भारत के चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने 25 नवंबर को कई मामलों की सुनवाई की। एक मामला उनकी कोर्ट में मेंशन किया गया। जिस मामले की सुनवाई की वो एक ईसाई आर्मी अफसर की सेवा से जुड़ा था। सुनवाई के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण और विचारपूर्ण टिप्पणियां कीं। दूसरा मामला बंगाल एसआईआर को लेकर था, जो उनकी कोर्ट में मेंशन किया गया यानी बताया गया। इस पर भी उन्होंने टिप्पणी की।  

आर्मी अफसर की बर्खास्तगी का मामला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ईसाई आर्मी अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जिसने एक मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वो मंदिर में नहीं जा सकते और बाहर से ही फूल अर्पित कर देंगे। यह उसकी आस्था का मामला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस अफसर की बरखास्तगी को सही बताया था। जिसे अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। चीफ जस्टिस की बेंच ने भी कहा- सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है और इसके अनुशासन से समझौता नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, "आपने अपने सैनिकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है।" कोर्ट ने अधिकारी सैमुअल कमलेसन पर घोर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए उन्हें "सेना के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त" (मिसफिट) बताया।

लाइव लॉ के मुताबिक मार्च 2017 में तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के पद पर भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त और सिख कर्मियों वाली स्क्वाड्रन बी के ट्रूप लीडर बनाए गए कमलेसन ने अनुशासनात्मक कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

आर्मी अफसर के वकील की दलीलें

आर्मी अफसर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को सिर्फ़ इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने मंदिर के अंदर जाने से परहेज़ किया क्योंकि यह उनकी आस्था के विरुद्ध था। उन्होंने तभी आपत्ति जताई जब उन्हें पूजा करने के लिए कहा गया। वकील ने कहा कि अधिकारी उन जगहों पर पूजा-अर्चना करते थे जहाँ सर्वधर्म स्थल होते थे और जहाँ उनकी तैनाती थी, वहाँ कोई सर्वधर्म स्थल नहीं था। शंकरनारायणन ने दलील दी, "इस रेजिमेंटल सेंटर में सिर्फ़ एक मंदिर या गुरुद्वारा है। उन्होंने (अधिकारी ने) मंदिर में प्रवेश करने से इनकार कर दिया और कहा कि गर्भगृह में प्रवेश करना मेरी आस्था के विरुद्ध है। मैं बाहर से फूल चढ़ाऊँगा, लेकिन अंदर नहीं जाऊँगा। किसी और को कोई समस्या नहीं थी, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी।" उन्होंने आगे कहा, "मुझे किसी देवता की पूजा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। संविधान इतनी आज़ादी देता है।"

सुप्रीम कोर्ट का जवाब

आर्मी अफसर के वकील की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दिया। सीजेआई सूर्यकांत की बेंच ने कहा- "क्या वह अपने ही सैनिकों का अपमान नहीं कर रहे हैं? उनका अहंकार इतना ज़्यादा है कि वह अपने सैनिकों के साथ नहीं जाएंगे। हर किसी को अपनी आस्था का पालन करने का अधिकार है। अगर कोई आपसे धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए कहता है, तो यह अलग बात है और आप मना कर देते हैं। लेकिन आप अंदर जाने से कैसे मना कर सकते हैं?" सीजेआई बेंच ने यह भी कहा कि संबंधित अधिकारी को एक पुजारी ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश करने से कोई आस्था का हनन नहीं होगा, लेकिन फिर भी उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। बेंच ने कहा, "लीडर को उदाहरण पेश करना चाहिए। आप अपने सैनिकों का अपमान कर रहे हैं। जब एक पुजारी ने आपको सलाह दी, तो आप उसे वहीं छोड़ देते हैं। आप अपनी निजी समझ नहीं बना सकते कि आपका धर्म क्या अनुमति देता है। वह भी वर्दी में।"
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के मई 2025 के आदेश को बरकरार रखा। पेनाल्टी में किसी तरह की रियायत देने से भी मना कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिकारी सैमुअल कमलेसन को बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के भारतीय सेना से बर्खास्त करने का आदेश बरकरार रखा था। सीजेआई ने अंत में कहा कि "वह अधिकारी किस तरह का संदेश दे रहे हैं...उन्हें केवल इसी बात के लिए बाहर निकाल दिया जाना चाहिए था...एक सैन्य अधिकारी द्वारा यह घोर अनुशासनहीनता है।"

SIR विवादः बंगाल की याचिका मेंशन, सीजेआई ने क्या कहा

लाइव लॉ के मुताबिक चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जे. जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने एक वकील ने पश्चिम बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया का जिक्र किया। 
वकील: इस मामले की जल्द सुनवाई ज़रूरी है... नागरिकता के लिए आवेदन लंबित रखा गया है... जबकि पश्चिम बंगाल में SIR चल रहा है... गणना की आखिरी तारीख 4 तारीख है।
चीफ जस्टिस: हमें कुछ नहीं पता, आप अपना आवेदन दीजिए। देखेंगे कि क्या किया जा सकता है।

यहां बताना जरूरी है कि पूर्व चीफ जस्टिस बीआर गवई ने रिटायर होने से दो दिन पहले एसआईआर पर केरल और अन्य याचिकाओं को अर्जेंट सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था। केरल की एसआईआर पर सुनावाई की तारीख 26 नवंबर तय की गई थी।

एसआईआर पर तमिलनाडु की याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में SIR को चुनौती देने वाली एमडीएमके के संस्थापक और पूर्व राज्यसभा सांसद वाइको की याचिका पर नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ज्यमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले को 2 दिसंबर के लिए लिस्ट किया है। वाइको ने अपनी याचिका में तमिलनाडु में SIR अधिसूचना को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह अधिसूचना प्रतिनिधित्व जनता अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के विभिन्न प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है। SIR के विरोध में एमडीएमके के अलावा द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (डीएमके), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), अभिनेता विजय की तमिलागा वायथुला पार्टी (टीवीके) आदि की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही हैं। दूसरी ओर, अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (एआईएडीएमके) ने SIR का समर्थन करते हुए एक आवेदन सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है।
चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूचियों को अपडेट और शुद्ध करना है, लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया निष्पक्षता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में संबंधित याचिकाओं की सुनवाई शुरू होने पर ही एसआईआर की तस्वीर साफ हो सकेगी।