इलेक्टोरल बॉन्ड ख़त्म होने के बाद भी चंदे का खेल कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही है। लोकसभा चुनाव वाले साल 2024-25 में बीजेपी की तिजोरी लबालब रही। कुल 6,088 करोड़ रुपये का चंदा मिला। यह पिछले साल से 53% ज्यादा है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को महज 516 करोड़ ही मिला। यानी बीजेपी को कांग्रेस से 12 गुना ज़्यादा चंदा मिला! व्यक्तियों से चंदा पाने के मामले में भी बीजेपी आगे रही और उसे 345 करोड़ मिले। हालाँकि उसे मिले कुल चंदे का यह सिर्फ़ 5.6% है। बाकी चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट और कॉर्पोरेट्स से मिला। कांग्रेस को व्यक्तियों से 139 करोड़ रुपये मिले और यह उसे मिले कुल चंदे का 26% है।

चुनाव आयोग द्वारा इस महीने जारी की गई पार्टियों की सालाना चंदा रिपोर्टों से पता चला है कि 2024-25 में बीजेपी को व्यक्तिगत चंदे से 345 करोड़ रुपये मिले, जबकि कांग्रेस को 139 करोड़ रुपये। इस दौरान बीजेपी को कम से कम 2045 व्यक्तियों ने चंदा दिया, जबकि कांग्रेस को 2386 व्यक्तियों ने।
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बीजेपी को कुल कितना चंदा मिला?

लोकसभा चुनाव वाले साल 2024-25 में बीजेपी को कुल 6088 करोड़ रुपये का चंदा मिला। यह पिछले साल यानी 2023-24 के 3967 करोड़ से करीब 53% ज्यादा है। वहीं, कांग्रेस को इसी अवधि में सिर्फ 516 करोड़ रुपये मिले, जो बीजेपी से क़रीब 12 गुना कम है। राजनीतिक दलों को चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट, कॉर्पोरेट्स और व्यक्तियों से मिलते हैं। इसमें सबसे ज़्यादा चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट का होता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने ख़त्म कर दिया तो क्या, कॉर्पोरेट ट्रस्टों ने बीजेपी की झोली भर दी है। नौ इलेक्टोरल ट्रस्टों ने कुल 3811 करोड़ रुपये पार्टियों को दिए। इनमें से ज्यादातर पैसा बीजेपी को गया। बीजेपी को 3112 करोड़ रुपये मिले, जो कुल का 82 प्रतिशत से ज़्यादा है। कांग्रेस को इन ट्रस्टों से क़रीब 8 प्रतिशत यानी 299 करोड़ रुपये मिले।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को ख़त्म कर दिए जाने के बाद पहली बार ट्रस्टों के माध्यम से इतना बड़ा चंदा राजनीतिक दलों को मिला है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम राजनीतिक पार्टियों को गुमनाम चंदा देने का तरीक़ा था।

इस लिहाज से ट्रस्ट के माध्यम से चंदा देना ज़्यादा पारदर्शी माना जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड को ख़त्म किए जाने के बाद 2024-2025 में इलेक्टोरल ट्रस्टों से राजनीतिक पार्टियों को बड़ा चंदा मिला है।

इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों खत्म हुए?

सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताया। ये स्कीम 2018 में शुरू हुई थी, जिसमें डोनर का नाम छिप जाता था। इलेक्टोरल बॉन्ड की पारदर्शिता पर इसलिए सवाल उठे थे क्योंकि इसमें यह पता ही नहीं लग पाता था कि किस कंपनी ने किस दल को और कितना चंदा दिया। इसके अलावा भी इसमें कई तरह की जानकारियाँ गुप्त रखी गई थीं। अब कंपनियां चेक, डिमांड ड्राफ्ट या बैंक ट्रांसफर से सीधे चंदा दे सकती हैं। इलेक्टोरल ट्रस्ट का तरीका भी है, जिसमें कंपनियां ट्रस्ट को पैसा देती हैं और ट्रस्ट पार्टियों को बांटता है। ट्रस्ट को डोनर के नाम बताने पड़ते हैं, लेकिन ट्रस्ट से पार्टी को जाते पैसे में डोनर का सीधा लिंक नहीं दिखता।
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बहरहाल, चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, पार्टियों को 20000 रुपये से ज्यादा के हर चंदे की जानकारी देनी होती है, चाहे वह चेक, बैंक ट्रांसफर, यूपीआई या डिमांड ड्राफ्ट से हो। नकद चंदा सिर्फ 20000 रुपये तक ही दिया जा सकता है।

बीजेपी में व्यक्तिगत चंदा देने वाले कौन?

