी अंग्रेज़ी ही है। अंग्रेज़ी का विरोध कितना जायज़ है?
यह बात हिंदुस्तान पर भी लागू होती है, लेकिन हमारे किसी प्रधानमंत्री ने आज तक इमरान जैसी स्पष्टवादिता का परिचय नहीं दिया। यदि डाॅ. लोहिया प्रधानमंत्री बन गए होते तो वह तो संसद में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देते।