2022 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निपथ योजना ने युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया था। चार साल की छोटी अवधि वाली अनुबंध आधारित भर्ती योजना, जिसमें केवल 25 प्रतिशत युवाओं को ही स्थायी नौकरी का मौका मिलता है, ने पूरे देश में तीव्र विरोध प्रदर्शन भड़का दिए थे। उत्तर प्रदेश में इन प्रदर्शनों के दौरान 51 मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें सैकड़ों युवा फंस गए। 
अब, तीन साल बाद, राज्य सरकार इन मामलों की समीक्षा कर रही है, ताकि निर्दोष युवाओं को नौकरी के नए अवसर मिल सकें। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक गलत केस किसी युवा की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है? इंडियन एक्सप्रेस की विशेष रिपोर्ट में उन युवाओं की कहानी बयां की गई है, जिनके परिवारों ने सेना में भर्ती को एक सपना बनाया था।
अग्निपथ योजना की घोषणा जून 2022 में हुई थी, जो सेना, नौसेना और वायुसेना में भर्ती का नया मॉडल थी। योजना के तहत युवाओं को चार साल के लिए 'अग्निवीर' के रूप में भर्ती किया जाता है, लेकिन उसके बाद केवल 25 प्रतिशत को ही स्थायी रूप से रखा जाता है। बाकी युवा निजी क्षेत्र या अन्य नौकरियों के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं। इस योजना को स्थायी सरकारी नौकरी के अवसरों पर हमला माना गया, जिसके चलते उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुए। जौनपुर (11 मामले), वाराणसी (9), चंदौली (8), अलीगढ़ (4), मथुरा (3), बलिया (3), गाजीपुर (3), गोरखपुर (2) और बस्ती (2) जैसे जिलों में तो हंगामा चरम पर था। प्रदर्शनकारियों पर पथराव, ट्रेनें और वाहनों को नुकसान पहुंचाने, पुलिस पर हमला और लूट जैसे 51 मामले दर्ज किए गए। पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर किया। सरकार ने आरोप लगाया था कि विपक्षी दलों और असामाजिक तत्वों ने युवकों को भड़काया, जिसके चलते कई निर्दोष फंस गए।

मथुरा जिले के नागला झींगा गांव के 25 वर्षीय दीपक की कहानी इस दर्द को बयां करती है। जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले दीपक ने करीब चार साल तक सेना में जवान बनने की तैयारी की थी। लेकिन 18 जून 2022 को मथुरा हाईवे पुलिस स्टेशन के एक मामले में उन्हें 33 अन्य युवाओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर राजमार्ग जाम करने, पुलिस को गाली देने, पथराव करने और संपत्ति नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा। 400-500 अज्ञात युवाओं के साथ नाम जोड़ दिया गया। जेल में एक महीना काटने के बाद जमानत मिली, लेकिन तब तक उनकी जिंदगी बदल चुकी थी। 
दीपक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “यह मेरी आखिरी कोशिश थी सेना में जवान बनने की... इसके साथ ही मेरे और मेरे परिवार के सारे सपने चूर-चूर हो गए।” अब सरकारी नौकरी का रास्ता बंद हो चुका है। ऊपरी आयु सीमा 21 वर्ष होने के कारण सेना भर्ती का मौका भी हाथ से निकल गया। परिवार की आर्थिक तंगी के चलते कोचिंग या आगे पढ़ाई संभव नहीं। दीपक अब 12 घंटे की निजी नौकरी कर रहे हैं। उनका कहना है कि “सरकार को युवाओं को कम से कम एक मौका तो देना चाहिए। एक केस से पूरी जिंदगी नष्ट नहीं होनी चाहिए।”
इसी गांव के 24 वर्षीय हरि ओम की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं। 26 दिनों तक जेल में रहने के बाद जमानत मिली, लेकिन सेना का सपना टूट गया। हरि ओम ने कहा- “सेना में भर्ती होना सिर्फ एक युवक का सपना नहीं, बल्कि पूरे परिवार का सपना है। मैं अपने माता-पिता को गर्व महसूस कराना चाहता था।” अब वे परिवार के छोटे से खेत पर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, “हमने देश की सेवा का सपना देखा था। कइयों ने सेना भर्ती का मौका खो दिया (ज्यादातर के लिए ऊपरी सीमा 21 वर्ष है)। लेकिन अगर हमारे केस वापस हो जाएं, तो पुलिस, होम गार्ड या अन्य सुरक्षा बलों में मौका मिल सकता है।”

गौतम बुद्ध नगर जिले में भी यही दर्द है। 24 वर्षीय कपिल के पिता प्रह्लाद सिंह ने तीन बच्चों को पालने के लिए कड़ी मेहनत की। कपिल सरकारी नौकरी से परिवार को सम्मान और स्थिरता देना चाहते थे। 17 जून 2022 को 75 अन्य युवाओं के साथ गिरफ्तार हुए। कपिल ने कहा- “मैं अपने पिता का सहारा बनना चाहता था और परिवार में सम्मान लाना चाहता था।” अब वे ग्रेजुएशन पूरा कर निजी क्षेत्र की नौकरी की तलाश में हैं।

उनके साथी 23 वर्षीय बादल भी उसी मामले में फंसे। 2023 में वे भाजपा विधायक धीरेंद्र सिंह से मिले और केस वापसी की गुहार लगाई। बादल अब स्टॉक ट्रेडिंग में लगे हैं। बादल ने दर्द भरे लहजे में कहा- “यह केस सिर्फ हमारे सपनों को नष्ट नहीं कर रहा, बल्कि परिवार पर बोझ बन गया है। वकील जमानत के लिए पैसे मांगते हैं। इस उम्र में फंस जाना कैसी जिंदगी है?” 
इन युवाओं के मुकदमों की सुनवाई अभी भी चले रही है। लगभग हर महीने कोर्ट जाना पड़ता है। चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, लेकिन ट्रायल शुरू नहीं हुआ। कानूनी खर्चों ने परिवारों को कंगाल कर दिया। कई युवा निजी नौकरियों, खेती या जोखिम भरे स्टॉक ट्रेडिंग में लग गए। भाजपा विधायक धीरेंद्र सिंह ने सितंबर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इन मामलों की समीक्षा की मांग की। 
सिंह ने कहा- “मैं इस मुद्दे पर जोर दे रहा हूं क्योंकि यह युवा छात्रों के भविष्य से जुड़ा है। हर जरूरी कदम उठाया जाएगा।” अब उत्तर प्रदेश सरकार इन 51 मामलों की समीक्षा शुरू कर चुकी है। जिलों से पुलिस और मजिस्ट्रेटों की रिपोर्ट मंगाई जा रही है। निर्दोष साबित होने वाले युवाओं को केस वापस कर सरकारी नौकरियों का रास्ता खोलने की उम्मीद है।
अग्निपथ योजना ने न केवल व्यक्तिगत सपनों को कुचला, बल्कि परिवारों की आकांक्षाओं को भी ठेस पहुंचाई। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में, जहां सरकारी नौकरी ही स्थिरता का प्रतीक है, एक केस युवा की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है। सरकार की समीक्षा से क्या ये युवा नई शुरुआत कर पाएंगे? समय ही बताएगा। लेकिन एक बात साफ है, सेना में भर्ती सिर्फ एक व्यक्ति का सपना नहीं, बल्कि पूरे परिवार की उम्मीद है। इसे तोड़ना आसान नहीं, लेकिन जोड़ना जरूरी है।