इकोनॉमिक्स इंटलिजेंस यूनिट नाम की संस्था की वर्ष 2017 के लिए आई रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के सिर्फ़ 19 देशों में पूरी तरह से लोकतंत्र कायम है। बाक़ी देशों में लोकतंत्र सही रूप में नहीं है। भारत भी उनमें से एक है। इसमें भारत 42वें स्थान पर है। संस्था के बयान में कहा गया है, 'रूढ़िवादी धार्मिक विचारों के बढ़ने से भारत प्रभावित हुआ। धर्मनिरपेक्ष देश में दक्षिणपंथी हिंदू ताक़तों के मज़बूत होने से अल्पसंख्यक समुदायों और असहमत होने वाली आवाज़ों के खिलाफ़ हिंसा को बढ़ावा मिला है।'
आने वाले दिन देश की मूलभूत संरचना के सामने बहुत सी चुनौतियाँ पेश करेंगे और ऐसे समय में बेहतर होगा कि मैं अपने काम को जारी रखने के लिए और लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए आईएएस से बाहर रहूँ।
दक्षिण कन्नड़ में थे डिप्टी कमिश्नर
शशिकांत ने 2017 में दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में डिप्टी कमिश्नर का पदभार संभाला था। इस दौरान वह इस ज़िले के अब तक के सबसे सक्रिय डिप्टी कमिश्नर (उपायुक्त) के रूप में जाने जाते रहे। 40 साल के सेंथिल तमिलनाडु के रहने वाले हैं और उन्होंने तिरुचिरापल्ली के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज ऑफ़ भारतीसदन यूनिवर्सिटी से प्रथम श्रेणी में बीई (इलेक्ट्रॉनिक्स) की पढ़ाई पूरी की।
सेंथिल 2009 से 2012 के बीच बल्लारी में सहायक आयुक्त के रूप में कार्यरत रहे। वह शिवमोग्गा ज़िला पंचायत के दो कार्यकाल तक मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी रहे। इसके अलावा सेंथिल चित्रदुर्ग और रायचूर ज़िलों के भी डिप्टी कमिश्नर रह चुके हैं। वह नवंबर 2016 में ख़ान और भूविज्ञान विभाग में निदेशक का कार्यभार संभाल चुके हैं।
कन्नन गोपीनाथन भी कर चुके हैं ऐसा
यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी आईएएस अधिकारी ने लोकतंत्र की ध्वस्त हो रही मूल भावना के नाम पर इस्तीफ़ा दिया है। इससे पहले अगस्त महीने में आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने भी अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
उन्होंने भी अपने इस्तीफ़े के पीछे किसी निजी कारण को नहीं बताया था। गोपीनाथन ने साफ कहा था कि उनका इस्तीफ़ा कश्मीर के ख़िलाफ़ की गई राजकीय कार्रवाई से असहमति के कारण दिया गया है। उन्होंने कहा कि-
कल अगर कोई मुझसे पूछे कि जिस वक़्त दुनिया का एक बड़ा जनतंत्र एक पूरे राज्य पर पाबंदी लगा रहा था और उसके नागरिकों के मौलिक अधिकार तक छीन रहा था, आप क्या कर रहे थे तब कम से कम मैं कह सकूँ कि मैंने (उसकी सेवा से) इस्तीफ़ा दिया था।
उन्होंने कहा था कि वह प्रशासनिक सेवा में इस उम्मीद के साथ शामिल हुए थे कि वह उन लोगों की आवाज़ बनेंगे जिनको खामोश कर दिया गया है। लेकिन वह यहाँ अपनी ही बोलने का आज़ादी गँवा बैठे।
सवाल उठता है कि देश की सबसे बड़ी प्रतिष्ठित सरकारी सेवा आईएएस को ये लोग क्यों छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं? व्यवस्था को सुधारने के लिए आईएएस में आने वाले इन अफ़सरों के लिए इस्तीफ़ा देने के लिए फ़ैसला करना क्या इतना आसान रहा होगा?