संदीप दीक्षित
कांग्रेस - नई दिल्ली
हार
संदीप दीक्षित
कांग्रेस - नई दिल्ली
हार
अवध ओझा
आप - पटपड़गंज
हार
प्रवेश सिंह वर्मा
बीजेपी - नई दिल्ली
जीत
सौरभ भारद्वाज
आप - ग्रेटर कैलाश
हार
1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को अब तक इंसाफ़ नहीं मिल सका है। इन दंगों की जाँच करने वाली एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उस दौरान सिख समुदाय के लोगों के साथ जमकर हैवानियत की गई। एसआईटी ने पुलिस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पुलिस ने सिखों की हत्या कर रहे किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने की कोशिश तक नहीं की।
एसआईटी के प्रमुख और दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस एस.एन धींगड़ा ने 186 मामलों की जाँच के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट कहती है कि 5 मामले ऐसे हैं जिनमें दंगाइयों ने ट्रेनों में सफर कर रहे या रेलवे स्टेशनों पर मौजूद सिखों की हत्या कर दी। रिपोर्ट के मुताबिक़, यह घटनाएं 1 और 2 नवंबर, 1984 को दिल्ली के पाँच रेलवे स्टेशनों - नांगलोई, किशनगंज, दया बस्ती, शाहदरा और तुगलकाबाद में हुईं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हत्या के इन सभी 5 मामलों में पुलिस को सिख यात्रियों पर हमला करने के बारे में सूचना दी गई थी। सिख यात्रियों को ट्रेनों से निकालकर घसीटा गया, जिंदा रहने तक मारा गया और फिर जला दिया गया। इनके शव प्लेटफ़ॉर्म और रेलवे लाइन पर बिखरे हुए मिले। लेकिन पुलिस ने मौक़े से किसी भी दंगाई को गिरफ़्तार नहीं किया।’ रिपोर्ट कहती है कि इस कारण यह बताया गया कि पुलिस की संख्या बेहद कम थी और दंगाई पुलिस को देखते ही भाग गये।
रिपोर्ट के मुताबिक़, ‘फ़ाइलों के ख़ुलासे से पता चलता है कि पुलिस की ओर से एफ़आईआर भी दर्ज नहीं की गईं और कई घटनाओं को एक ही एफ़आईआर में शामिल कर दिया।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) ने सुल्तान पुरी पुलिस स्टेशन को दंगों के बाद उन्हें मिलीं 337 शिकायतें भेजी थीं, लेकिन इन सभी शिकायतों के संबंध में एक ही एफ़आईआर दर्ज की गई और हत्या और दंगों की अन्य सभी शिकायतों को इसी एफ़आईआर में जोड़ दिया गया।
रिपोर्ट कहती है, ‘एक एफ़आईआर 498 घटनाओं से संबंधित थी और केवल एक जाँच अधिकारी को इस मामले में नियुक्त किया गया था। कुछ मामलों में एफ़आईआर किसी पुलिस अधिकारी द्वारा एसएचओ को दी गई जानकारी के आधार पर दर्ज की गईं। इन जानकारियों में यह कहा गया था कि पीड़ित ने दंगाई की पहचान की और उसका नाम और पता भी बताया।’
रिपोर्ट कहती है, ‘लेकिन बाद में इन सभी मामलों को इस आधार पर बंद कर दिया गया कि पीड़ितों ने सूचनाओं की पुष्टि नहीं की थी। इससे यह साफ़ है कि पुलिस की ओर से यह केस कुछ ख़ास लोगों को क्लीन चिट देने के लिए ही दर्ज किये गये थे।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले की जाँच कर रहे जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग को दंगाइयों द्वारा की गई हत्या, लूट के बारे में आरोपियों के नाम के साथ सैकड़ों हलफ़नामे दिये गये लेकिन इन हलफ़नामों के आधार पर संबंधित पुलिस थानों को एफ़आईआर दर्ज करने और जाँच के निर्देश देने के बजाय कमेटी पर कमेटी बनती रहीं और इस वजह से केस दर्ज होने में सालों लग गए।
सर्वोच्च अदालत ने जनवरी 2018 में इन मामलों की जाँच के लिए एसआईटी गठित की थी और रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर राजदीप सिंह और आईपीएस अफ़सर अभिषेक दुलार को इसमें रखा था। हालाँकि राजदीप सिंह ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।
31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद देश भर में कई जगहों पर दंगे भड़क उठे थे। इन दंगों में हज़ारों सिख परिवारों को अपने क़रीबियों को खोना पड़ा था। दंगों के दोषियों को सजा दिलाने और इंसाफ़ की माँग को लेकर आज भी पीड़ित दिल्ली सहित कई जगहों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। इंदिरा गाँधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, दंगों में लगभग 3,000 सिखों की मौत हुई थी और इन दंगों में सबसे ज़्यादा हिंसा दिल्ली में हुई थी। लेकिन दंगा पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले लोग बताते हैं कि देश भर में 5,000 सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
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