नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को 24 साल पुराने मानहानि मामले में गिरफ्तार किया। यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा दायर किया गया था, जब वह 2000 में गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) के प्रमुख थे। पाटकर की गिरफ्तारी दिल्ली की साकेत कोर्ट द्वारा बुधवार को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी करने के बाद हुई, क्योंकि उन्होंने कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया था। हालांकि कुछ घंटे बाद अदालत ने उनके वकील के आश्वासन के बाद मेधा पाटकर पाटकर जमानत दे दी। उनके वकील ने वादा किया कि मेधा पाटकर अदालत के सभी आदेशों का पालन करेंगी।

पूरा मामला क्या है, दिल्ली के एलजी कैसे जुड़े हैं

यह विवाद 24 नवंबर, 2000 को मेधा पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति से शुरू हुआ, जिसका शीर्षक था "ट्रू फेस ऑफ पैट्रियट"। इस विज्ञप्ति में पाटकर ने वीके सक्सेना पर कई गंभीर आरोप लगाए थे, जिनमें उन्हें "कायर" कहा गया, हवाला लेनदेन में शामिल होने का दावा किया गया और गुजरात के लोगों और संसाधनों को विदेशी हितों के लिए "बेचने" का आरोप शामिल था। उस समय सक्सेना नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज (NCCL) के अध्यक्ष थे और सरदार सरोवर परियोजना का समर्थन कर रहे थे। जबकि पाटकर इस परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं। सक्सेना ने 18 जनवरी, 2001 को पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि उनके बयान झूठे थे और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए दिए गए थे।

पिछले साल मई 2024 में, दिल्ली की एक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पाटकर के बयानों को मानहानिक करार देते हुए उन्हें दोषी ठहराया। 1 जुलाई, 2024 को कोर्ट ने उन्हें पांच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। कोर्ट ने माना कि पाटकर के बयान न केवल मानहानिक थे, बल्कि सक्सेना की सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए "जानबूझकर तैयार किए गए" थे।

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हालांकि, 8 अप्रैल, 2025 को साकेत की सत्र अदालत ने पाटकर को राहत देते हुए उनकी जेल की सजा को एक साल के प्रोबेशन में बदल दिया और जुर्माने को 10 लाख से घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि पाटकर को 25,000 रुपये का प्रोबेशन बॉन्ड और इतनी ही राशि का एक जमानती जमा करना होगा। कोर्ट ने पाटकर की सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रतिष्ठा और उनके स्वच्छ आपराधिक रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया था।

पाटकर ने कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया और न ही प्रोबेशन बॉन्ड जमा किया, न ही 1 लाख रुपये का जुर्माना भरा। इसके अलावा, वह कोर्ट में पेश होने में भी विफल रहीं। इसके चलते साकेत कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2025 को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। कोर्ट ने माना कि पाटकर "जानबूझकर" आदेशों की अवहेलना कर रही हैं। शुक्रवार को दिल्ली पुलिस ने इस वारंट के आधार पर पाटकर को गिरफ्तार किया। उन्हें साकेत कोर्ट में पेश किया जाएगा, जहां आगे की सुनवाई होगी।

पाटकर ने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की थी और दिल्ली हाई कोर्ट से व्यक्तिगत पेशी से छूट मांगी थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल, 2025 को उनकी याचिका खारिज कर दी और उन्हें सत्र अदालत में राहत के लिए आवेदन करने को कहा। पाटकर के वकील ने तर्क दिया कि वह दिल्ली में मौजूद नहीं थीं और उनकी उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं हैं। इसके बावजूद, कोर्ट ने सजा के निष्पादन को स्थगित करने से इनकार कर दिया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन और सक्सेना का विवाद

यह मामला नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) और सक्सेना के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव का हिस्सा है। NBA नर्मदा नदी पर बांध निर्माण के खिलाफ आंदोलन कर रहा था, जिसके कारण विस्थापन और पर्यावरणीय नुकसान का मुद्दा उठा था। दूसरी ओर, सक्सेना की संस्था NCCL सरदार सरोवर परियोजना का समर्थन कर रही थी। इस दौरान दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई आरोप लगाए। पाटकर ने दावा किया था कि सक्सेना ने NBA को एक चेक दान किया था, जो बाद में बाउंस हो गया, जिसे सक्सेना ने झूठा करार देते हुए मानहानि का मुकदमा दायर किया।

वीके सक्सेना अब दिल्ली के एलजी हैं और बीजेपी से अपने संबंधों के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली में पिछली केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी ने भी सक्सेना पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे। आप का आरोप था कि बीजेपी से नजदीकी संबंधों और गुजरात की संस्थाओं से जुड़े होने की वजह से सक्सेना को दिल्ली का उपराज्यपाल बनाया गया था।

मेधा पाटकर की गिरफ्तारी ने एक बार फिर नर्मदा बचाओ आंदोलन और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुद्दों को सुर्खियों में ला दिया है। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है। पाटकर के समर्थक इसे उनके आंदोलन को दबाने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जबकि सक्सेना के पक्ष का कहना है कि यह उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा का मामला है। कोर्ट की सुनवाई में यह तय होगा कि पाटकर को जमानत मिलती है या आगे की कानूनी प्रक्रिया में क्या कदम उठाए जाएंगे।

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सेकुलर छवि वाली मेधा पाटकर को पर्यावरण और अन्य सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों के लिए जाना जाता है। मौजूदा सरकार उन्हें पसंद नहीं करती है। मेधा पाटकर ने नेता विपक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का न सिर्फ समर्थन किया था, बल्कि वो इसमें शामिल भी हुई थीं। उनकी गिरफ्तारी को उन्हें चुप कराने की कोशिश माना जा रहा है। भारत में इस समय कई सामाजिक कार्यकर्ता इन्हीं वजहों से इस समय जेल में हैं। कुछ पर तो अभी मुकदमा भी नहीं शुरू हुआ। ऐसे ही एक सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत पुलिस हिरासत में बीमार होने के दौरान हुई थी। फादर स्वामी को इलाज नहीं मिला था।