इसरो का मुख्यालय
चंद्रयान 3 का बुधवार 23 अगस्त का कामयाब मिशन भारत को दुनिया भर में प्रतिष्ठा दिलाएगा। इसका राजनीतिक महत्व भी है, जो दिखना शुरू हो चुका है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस मिशन की कामयाबी से भारतीय अंतरिक्ष बाजार में विदेशी निवेश भी आएगा। तमाम विश्लेषकों और अधिकारियों को दक्षिण एशियाई राष्ट्र के उभरते अंतरिक्ष उद्योग को तत्काल बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
रॉयटर्स के मुताबिक विश्लेषकों का कहना है कि रूस का लूना-25, जिसे दो सप्ताह से भी कम समय पहले लॉन्च किया गया था, सबसे पहले वहां पहुंचने के लिए ट्रैक पर था - लेकिन उसने आने वाले मिशन को सावधान कर दिया। नतीजा यह हुआ कि चंद्रयान 3 की कामयाबी के अवसर बढ़ गए हैं और उसी के मद्देनजर भारत में विदेशी निवेश के अवसर भी बढ़ गए हैं।
चांद पर जाने की मौजूदा होड़ 1960 की याद दिलाती है, जब यह होड़ अमेरिका और रूस कर रहे थे। दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा अचानक बढ़ी और देखते ही देखते अमेरिका में पूरा अंतरिक्ष बाजा खुल गया, जिसमें प्राइवेट कंपनियां निवेश करने लगीं। लेकिन रूस में यह सारा काम सरकारी नियंत्रण के तहत हुआ और उसे भी अंतरिक्ष में तमाम कामयाबियां मिलीं।
अंतरिक्ष अब एक कारोबार में बदल गया है। चांद का दक्षिणी ध्रुव इसके लिए तमाम रास्ते खोलने जा रहा है क्योंकि वहां पानी की बर्फ है। तमाम देशों को उम्मीद है कि भविष्य में चांद पर कॉलोनी बसाने, खनिजों का खनन और मंगल ग्रह पर अंतिम मिशन का रास्ता दक्षिण ध्रुव खोल देगा।
भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव पर भारत ने अंतरिक्ष प्रक्षेपणों का निजीकरण कर दिया है। बारत इस क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलना चाहता है क्योंकि इसका लक्ष्य अगले दशक के भीतर ग्लोबल प्रक्षेपण बाजार में अपनी हिस्सेदारी में पांच गुना वृद्धि करना है।
रॉयटर्स के मुताबिक यदि चंद्रयान-3 सफल होता है, तो विश्लेषकों को उम्मीद है कि भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र प्रतिस्पर्धी इंजीनियरिंग का लाभ उठाएगा। प्रोजेक्ट्स पर यहां लागत भी कम आती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पास इस मिशन के लिए लगभग 74 मिलियन डॉलर का बजट था।