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कोरोना के इलाज में कितनी कारगर है क्लोरोक्वीन?

मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना के इलाज में कितनी कारगर है, इस पर बहस छिड़ी हुई है। अब तक इस पर पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन कई देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इस दवा की साइड इफेक्ट से लेकर इसकी दूसरी उपयोगिता पर तो चर्चा हो ही रही है। यह दवा अंतरराष्ट्रीय राजनीति से लेकर व्यापार तक को प्रभावित कर रही है। क्या है मामला? 
शुक्रवार को स्वास्थ्य की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘लान्सेट’ के मुख्य संपादक रिचर्ड हॉर्टन ने कहा है कि अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से कोरोना इलाज में कोई फ़ायदा होता है। उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए यह कहा है। 
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आईसीएमआर ने क्या कहा?

लेकिन इसके पहले इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने यह माना था कि जो स्वास्थ्य कर्मी कोरोना का इलाज कर रहे हैं, उन्हें यह दवा लेनी चाहिए। उसके कहने का मतलब यह था क्लोरोक्वीन लेने से इन स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना संक्रमण नहीं होगा। 

ट्रंप ने क्या कहा था?

इसके पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा था कि क्लोरोक्वीन लेने से कोरोना की रोकथाम मुमकिन है। हालांकि, उसी समय उनके ही देश के कई वैज्ञानिकों ने इससे इनकार किया था, पर ट्रंप ने किसी की नहीं सुनी।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ख़ुद फ़ोन कर भारत से यह दवा माँगी। इसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुले आम भारत को धमकाया और कहा कि यदि यह दवा नहीं दी गई तो वह भारत के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई करेंगे।
ख़ैर, भारत ने अमेरिका को 2.90 करोड़ गोलियाँ दे दीं। ट्रंप ने क्लोरोक्वीन दवा की कुल मिला कर 3.20 गोलियाँ एकत्रित कर लीं।

कैसा रहा अमेरिका का अनुभव?

लेकिन जब अमेरिका में इसका प्रयोग हुआ, तो लोगों के हाथों के तोते उड़ गए। इस दवा का प्रयोग अमेरिका के सरकारी अस्पतालों में किया गया।
शोध में पाया गया कि इसका प्रयोग कोरोना से संक्रमित लोगों पर करने से उनमें मरने वालों की संख्या बढ़ गई। यानी, क्लोरोक्वीन के प्रयोग से कोरोना से पीड़ित अधिक लोगों की मौत हुई।

ब्राज़ील ने माँगी दवा

क्लोरोक्वीन से यह लगाव सिर्फ अमेरिका को ही है, ऐसा नहीं है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति जईर बोसोनेरो ने भारत से यह दवा माँगी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे ख़त में इसके लिए आग्रह करते हुए रामायण और हनुमान का विशेषकर ज़िक्र किया है। 
बोसोनेरो ने दवा निर्यात करने का आग्रह करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को लिखा, 'जिस तरह भगवान राम के भाई लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए भगवान हनुमान हिमालय से पवित्र औषधि लाए थे,  उसी तरह से यीशु ने बीमार लोगों को ठीक कर दिया था..., भारत और ब्राजील सभी लोगों की खातिर अपनी शक्तियों और वरदानों को साझा कर इस वैश्विक संकट से पार पा लेंगे।'
ख़ैर, भारत ने उन्हें भी यह दवा दी।
ब्राज़ील में इस दवा के इस्तेमाल से पाया गया कि कुछ रोगियों के दिल की धड़कन बढ़ गई और कुछ की इससे मौत भी हो गई। कनाडा में भी इसके प्रयोग का नतीजा ऐसा ही कुछ रहा।

कनाडा में क्लोरोक्वीन!

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, टोरंटो विश्वविद्यालय में क्लिनिकल फार्माकोलॉजी के विभागाध्यक्ष और एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. डेविड जुर्लिंक ने कहा, 'मेरे लिए इस अध्ययन से एक उपयोगी जानकारी मिलती है, जो यह है कि क्लोरोक्वीन डोज़ बढ़ाने से ईसीजी में इतनी असामान्यता आ जाती है कि इससे एकाएक मौत भी हो सकती है।' 

फ्रांस

फ्रांस की सरकार ने डॉक्टरों से कहा कि वे कोविड-19 से संक्रमित लोगों को क्लोरोक्वीन की दवा लेने की सिफ़ारिश करें। पर वहाँ की मेडिकल नियामक संस्था ने चेतावनी दी कि इसके साइड इफ़ेक्ट पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। 

मध्य-पूर्व!

मध्य-पूर्व के कई देशों ने भी क्लोरोक्वीन का प्रयोग करना शुरू किया, पर कई शर्तों के साथ। बहरीन, मोरक्को, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया ने अपने यहाँ इस दवा पर प्रयोग करने को कहा है।
पर कुछ देश ज़्यादा चौकन्ने हैं। जॉर्डन ने अपने यहाँ इसकी बिक्री पर रोक लगा दी। क़ुवैत ने निजी दुकानों से यह दवा वापस ले ली और सिर्फ सरकारी अस्पतालों को इसके प्रयोग की इजाज़त दी। 

चीन

लेकिन कोरोना के इलाज के मामले में क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सबसे पहले चीन ने किया था और उसने कहा था कि इससे सकारात्मक नतीजे मिले हैं। चीन के बाद लाओस ने इसका इस्तेमाल किया था। 

अफ़्रीका

अफ्रीकी देश कीनिया ने अपने यहाँ इस दवा के काउंटर पर होने वाली बिक्री पर रोक लगा दी। 
नाईजीरिया में क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया इलाज में होता रहा है। पर उसने साफ़ शब्दों में कह दिया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के इलाज़ में तो इसकी अनुमति दी नहीं है।

साइड इफ़ेक्ट!

मेडीसिन नेट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि क्लोरोक्वीन के बहुत सारे साइड इफ़ेक्ट हैं और उनका ख़्याल रखा जाना चाहिए।
क्लोरोक्वीन के साइड इफ़ेक्ट में शामिल हैं, आँख की रेटिना ख़राब होना, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता, बहरापन, कम सुनाई देना, उल्टी होना, कम नींद आना, घबराहट होना, और डायरिया यानी दस्त।
इसके अलावा चकत्ते निकल सकते हैं, खुजली हो सकती है, बाल उड़ सकते हैं, बेहोशी आ सकती है, सिर दर्द हो सकता है। लेकिन यह भी कहा गया है कि इस दवा के इस्तेमाल से कभी कभी डिप्रेशन, हाइपोटेन्शन और एनीमिया भी हो सकता है। 
फिर वही सवाल खड़ा होता है, क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल कोरोना के इलाज में किया जाए या नहीं। इस पर अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है। कई देशों में इस पर प्रयोग हो रहा है, कुछ जगह नतीजे सकारात्मक होने के दावे किए जा रहे हैं तो कुछ दूसरी जगहों पर नतीजे बुरे रहे हैं।
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क़मर वहीद नक़वी
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