हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को बड़ी हार मिली है। हार इतनी बड़ी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मंडी की जिस लोकसभा सीट को बीजेपी ने 4 लाख से ज़्यादा वोटों से जीता था, वहां भी उसे शिकस्त मिली है। तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी पार्टी के ख़िलाफ़ गए हैं। नतीजों ने बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व की चिंता इसलिए भी बढ़ाई है क्योंकि राज्य के विधानसभा चुनाव में एक साल का वक़्त बचा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदले जाने की चर्चा भी मीडिया के गलियारों में हो रही है।
हालांकि जयराम ठाकुर ने कहा कि महंगाई एक बड़ा मुद्दा रहा लेकिन इस सवाल का जवाब प्रदेश बीजेपी और राज्य सरकार के पास नहीं है कि सत्ता में होने के बावजूद चारों सीटों पर उन्हें हार कैसे मिली।
यह चुनाव हिमाचल की जनता के मूड को साफ-साफ दिखाता है कि वह राज्य में बीजेपी सरकार के कामकाज से ख़ुश नहीं है। वरना पार्टी कम से कम मंडी लोकसभा की सीट नहीं हारती।
पूरी ताक़त झोंकी थी
यह हार तब हुई है जब जयराम ठाकुर, उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों सहित बीजेपी पदाधिकारियों ने चुनाव में पूरी ताक़त झोंकी हुई थी। चुनाव की पूरी कमान ख़ुद जयराम ठाकुर ने संभाली थी। मंडी मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र है और इस वजह से भी यह हार सीधे जयराम ठाकुर पर असर करती है।
एक बड़ी बात यह है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसी राज्य से आते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से नड्डा की नज़र उपचुनाव और यहां पार्टी के प्रदर्शन पर थी।
कांग्रेस को मिली ऊर्जा
निश्चित रूप से इन नतीजों ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को बड़ी ऊर्जा दी है। माना जा रहा है कि ये नतीजे पार्टी के कार्यकर्ताओं को 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने की ताक़त देंगे। ये उपचुनाव सेमीफ़ाइनल की तरह थे और बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए पूरी ताक़त लगा दी थी। दोनों दलों ने नेताओं और कार्यकर्ताओं की फ़ौज को मैदान में उतार दिया था।बीजेपी के लिए चिंता की वजह यह भी है कि उसे कांग्रेस से काफ़ी कम वोट मिले हैं। बीजेपी को उपचुनाव में सिर्फ़ 28% वोट मिले जबकि कांग्रेस ने 48% वोट हासिल किए हैं।
बीजेपी में गुटबाज़ी?
उपचुनाव में हार की एक बड़ी वजह गुटबाज़ी को भी माना जा रहा है। इस ओर ख़ुद जयराम ठाकुर ने भी इशारा किया है। नतीजों के बाद बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इस बात को कहा भी है कि पूरे चुनाव के दौरान अकेले जयराम ठाकुर ही चेहरा थे, पार्टी के बाक़ी नेता कहां थे।
इसके अलावा टिकट वितरण में गड़बड़ी को भी बीजेपी की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है। फतेहपुर में कृपाल परमार, जुब्बल-कोटखाई में चेतन बरागटा और अर्की सीट पर पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा की अनदेखी भी पार्टी को भारी पड़ी है।
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सीएम बदलेगी बीजेपी?
ऐसे में निश्चित रूप से बीजेपी हाईकमान इस बात पर विचार कर सकता है कि क्या उसे विधानसभा चुनाव में जयराम ठाकुर के ही नेतृत्व में उतरना चाहिए। बीजेपी प्रयोग करने में हिचकती नहीं है। पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में वह कुछ ही महीने में तीन मुख्यमंत्री दे चुकी है। ऐसे में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में ही बीजेपी विधानसभा का चुनाव लड़ेगी, यह नहीं कहा जा सकता।
दूसरी ओर, कांग्रेस अगर इन नतीजों के बाद अपने बढ़े हुए मनोबल को बनाए रखती है तो वह विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर कर सकती है।
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