राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने फिर से सरकार पर बड़ी चोट की है। उन्होंने कहा है कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य आम लोगों की पहुँच से बाहर हो गये हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि जो पहले सेवा थी उसको अब धंधा और मुनाफा का ज़रिया बना दिया गया है। भागवत का यह बयान तब आया है जब मोदी सरकार नयी शिक्षा नीति और ग़रीबों के मुफ़्त इलाज का ढोल पीट रहा है। उनके इस बयान ने न केवल सामाजिक और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या यह बयान केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज पर एक अप्रत्यक्ष हमला है? क्या भागवत सरकार की नीतियों से नाराज हैं? यदि हां, तो उनकी नाराजगी के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

शिक्षा और स्वास्थ्य अब सेवा नहीं, धंधा: भागवत

मोहन भागवत ने इंदौर में गुरुजी सेवा न्यास द्वारा स्थापित 'माधव सृष्टि आरोग्य केंद्र' के उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में कहा कि कभी सेवा का माध्यम रहे शिक्षा और स्वास्थ्य अब पूरी तरह से व्यवसाय बन चुके हैं। उन्होंने कहा, 'स्वास्थ्य और शिक्षा समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पहले इन्हें सेवा के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब ये आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं। ये न तो सस्ते हैं और न ही सुलभ।'
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भागवत ने कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के महंगे होने पर विशेष रूप से चिंता जताई। उन्होंने बताया कि देश में कैंसर के इलाज की अच्छी सुविधाएं केवल 8-10 बड़े शहरों में ही उपलब्ध हैं, जहां पहुंचना और इलाज करवाना आम आदमी के लिए आर्थिक रूप से असंभव है। उन्होंने समाज के सक्षम और संसाधन-संपन्न लोगों से अपील की कि वे आगे आएं और सस्ती, सुलभ स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराने में योगदान दें।

क्या यह मोदी सरकार की आलोचना है?

मोहन भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है। बीजेपी का वैचारिक मार्गदर्शक संगठन माने जाने वाले आरएसएस, और इसके प्रमुख के बयान को अक्सर सरकार के कामकाज के संदर्भ में देखा जाता है। भागवत के इस बयान को कई लोग मोदी सरकार की नीतियों पर एक अप्रत्यक्ष टिप्पणी के रूप में देख रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस बयान को तुरंत लपक लिया और इसे सरकार की विफलता के सबूत के रूप में पेश किया। 
कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, 'आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने माना कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं अब आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं, क्योंकि इनका व्यवसायीकरण हो गया है। मोदी-शाह की 10 साल की सरकार ने इन बुनियादी सुविधाओं में लूट होने दी है।' 

कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कहा कि मोदी-शाह और आरएसएस के बीच कुछ गंभीर चल रहा है...।

इसी तरह, एक अन्य एक्स यूजर ने लिखा, 'भागवत सही कह रहे हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं, लेकिन अगर वे सचमुच चिंतित हैं, तो उन्हें सरकार के खिलाफ बोलना चाहिए और अपने लोगों से कहना चाहिए कि भाजपा को वोट न दें।' 

क्या भागवत सरकार से नाराज हैं?

भागवत के हाल के बयानों को देखें तो यह पहली बार नहीं है, जब उनके बयानों को सरकार के लिए आलोचनात्मक माना गया है। जून 2024 में लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद भागवत ने मणिपुर में हिंसा और अशांति पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था, 'मणिपुर पिछले एक साल से शांति का इंतज़ार कर रहा है। यह प्राथमिकता के साथ विचार करने का विषय है।' इस बयान को विपक्ष ने मोदी सरकार पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया था।

इसी तरह जुलाई 2025 में भागवत ने 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट की बात कही थी, जिसे कई लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में देखा, क्योंकि मोदी और भागवत दोनों सितंबर 2025 में 75 साल के हो जाएंगे। भागवत ने कहा था, '75 साल की उम्र में व्यक्ति को रुक जाना चाहिए और दूसरों को काम करने देना चाहिए।' 

75 की उम्र में रिटायरमेंट वाले भागवत के बयान ने भी सियासी हलकों में खलबली मचा दी थी और विपक्ष ने इसे मोदी के रिटायरमेंट से जोड़ा। हालांकि, आरएसएस और बीजेपी ने साफ़ किया कि यह बयान सामान्य संदर्भ में था और इसका कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए।

एक्स पर कुछ यूजरों ने भागवत की टिप्पणियों को उनकी 'कुंठा' और 'मोदी से जलन' के रूप में देखा। एक यूजर ने लिखा, 'मोहन भागवत का मोदी से जलन अब खुलकर सामने आ रहा है। एक महीने में उन्होंने कई बार अपनी कुंठा जाहिर की है।' 

नाराजगी के संभावित कारण

भागवत की नाराजगी, यदि है, तो इसके कई संभावित कारण हो सकते हैं। भागवत ने बार-बार भारतीय दर्शन और मूल्यों पर आधारित नीतियों की वकालत की है। जुलाई 2025 में उन्होंने कहा था कि देश की शिक्षा प्रणाली औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त होकर भारतीय दर्शन पर आधारित होनी चाहिए। यह बयान भी सरकार की शिक्षा नीति पर एक टिप्पणी के रूप में देखा गया।
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2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और पार्टी को सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा। कुछ सूत्रों के अनुसार, आरएसएस ने इस बार चुनाव में उतनी सक्रियता नहीं दिखाई, जितनी पहले के चुनावों में थी। यह भी कहा जाता है कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'बीजेपी अब अपने पैरों पर खड़ी है' ने आरएसएस को नाराज किया हो सकता है।

भागवत ने मणिपुर हिंसा, सामाजिक भेदभाव और अब शिक्षा-स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण जैसे मुद्दों पर बार-बार चिंता जताई है। ये सभी मुद्दे केंद्र सरकार की नीतियों से सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भागवत सरकार के कुछ फैसलों से असंतुष्ट हो सकते हैं।

सरकार और आरएसएस का रुख

बीजेपी और आरएसएस ने हमेशा यह दावा किया है कि दोनों संगठनों के बीच कोई मतभेद नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मई 2024 में साफ़ किया था कि पीएम मोदी 75 साल की उम्र के बाद भी सक्रिय राजनीति में रहेंगे और 2029 तक देश का नेतृत्व करेंगे। आरएसएस ने भी भागवत के रिटायरमेंट वाले बयान को सामान्य संदर्भ में लिया जाने की बात कही थी।
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हालाँकि, भागवत के हाल के बयानों ने यह सवाल जरूर खड़ा किया है कि क्या आरएसएस और बीजेपी के बीच वैचारिक या रणनीतिक स्तर पर कोई असहमति है। कुछ जानकारों का मानना है कि भागवत का जोर सामाजिक सुधार और भारतीय मूल्यों पर आधारित नीतियों पर है। 

मोहन भागवत का शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायीकरण पर दिया गया बयान निश्चित रूप से केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है। हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि भागवत साफ़ रूप से मोदी सरकार से नाराज हैं। उनके बयान सामाजिक सुधार और भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने की उनकी दूरगामी सोच का हिस्सा हो सकते हैं। फिर भी मणिपुर हिंसा, रिटायरमेंट की उम्र जैसे उनके हाल के बयानों और अब शिक्षा-स्वास्थ्य पर टिप्पणियों ने सियासी हलकों में यह चर्चा जरूर छेड़ दी है कि आरएसएस और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। विपक्ष इन बयानों को सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जबकि बीजेपी और आरएसएस इसे सामान्य सामाजिक चिंता के रूप में पेश कर रहे हैं।