ज़िम्मेदारी हमारे नेताओं की उतनी नहीं है, जितनी पत्रकारों की है। पत्रकारों को कोई भी ख़बर स्पष्ट प्रमाण के बिना कतई नहीं चलानी चाहिए। युद्धों या दंगों या राष्ट्रीय विपत्तियों के समय बे-सिर-पैर की ख़बरें बहुत भयानक सिद्ध होती हैं। वे आग में घी का काम करती हैं।
हमारे टीवी चैनल अलग-अलग दावे कर रहे थे। कोई 400, कोई 350, कोई 300 और बीजेपी अध्यक्ष 250 आतंकियों के मारे जाने का दावा कर रहे थे। इस अपुष्ट ख़बर को दूसरे दिन हमारे अख़बारों ने भी ज्यों का त्यों निगल लिया।
सैनिकों ने वास्तव में ग़जब की बहादुरी दिखाई कि उन्होंने पाकिस्तान के घर में घुसकर उसे सबक़ सिखाया लेकिन उस बहादुरी को जब निराधार बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है तो हमारी सरकार की छवि भी ख़राब होती है। उसकी बातों पर से लोगों का भरोसा उठने लगता है।