अरावली पहाड़ पर सुप्रीम कोर्ट की हाल की नई परिभाषा और मोदी सरकार का रुख तूल पकड़ रहा है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इससे खनन के रास्ते खुल जाएंगे। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बचाव में कहा कि सिर्फ 0.19% क्षेत्र ही प्रभावित है।
ये अरावली पहाड़ है, जिसका दोहन कई दशक से हो रहा है। इसके जंगल खत्म किए जा रहे हैं
अरावली पर्वत श्रृंखला की नई परिभाषा को लेकर राजनीतिक और पर्यावरणीय विवाद तेज हो गया है। कांग्रेस ने मंगलवार को मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए पूछा कि सरकार अरावली को फिर से परिभाषित करने पर क्यों "अड़ी" है और यह किसके फायदे के लिए किया जा रहा है? पार्टी ने इसे देश की प्राकृतिक धरोहर और पारिस्थितिक महत्व वाली श्रृंखला की सुरक्षा के लिए खतरा बताया। दूसरी तरफ मोदी सरकार इस बात पर अड़ी हुई है कि बहुत मामूली सा क्षेत्र नई परिभाषा के तहत आएगा और कोई नुकसान नहीं होगा। अतीत में अरावली में खनन माफिया सक्रिय रहे हैं जो विधायक, सांसद और मंत्री तक बने। कांग्रेस का कहना है कि अरावली में फिर से खनन का रास्ता खोला जा रहा है। अरावली को लेकर राजस्थान और हरियाणा में प्रदर्शन हो रहे हैं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर 23 दिसंबर को लिखा, "अरावली हमारी प्राकृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और इनका बड़ा महत्व है। इन्हें बड़े पैमाने पर संरक्षण और सार्थक सुरक्षा की जरूरत है। मोदी सरकार इन्हें फिर से परिभाषित करने पर क्यों आमादा है? किस उद्देश्य से? किसके लाभ के लिए? और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया जैसी पेशेवर संस्था की सिफारिशों को जानबूझकर क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है?"
रमेश की यह टिप्पणी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के हालिया स्पष्टीकरण के जवाब में आई है। यादव ने सोमवार को कांग्रेस पर "गलत जानकारी फैलाने" का आरोप लगाते हुए कहा कि अरावली क्षेत्र के केवल 0.19 प्रतिशत हिस्से में ही कानूनी खनन की अनुमति है और मोदी सरकार अरावली की सुरक्षा और संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के शासनकाल में राजस्थान में अवैध खनन को बढ़ावा मिला था।
जयराम रमेश ने सरकारी आंकड़े को भ्रामक कहा
हालांकि, रमेश ने मंत्री के दावे को भ्रामक बताया। उन्होंने कहा कि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्र में 0.19 प्रतिशत भी लगभग 68,000 एकड़ का विशाल क्षेत्र है। साथ ही, यह आंकड़ा धोखेबाजी वाला है क्योंकि यह चार राज्यों के 34 अरावली जिलों की पूरी भूमि को आधार मानता है, जबकि सही आधार अरावली श्रृंखला का वास्तविक क्षेत्र होना चाहिए। रमेश के अनुसार, सत्यापन योग्य डेटा वाले 15 जिलों में अरावली कुल भूमि का करीब 33 प्रतिशत हिस्सा कवर करती है, ऐसे में 0.19 प्रतिशत का आंकड़ा वास्तविकता से बहुत कम है।
रमेश ने चेतावनी दी कि नई परिभाषा से अरावली का बड़ा हिस्सा सुरक्षा कवच से बाहर हो जाएगा, जिससे खनन और विकास के लिए रास्ता खुलेगा। दिल्ली-एनसीआर में अरावली की कई ऊंची पहाड़ियां रियल एस्टेट विकास के लिए खुल जाएंगी, जिससे पर्यावरणीय तनाव बढ़ेगा। उन्होंने सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमाओं को फिर से खींचने की केंद्र की समानांतर योजना की भी आलोचना की, जो खनन की अनुमति देगी और आपस में जुड़े ईको सिस्टम को बर्बाद करेगी।
सुप्रीम कोर्ट की नवंबर 2025 की परिभाषा
विवाद की जड़ नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, जिसमें पर्यावरण मंत्रालय की अगुवाई वाली समिति की सिफारिश पर अरावली की एकसमान कानूनी परिभाषा स्वीकार की गई। इसके तहत "अरावली हिल" वह भूमि रूप है जो स्थानीय आसपास के इलाके से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो, और "अरावली रेंज" दो या अधिक ऐसी पहाड़ियां जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हों।
मोदी सरकार का कहना है कि यह परिभाषा स्पष्ट है और पर्यावरण संरक्षण को विकास की जरूरतों से संतुलित करती है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने जोर दिया कि कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी जब तक वैज्ञानिक अध्ययन पूरा न हो जाएगा। यानी मंत्री के बयान का अर्थ यह है कि नई खनन लीज उन जगहों पर दे दी जाएगी, जिन इलाकों का वैज्ञानिक अध्ययन पूरा हो जाएगा। सरकार की तरफ से स्थिति साफ नहीं की जा रही है। दूसरी तरफ अरावली की परिभाषा बदलने से नाराज़ हैं। उनका कहना है कि पहले अरावली पूरी तरह कानूनी रूप से संरक्षित थी लेकिन अब उसे एकदम से घटा दिया गया है। एक बड़े हिस्से का दोहन शुरू हो जाएगा।
अरावली बचाने को लेकर सिरोही में लोगों ने रैली की।
सड़कों पर उतरा विरोध
विवाद सड़कों तक पहुंच गया है। हाल के दिनों में हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और राजस्थान के सिरोही, उदयपुर जैसे शहरों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए, जहां निवासियों, किसानों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और वकीलों ने चिंता जताई। 'पीपल फॉर अरावली' ग्रुप की संस्थापक नीलम अहलूवालिया ने कहा कि नई परिभाषा दिल्ली की तरफ बढ़ते रेगिस्तान को रोकने, भूजल रिचार्ज और आजीविका सुरक्षा में अरावली की भूमिका को कमजोर करेगी। पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत टोंगर ने जोर दिया कि अरावली को केवल ऊंचाई से नहीं, बल्कि इसके ईको सिस्टम, भूवैज्ञानिक और जलवायु भूमिका से परिभाषित करना चाहिए।
यह मुद्दा पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास के बीच लंबे संघर्ष को उजागर करता है। आने वाले दिनों में विरोध और तेज होने की संभावना है। राजस्थान में पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने मोदी सरकार की निन्दा करते हुए आंदोलन को पूरा समर्थन देने की घोषणा की है।
अरावली पहाड़ी जिन प्रमुख शहरों से होकर गुज़र रही है, वहां इसका सबसे ज्यादा दोहन हो रहा है। दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद में प्रॉपर्टी डीलरों ने प्लॉट काट कर बेच दिया है। जहां विशालकाय अपार्टमेंट खड़े हो गए। फरीदाबाद और गुड़गांव में अरावली के जंगल पूरी तरह खत्म कर दिए गए हैं। फरीदाबाद-गुड़गांव में कई नेताओं के फॉर्म हाउस भी हैं। यही स्थिति राजस्थान में है। राजस्थान का खनन माफिया को अब बीजेपी नेताओं का संरक्षण मिला हुआ है या फिर वे खुद ही खनन गतिविधियों में लगे हुए हैं।