आवारा कुत्तों से संबंधित मामले को बुधवार (13 अगस्त) भारत के चीफ जस्टिस की कोर्ट में फौरन सुनवाई के लिए पेश किया गया। याचिका कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) नामक एक संगठन ने 2024 में दायर की थी। जिसमें दिल्ली में सामुदायिक कुत्तों के पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियमों के अनुसार नसबंदी और टीकाकरण के निर्देश देने की मांग वाली अपनी जनहित याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
लाइव लॉ के मुताबिक एक वकील ने जब इस मामले का ज़िक्र किया, तो चीफ जस्टिस बीआर गवई ने बताया कि एक अन्य बेंच पहले ही आवारा कुत्तों के संबंध में एक आदेश पारित कर चुकी है। यह बात चीफ जस्टिस ने जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा 11 अगस्त को दिल्ली में आवारा कुत्तों को डॉग स्टे सेंटरों में स्थानांतरित करने के आदेश का ज़िक्र कर रहे थे।
वकील ने चीफ जस्टिस के सामने मई 2024 में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया, जिसके तहत आवारा कुत्तों के मुद्दे से संबंधित याचिकाओं को संबंधित हाईकोर्टों में ट्रांसफर कर दिया गया था। वकील ने जस्टिस माहेश्वरी की पीठ द्वारा पारित आदेश का यह पैराग्राफ भी पढ़ा: "हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि किसी भी परिस्थिति में कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती और अधिकारियों को मौजूदा कानूनों के आदेश और भावना के अनुसार कार्रवाई करनी होगी। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सभी जीवों के प्रति करुणा प्रदर्शित करना संवैधानिक मूल्य और आदेश है, और इसे बनाए रखना अधिकारियों का दायित्व है।"
तब चीफ जस्टिस गवई ने जवाब दिया, "मैं इस पर गौर करूँगा।"
ताज़ा ख़बरें
एक एनजीओ ने 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें अधिकारियों को नियमित अंतराल पर आवारा कुत्तों के लिए नियमित "नसबंदी और टीकाकरण"/टीकाकरण कार्यक्रम चलाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। नियम 7 के खंड 4 में तय मानवीय तरीकों का इस्तेमाल करते हुए, उनकी आबादी को नियंत्रित करने और उन्हें रेबीज से पीड़ित होने से बचाने के लिए यह कदम उठाया जाना चाहिए।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को स्टे होम भेजने के आदेश को लेकर एनीमल राइट्स कार्यकर्ताओं और आम लोगों के बीच तीखी बहस देखने को मिल रही है। इस आदेश को 'गैरकानूनी' बताते हुए कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि यह मौजूदा संसदीय कानूनों को दरकिनार करके आदेश दिया गया है। 
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश जारी किया था, जिसमें आठ सप्ताह के भीतर आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में भेजने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले के खिलाफ पशु कल्याण संगठनों और कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह आदेश न केवल कानूनी रूप से कमजोर है, बल्कि यह आवारा कुत्तों के कल्याण के लिए बनाए गए मौजूदा नियमों का भी उल्लंघन करता है।
पशु कल्याण कार्यकर्ताओं का कहना है कि आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में ट्रांसफर करने की प्रक्रिया में कई व्यावहारिक चुनौतियां हैं। इनमें आश्रय स्थलों की अपर्याप्त सुविधाएं, कुत्तों के लिए उचित देखभाल की कमी और उनके प्राकृतिक पर्यावरण से हटाने के नकारात्मक प्रभाव शामिल हैं। कार्यकर्ताओं ने यह भी मांग की है कि इस तरह के फैसलों से पहले पशु कल्याण संगठनों के साथ उचित परामर्श किया जाना चाहिए।