अमेरिका को क्या अब रूस के बाद ईरान से भी भारतीय तेल ख़रीद पर आपत्ति है? कम से कम अमेरिकी प्रशासन ने ईरान के ऊर्जा व्यापार को निशाना बनाने वाले अपने 'मैक्सिमम प्रेशर कैंपेन' के तहत गुरुवार को भारतीयों के ख़िलाफ़ एक बड़ा क़दम उठाया है। अमेरिकी वित्त विभाग के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय यानी ओएफएसी ने ईरान से तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और पेट्रोकेमिकल्स के व्यापार में शामिल होने के आरोप में 9 भारतीय कंपनियों और 8 भारतीय नागरिकों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह कार्रवाई ईरान के ऊर्जा निर्यात नेटवर्क को ध्वस्त करने की दिशा में अमेरिका की चल रही मुहिम का हिस्सा है। इसका मक़सद तेहरान की आय के स्रोतों को काटना है।

अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने एक बयान में कहा, 'वित्त विभाग ईरान के ऊर्जा निर्यात मशीन के प्रमुख स्रोतों को ध्वस्त करके तेहरान के नकदी प्रवाह को कमजोर कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में यह प्रशासन ईरान के आतंकवादी समूहों को आर्थिक सहायता देने के प्रयास को बाधित कर रहा है, जो अमेरिका के लिए ख़तरा पैदा करते हैं।' ओएफएसी के अनुसार, ये प्रतिबंध 50 से अधिक व्यक्तियों, कंपनियों और जहाजों पर लगाए गए हैं। इनमें भारतीय यूनिट प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इन प्रतिबंधों के तहत अमेरिका में इन कंपनियों और व्यक्तियों की सभी संपत्तियां जब्त की जा सकती हैं और अमेरिकी नागरिकों या कंपनियों को इनके साथ किसी भी प्रकार का लेन-देन करने की मनाही है।

इन भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध

अमेरिकी अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि इन 9 भारतीय कंपनियों ने ईरानी पेट्रोकेमिकल्स के आयात और व्यापार में कुल 423 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 3500 करोड़ रुपये की लेन-देन की हैं। ये कंपनियां मुख्य रूप से छोटे-मध्यम आकार की हैं और हाल के वर्षों में स्थापित की गई हैं। इनका ईरान के 'शैडो फ्लीट' से जुड़ाव अमेरिकी प्रतिबंधों का साफ़ उल्लंघन माना जा रहा है।

नीती उन्मेष भट्ट द्वारा 100% स्वामित्व वाली इंडिसोल प्राइवेट लिमिटेड ईरानी पेट्रोकेमिकल्स के व्यापार में शामिल बताई गई है। कासाट परिवार द्वारा नियंत्रित हरेस पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड भी ईरानी तेल उत्पादों के आयात में सक्रिय थी। इनके अलावा अलकेमिकल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, पर्सिस्टेंट पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड, कांचन पॉलीमर्स, रामनिक्लाल एंड कंपनी, जुपिटर डाई केम, ग्लोबल इंडस्ट्रियल केमिकल्स भी शामिल हैं।

ये कंपनियाँ ईरान के राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईओसी और ईरानी सैन्य से जुड़े नेटवर्क के माध्यम से तेल और गैस उत्पादों का परिवहन और मार्केटिंग करती थीं।

ओएफएसी ने कहा कि ये सौदे ईरान को मध्य पूर्व में 'अस्थिर करने वाली गतिविधियों' और आतंकवादी संगठनों को फंड देने के लिए धन उपलब्ध कराते हैं।

इन भारतीयों पर प्रतिबंध

आठ भारतीय नागरिकों पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो इन कंपनियों के निदेशक, शेयरधारक या मालिक हैं। इनमें से तीन नागरिक ऐसे जहाजों के संचालन से जुड़े हैं, जिन्होंने ईरान से 50 लाख बैरल से अधिक तेल और एलपीजी का परिवहन किया। मार्शल द्वीप समूह-आधारित बर्था शिपिंग इंक. के मालिक वरुण पुला कोमोरोस झंडे वाले जहाज 'पामिर' का संचालन करते हैं। इस जहाज ने जुलाई 2024 से चीन को 40 लाख बैरल ईरानी एलपीजी की सप्लाई की। वेगा स्टार शिप मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड की मालकिन सोनिया श्रेष्ठ कोमोरोस झंडे वाले जहाज 'नेप्टा' का संचालन करती हैं। यह जहाज जनवरी 2025 से पाकिस्तान को ईरानी एलपीजी निर्यात कर रहा था।
इवी लाइन्स इंक. के मालिक इयप्पन राजा के जहाजों ने ईरानी ऊर्जा उत्पादों का परिवहन किया। इनके अलावा नीती उन्मेष भट्ट, कासाट परिवार के सदस्य, जुगविंदर सिंह बरार शामिल हैं। ये व्यक्ति ईरान के शीर्ष राजनीतिक सलाहकार अली शमखानी के बेटे मोहम्मद हुसैन शमखानी के नियंत्रित शिपिंग साम्राज्य से जुड़े बताए जाते हैं, जो ईरान और रूस से तेल का परिवहन करता है।

अमेरिकी रणनीति

यह कार्रवाई डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की ईरान विरोधी नीति के तहत की गई है। यह 2018 के कार्यकारी आदेश के तहत चल रही है। जुलाई 2025 में भी 8 भारतीय कंपनियों और 5 नागरिकों पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे, जबकि फरवरी 2025 में 4 भारतीय फर्मों (फ्लक्स मैरीटाइम एलएलपी, बीएसएम मरीन एलएलपी, ऑस्टिनशिप मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड, कोस्मोस लाइन्स इंक.) को निशाना बनाया गया। अमेरिका का दावा है कि ईरान के ऊर्जा निर्यात से अरबों डॉलर की कमाई होती है जो हिजबुल्लाह जैसे समूहों को मजबूत करती है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से ईरान के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध रखे हैं, लेकिन 2019 के बाद से आधिकारिक तेल आयात लगभग शून्य हो चुका है। फिर भी छोटे पैमाने पर मध्यस्थों के माध्यम से अप्रत्यक्ष व्यापार जारी रहा, जो अब अमेरिकी निगरानी के दायरे में आ गया है। जानकारों का कहना है कि ये प्रतिबंध भारतीय पेट्रोकेमिकल व्यापार को वैश्विक स्तर पर प्रभावित करेंगे, क्योंकि अमेरिकी बाजार और वित्तीय प्रणाली से बहिष्कार से इन कंपनियों का कारोबार ठप हो सकता है।

जानकारों का अनुमान है कि इन प्रतिबंधों से भारत-ईरान व्यापार पर और दबाव पड़ेगा, जबकि वैश्विक ऊर्जा बाजार में ईरानी तेल की 'छाया' आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। भारत जैसे आयातक देशों को वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भरता बढ़ानी पड़ सकती है। यह घटना अमेरिका-भारत संबंधों में भी एक चुनौती पैदा कर सकती है, क्योंकि नई दिल्ली ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट्स में निवेश किए हुए है।