loader
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान

केरल गवर्नर के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, क्यों विवादों में हैं कई राज्यपाल

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान 8 विधेयकों को पिछले दो वर्षों से रोककर बैठे हैं। तमाम आदर्शवादी बातें करने वाले आरिफ ने इन बिलों को रोकने की वजहें कभी साफ-साफ नहीं बताई हैं। केरल सरकार ने इस मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। हालांकि अकेले आरिफ ही नहीं हैं, बल्कि तीन और भी गवर्नर हैं, जिनके खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हुआ है। पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने अदालत में याचिका दायर की है। विपक्ष का सीधा आरोप है कि केंद्र सरकार विपक्षी शासित राज्यों के खिलाफ राज्यपालों का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रही है।

इनके अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, बिहार के राज्यपालों के बारे में खबरें आती रहती हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोशयारी इतना बदनाम हुए कि अदालत को तीखी टिप्पणियां तक करना पड़ीं। फिलहाल, केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों की गतिविधियां चरम पर हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि वो राज्यपाल न होकर नेता हैं। 
ताजा ख़बरें

केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि "राज्यपाल का मौजूदा आचरण कानून के शासन और लोकतांत्रिक व्यवस्था सहित हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। इन विधेयकों के माध्यम से जनता के लिए कल्याणकारी उपायों को लागू किया जाना है। लेकिन राज्यपाल इन्हें रोककर बैठे हैं। तीन विधेयक तो पिछले दो वर्षों से पेंडिंग हैं।"

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जिन बिलों को रोककर बैठे हैं। उन लंबित विधेयकों में विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक (पहला संशोधन), दूसरा संशोधन 2021, केरल सहकारी सोसायटी संशोधन विधेयक 2022, विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक 2022, केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 और सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक 2021 प्रमुख हैं।
आरिफ मोहम्मद खान अपने बयानों से भी विवादों में रहते हैं। उनके बयान अक्सर ऐसे भी आए हैं, जिनसे भाजपा नेतृत्व खुश हो जाता है। राज्यपाल की एक और दिली इच्छा है कि केरल के मुख्यमंत्री उन्हें नियमित रूप से राज्य सरकार की गतिविधियों के बारे में अपडेट देते रहें। यह बात आरिफ ने सार्वजनिक रूप से भी कही है। उनका कहना है कि यह मुख्यमंत्री का संवैधानिक कर्तव्य है कि वो राज्यपाल को हर गतिविधि से अवगत कराए। याद दिला दें कि ये वही राज्यपाल हैं जो प्रसिद्ध और बुजुर्ग इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब से भी मंच पर विवाद कर बैठे थे।  

अन्य राज्यपाल भी हैं विवादों मेंतमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि भी आरिफ से कम नहीं हैं। रवि का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि पर विधान सभा को अपने कर्तव्यों को पूरा करने में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। तमिलनाडु सरकार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि राज्यपाल ने न केवल कई विधेयक लंबित रखे हैं बल्कि भ्रष्टाचार के कई मामलों में जांच और अभियोजन की मंजूरी भी नहीं दी है।

पंजाब सरकार और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित में भी ठनी हुई है। पंजाब सरकार ने भी विधेयकों की मंजूरी रोकने के लिए राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हालाँकि, इसके बाद, राज्यपाल पुरोहित ने मंगलवार को पंजाब माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2023 और भारतीय स्टाम्प (पंजाब संशोधन) विधेयक, 2023 सहित दो विधेयकों पर अपनी सहमति दे दी। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इतने दिनों से विधेयकों को रोककर क्यों बैठे थे। बताया जाता है कि पिछले दिनों उन्होंने पंजाब के सबसे अमीर आम आदमी पार्टी विधायक कुलवंत सिंह के खिलाफ सरकार को कार्रवाई के लिए कहा था। सरकार ने विधायक पर कार्रवाई नहीं की। इसके बाद उसी विधायक पर ईडी के छापे पड़ गए।

दिल्ली के विवादित उपराज्यपाल

दिल्ली में उपराज्यपाल वीके सक्सेना और आम आदमी पार्टी सरकार का विवाद जब-तब चरम पर पहुंचता रहता है। केजरीवाल के नेतृत्व में आप को जनता लगातार 2015 से चुन रही है। 2013 में भी केजरीवाल कुछ समय के लिए सीएम बने थे। इस दौरान दिल्ली में कई उपराज्यपाल (एलजी) बदले लेकिन हर एलजी के साथ उनका विवाद जारी रहा। कई बार अदालतों ने भी हस्तक्षेप किया है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। दिल्ली सरकार को लेकर केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षा इतना बढ़ चुकी है कि वो हर चीज में अपना दखल चाहती है, जबकि उसके पास दिल्ली पुलिस और जमीन का अधिकार है। लेकिन केंद्र सरकार उपराज्यपाल के जरिए अफसरों के तबादलों तक में अपना दखल चाहती है।
इसी तरह तेलंगाना भी राज्यपाल विवाद से अछूता नहीं रहा है। सत्तारूढ़ दल बीआरएस ने पिछले दिनों आरोप लगाया कि राज्य में कई विवादों के पीछे राजभवन का हाथ हो सकता है। किसी भी राज्य में राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद को लेकर इस तरह के विवाद बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। राज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन को संदेह था कि तेलंगाना में उनका फोन टैप किया जा रहा है। याद दिला दें कि तेलंगाना की राज्यपाल पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से हैं और वह पहले वहां भाजपा का नेतृत्व कर चुकी हैं। बीआरएस नेताओं का कहना है कि वह अब भी बीजेपी नेता की तरह काम कर रही हैं। 

देश से और खबरें

इसी तरह झारखंड में भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच खींचतान सामने आती रहती हैं। हाल ही में झारखंड के राज्यपाल ने जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन से संबंधित नियमों पर कानूनी सलाह लेने के बाद संबंधित फाइल राज्य सरकार को लौटा दी। मौजूदा नियमों को असंवैधानिक बताते हुए इन्हें बदलने के निर्देश दिए। झारखंड के राज्यपाल चाहते हैं कि टीएसी के गठन में उनके स्तर के अनुरूप कम से कम दो सदस्यों को अनिवार्य रूप से नामित किया जाये।

पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच विवाद किसी से छिपा नहीं रहा है। दोनों एक दूसरे पर खुलेआम राजनीतिक आरोप लगाते थे। धनखड़ बाद में देश के उपराष्ट्रपति बन गए। इस संबंध में ममता की टीएमसी ने आरोप लगाया था कि बंगाल की वजह से ही धनखड़ को यह पद हासिल हुआ।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें