क्या केंद्र की मोदी सरकार और तमाम राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट को कोई महत्व नहीं देती है? क्या उनके लिए सुप्रीम कोर्ट और उसके आदेशों का कोई अर्थ नहीं रह गया है? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश अब सिर्फ़ काग़ज़ों तक सिमट कर जाएँगे? ये सवाल इसलिए उठते हैं कि बीते दिनों सर्वोच्च अदालत ने एक आदेश जारी कर पूछा है कि उसने मॉब लिन्चिंग रोकने के लिए जो आदेश जारी किए थे, उसे कितना लागू किया गया है। 


क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश?

देश भर से आ रही मॉब लिन्चिंग घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई 2018 को एक आदेश जारी कर केंद्र सरकार से कहा था कि वह इसे रोकने के लिए संसद से एक बिल पारित करवाए। इस आदेश में मॉब लिन्चिंग से जुड़े हर पहलू पर सुझाव दिए गए थे। 

सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट को आदेश जारी करने के एक साल बाद यह क्यों कहना पड़ा है कि उसे इन आदेशों को लागू करने के बारे में जानकारी दी जाए।

इसकी वजह साफ़ है। इसकी वजह यह है कि अब तक ज़्यादातर आदेशों का पालन नहीं किया गया है। अधिकतर राज्य सरकारों ने मॉब लिन्चिंग के मामलों की सुनवाई के लिए अलग अदालतों का गठन नहीं किया है। इसी तरह राज्य सरकारों ने पीड़ितों को मुआवज़ा देने पर कोई ठोस नीति का एलान नहीं किया है न ही आर्थिक मदद देने के लिए किसी कोष का गठन किया है। 


बीते दिनों 49 फ़िल्मी हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुली ख़त लिख कर मॉब लिन्चिंग की वारदात पर चिंता जताई थी। 

प्रधानमंत्री को मंगलवार को ख़त लिखने वालों में पुरस्कार विजेता फ़िल्म निर्माता अपर्णा सेन व मणि रत्नम और इतिहासकार रामचंद्र गुहा जैसी हस्तियाँ शामिल थीं। पत्र में कहा गया है कि बेहद दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि ‘जय श्री राम’ का नारा युद्धोन्माद पैदा करने वाला बन गया है और इस वजह से क़ानून व्यवस्था की स्थिति ख़राब होती जा रही है और इसके नाम पर ही कई हत्या की घटनाएँ हो चुकी हैं। 

पत्र में यह भी कहा गया है कि बिना असहमति के लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता। लोगों को सिर्फ़ सरकार का विरोध करने के कारण राष्ट्रद्रोही या अर्बन नक्सल न करार दे दिया जाए या उन्हें जेल में न डाल दिया जाए। 23 जुलाई को लिखे इस पत्र में कहा गया था कि प्रधानमंत्री जी आपने तबरेज़ वाली घटना की संसद में कड़ी निंदा की थी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। सवाल पूछा गया है कि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की गई है।

लेकिन इसके बाद फ़िल्म जगत के ही 62 लोगों ने इन 49 लोगों पर पलटवार करते हुए एक ख़त लिखा। मॉब लिन्चिंग पर प्रधानमंत्री मोदी को खुला ख़त लिखने वाले 49 हस्तियों पर फ़िल्म जगत के ही प्रसून जोशी, कंगना रनौत, विवेक अग्निहोत्री समेत 62 लोगों ने भी खुला ख़त लिखकर सीधा हमला बोला है। 

49 हस्तियों ने जहाँ लिन्चिंग और ‘जय श्रीराम’ के नाम पर हो रहे हमले को रोकने का प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया था वहीं 62 फ़िल्मी हस्तियों ने उन सभी पर ‘गिने-चुने मामलों में ग़ुस्सा दिखाने’, ‘झूठे नैरेटिव तैयार करने’ और ‘राजनीतिक पूर्वाग्रह रखने’ का आरोप लगाया।

उन्होंने सरकार की आलोचना करने वाले 49 लोगों को लिखा, ‘...वास्तव में हम मानते हैं कि मोदी शासन में सरकार की आलोचना करने और अलग-अलग विचारों के रखने की सबसे ज़्यादा आज़ादी है। असहमति की भावना रखने की छूट इससे ज़्यादा कभी भी नहीं रही।’

पिछले महीने झारखंड के ही जमशेदपुर में मोटर साइकिल चोरी के शक में 24 साल के युवक तबरेज अंसारी को भीड़ ने रात भर पीटा था और बाद में उसकी मौत हो गई थी। भीड़ ने उसे ‘जय हनुमान’ का नारा लगाने के लिए भी कहा था। कुछ दिन पहले ही भीड़तंत्र के क्रूर होने की एक घटना बिहार के सारण में हुई थी। सारण जिले के बनियापुर गाँव में गाँव के लोगों ने तीन लोगों को पकड़ा था और आरोप लगाया कि ये उनके पशुओं को चोरी करने के लिए आए थे। इसके बाद ग्रामीणों ने तीनों को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था।