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भ्रामक विज्ञापन केस में रामदेव ने मांगी माफी

भ्रामक विज्ञापन में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने बिना शर्त माफी मांगी है। माफीनामा वाला हलफनामा इस शनिवार को दाखिल किया गया। जबकि पिछली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि द्वारा मांगी गई माफी को स्वीकार नहीं किया था और हलफनामा दायर करने को कहा था। अब इस मामले की सुनवाई बुधवार को होगी। 

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पिछले महीने पतंजलि द्वारा मांगी गई माफ़ी को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा था, 'हम आपकी माफी से खुश नहीं हैं।' कोर्ट ने कहा था कि आपकी माफी इस अदालत को राजी नहीं कर रही है, यह सिर्फ़ दिखावटी बयानबाज़ी है। पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक बाबा रामदेव और प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने अदालती वादे का उल्लंघन करते हुए भ्रामक चिकित्सा विज्ञापन दिए थे। इसके प्रकाशन पर उनके खिलाफ अवमानना मामले की कार्रवाई शुरू की गई है।

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अवमानना का मामला एलोपैथी पर हमला करने वाले और कुछ बीमारियों के इलाज के दावे करने वाले पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद बना है। शीर्ष अदालत की फटकार पर पतंजलि ने पिछले नवंबर में आश्वासन दिया था कि वह ऐसे विज्ञापनों से परहेज करेगी।

यह देखते हुए कि भ्रामक विज्ञापन जारी रहे, 27 फरवरी को कोर्ट ने पतंजलि और उसके एमडी बालकृष्ण को अवमानना नोटिस जारी किया था। इसके अलावा इसने पतंजलि को अपने उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से रोक दिया था।

यह देखते हुए कि मार्च में अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया गया था, पतंजलि एमडी के साथ-साथ बाबा रामदेव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा गया था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद पतंजलि एमडी ने एक हलफनामा दायर कर कहा था कि विवादित विज्ञापनों में केवल सामान्य बयान थे और अनजाने में आपत्तिजनक वाक्य भी शामिल हो गए थे। 
आचार्य बालकृष्ण के हलफनामे में कहा गया था कि विज्ञापन प्रामाणिक थे और पतंजलि के मीडिया कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट के नवंबर के आदेश की जानकारी नहीं थी।

हलफनामे में यह भी कहा गया कि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट एक पुरातन अवस्था में था क्योंकि इसे ऐसे समय में लागू किया गया था जब आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में वैज्ञानिक सबूतों की कमी थी।

पिछली तारीख पर बाबा रामदेव और एमडी बालकृष्ण दोनों कोर्ट में मौजूद थे। उस दौरान बाबा रामदेव का हलफनामा रिकॉर्ड पर नहीं था, अदालत ने एमडी बालकृष्ण के हलफनामे के बारे में अपनी आपत्ति जताई और उसे महज दिखावा क़रार दिया था। 

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अदालत ने कहा था, 'आपको अदालत को दिए गए वचन का पालन करना होगा, आपने हर सीमा तोड़ दी है।' अदालत ने कहा, 'यह पूरी तरह अवमानना है। सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, देश भर की अदालतों द्वारा पारित हर आदेश का सम्मान किया जाना चाहिए।'

पिछली सुनवाई में अदालत ने केंद्र की भी खिंचाई करते हुए पूछा था कि आयुष मंत्रालय ने तब अपनी आंखें बंद क्यों रखीं जब पतंजलि यह कहते हुए शहर दर शहर जा रही थी कि एलोपैथी में कोविड का कोई इलाज नहीं है।

कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को इस मामले में एक हफ्ते में अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया था। अब यह हलफनामा दायर कर दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को तय करते हुए पीठ ने निर्देश दिया था कि ये दोनों अगली तारीख पर उसके समक्ष उपस्थित रहेंगे।

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क़मर वहीद नक़वी
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