बीजेपी की रिपोर्ट में 79 व्यक्तियों ने 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा चंदा दिया, जो कुल मिलाकर 279.91 करोड़ रुपये है। सबसे बड़े चंदा देने वाले थे-
  • सुरेश अमृतलाल कोटक - 30 करोड़ रुपये
  • अल्ला दक्षायणी - 25 करोड़ रुपये
  • रमेश कुन्निकन्नन - 17 करोड़ रुपये
इसके अलावा, 436 लोगों ने 5 लाख से 50 लाख तक चंदा दिया जो कुल 49.58 करोड़ है। 726 लोगों ने 1 लाख से 5 लाख तक और 804 लोगों ने 1 लाख से कम चंदा दिया।

भाजपा के कई बड़े नेता भी शामिल

  • केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान - 1 लाख रुपये
  • असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा - 3 लाख रुपये
  • हरिद्वार सांसद और पूर्व उत्तराखंड मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत - 11.51 लाख रुपये
  • पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य - 1 लाख रुपये
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एक बीजेपी नेता ने कहा, 'कॉर्पोरेट कंपनियां ज्यादा चंदा देती हैं, जिनमें कई पीढ़ियों से बीजेपी समर्थक हैं। लेकिन पार्टी की असली ताक़त छोटे-छोटे चंदे हैं, जो पार्टी सदस्यों और समर्थकों से पूरे देश और विदेश से आते हैं।' एक अन्य नेता ने बताया कि पार्टी के स्थानीय कार्यक्रमों में 'दान पेटी' से इकट्ठा पैसा और पार्टी कार्यकर्ताओं के छोटे योगदान भी इसमें शामिल हैं। सदस्यता अभियान के दौरान नए सदस्य भी चंदा देते हैं।
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कांग्रेस में व्यक्तिगत चंदे पर जोर

  • कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, व्यक्तिगत चंदे 20000 रुपये से लेकर 7.5 करोड़ रुपये तक थे।
  • 22 लोगों ने 50 लाख से ज्यादा चंदा दिया, कुल 45.35 करोड़ रुपये।
  • सुरेश ए कोटक (मुंबई) - 7.5 करोड़ रुपये
  • सज्जन भजंका (कोलकाता) - 6 करोड़ रुपये
  • संजय अग्रवाल (कोलकाता) - 5 करोड़ रुपये

पार्टी नेताओं का चंदा

  • राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम - 3 करोड़ रुपये
  • सांसद राजीव गौड़ा - 4.2 करोड़ रुपये (पांच किस्तों में)
  • कर्नाटक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया - 2.5 लाख रुपये
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा, 'कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व छोटे और व्यक्तिगत चंदे पर जोर दे रही है। हमें पता है कि बीजेपी को बड़े कॉर्पोरेट्स से बहुत ज्यादा समर्थन मिलता है। कांग्रेस को इलेक्टोरल ट्रस्ट से सिर्फ 8% पैसा मिला, जबकि बीजेपी को 82%। हम व्यक्तिगत दान पर फोकस कर रहे हैं।' एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने दावा किया कि बड़े कॉर्पोरेट कांग्रेस को चंदा देने से डरते हैं क्योंकि जांच एजेंसियों का डर है।

यह रिपोर्ट बताती है कि चुनावी फंडिंग में अभी भी बड़ा असंतुलन है, खासकर इलेक्टोरल बॉन्ड खत्म होने के बाद ट्रस्ट और कॉर्पोरेट चंदे बढ़ गए हैं। ज़्यादातर चंदे बीजेपी की झोली में गये हैं।