पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के सजा निलंबन को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सेंगर की उम्रकैद की सजा को दिल्ली हाई कोर्ट ने निलंबित कर दिया था। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ऊन्नाव रेप मामले के दोषी सेंगर पर हाई कोर्ट का यह फैसला कानून के खिलाफ है और पूरी तरह से ग़लत है। केंद्रीय एजेंसी ने इस फैसले को विकृत बताया है।

सीबीआई का कहना है कि गलत कहा गया है कि अपराध के समय सेंगर लोक सेवक नहीं थे। इसी तर्क के आधार पर हाई कोर्ट ने सेंगर की सजा निलंबित करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के इस फ़ैसले से पूरे देश में गुस्सा फैल गया है और दिल्ली में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
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कुलदीप सेंगर का दोष क्या?

यह मामला 2017 का है, जब कुलदीप सिंह सेंगर पर एक नाबालिग लड़की का अपहरण करके रेप करने का आरोप लगा। 2018 में यह केस तब सुर्खियों में आया जब पीड़िता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर के बाहर खुद को आग लगाने की कोशिश की। इसके बाद जांच हुई और सेंगर को दोषी ठहराया गया।

सुनवाई के बाद सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लेकिन इस साल 23 दिसंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी सजा को निलंबित कर दिया, यानी रोक दिया। अब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है कि इस आदेश को तुरंत रोका जाए।

सीबीआई ने क्या तर्क दिए?

सबसे प्रमुख मुद्दा लोक सेवक का है। हाई कोर्ट ने कहा कि सेंगर अपराध के समय 'लोक सेवक' नहीं थे इसलिए पॉक्सो एक्ट के तहत 'लोक सेवक द्वारा बच्चे पर गंभीर यौन हमला' का आरोप उन पर नहीं लग सकता। इस आरोप में कम से कम 20 साल की सजा होती है। लेकिन सीबीआई ने कहा कि एक मौजूदा विधायक को लोक सेवक माना जाना चाहिए। 

सीबीआई ने कहा है कि विधायक एक संवैधानिक पद पर होता है, जिसपर लोगों का विश्वास होता है। इसने कहा कि विधायक समाज के प्रति जिम्मेदारी रखता है और बच्चों का शोषण रोकना उसका कर्तव्य है।

'पॉक्सो एक्ट का मक़सद बच्चों को बचाना'

सीबीआई ने कहा कि हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट को सही तरीके से नहीं समझा। यह कानून बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बना है, खासकर उन लोगों से जो राजनीतिक या सामाजिक ताकत रखते हैं। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार सीबीआई की याचिका में लिखा है, 'हाई कोर्ट का आदेश विकृत और कानून के खिलाफ है क्योंकि उसने विधायक की भूमिका को नजरअंदाज किया। विधायक को लोगों का विश्वास मिलता है और उससे समाज को ज्यादा जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।'
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सीबीआई ने बताया कि सेंगर बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनके पास पैसा और ताकत है। अगर उन्हें जेल से छोड़ा गया तो पीड़िता और उसके परिवार की जान को खतरा हो सकता है। सीबीआई ने कहा, 'दोष सिद्ध होने के बाद जेल में रहना नियम है, जबकि बेल या सजा निलंबित करना अपवाद है।'

सीबीआई ने दोहराया कि यह कानून बच्चों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है। बच्चों को देखभाल, सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए। यह कानून यौन शोषण से बचाने के लिए है।

हाई कोर्ट के आदेश के बाद क्या हुआ?

हाई कोर्ट के फैसले से पूरे देश में हंगामा मच गया। पीड़िता और उसकी मां ने इंडिया गेट के पास विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी मुलाकात की। प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा कर्मियों ने कथित तौर पर पीड़िता के साथ बदसलूकी की और उन्हें वहां से हटा दिया। इससे और ज्यादा गुस्सा बढ़ गया है। लोग न्याय की मांग कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा हो रही है।
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सीबीआई क्या चाहती है?

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि हाई कोर्ट के आदेश को तुरंत रोका जाए। एजेंसी चाहती है कि सेंगर जेल में ही रहें, क्योंकि मामला गंभीर है और बच्चों की सुरक्षा का सवाल है। सीबीआई का कहना है कि हाई कोर्ट ने कानून की सही व्याख्या नहीं की, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर सुनवाई करेगा।