ओबीसी आरक्षण को लेकर सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि समाज को जाति के आधार पर नहीं बाँटा जाना चाहिए। सीजेआई के कहने के मायने क्या हैं।
भारत के नए चीफ जस्टिस सूर्यकांत। उन्होंने 53वें सीजेआई के रूप में शपथ ली है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने मंगलवार को महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान साफ शब्दों में कहा कि हम जो भी करें, लेकिन समाज को जाति के आधार पर बांटना नहीं चाहिए।
यह टिप्पणी उस वक्त आई जब विभिन्न पक्षों ने चिंता जताई कि अगर स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण की 50% सीमा को सख्ती से लागू किया गया तो अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी पूरी तरह से प्रतिनिधित्व से बाहर हो जाएगा। सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने रिज़र्वेशन का सपोर्ट करते हुए कहा कि क्योंकि महाराष्ट्र के कई इलाकों में आदिवासी आबादी काफी है, इसलिए अकेले एससी-एसटी रिज़र्वेशन उन इलाकों में 50% होगा, और इसलिए, ओबीसी रिज़र्वेशन के लिए कोई जगह नहीं होगी।
क्या हुआ कोर्ट में?
सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच महाराष्ट्र में 2021 से रुके हुए स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने के मामले की सुनवाई कर रही थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि महाराष्ट्र के कई इलाकों में आदिवासी आबादी बहुत अधिक है। वहाँ सिर्फ एससी-एसटी आरक्षण ही 50% तक पहुँच जाता है। ऐसे में ओबीसी के लिए कोई जगह नहीं बचती। उन्होंने यह भी कहा कि 1931 के बाद कभी जाति जनगणना नहीं हुई है, लेकिन अब नई जनगणना होने वाली है, जिससे ओबीसी की वास्तविक आबादी का पता चलेगा।लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इंदिरा जयसिंह की इस दलील पर सीजेआई ने कहा, 'ओबीसी को पूरी तरह बाहर रखकर लोकतंत्र कैसे चलेगा?' फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, 'जो भी करें, समाज को जाति के आधार पर नहीं बांटना चाहिए।' जयसिंह ने तुरंत जवाब दिया, 'हम तो सिर्फ आनुपातिक प्रतिनिधित्व मांग रहे हैं।'
पहले भी की थी ऐसी टिप्पणी
यह पहली बार नहीं है जब सीजेआई सूर्यकांत ने जाति के आधार पर बंटवारे के खिलाफ आवाज उठाई हो। फरवरी 2025 में बेंगलुरु की एडवोकेट्स एसोसिएशन में एसटी/एसटी और पिछड़े वकीलों के लिए आरक्षण की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था, 'हम बार को जाति या धर्म के आधार पर नहीं बंटने देंगे... यह हमारा इरादा नहीं है और हम ऐसा होने भी नहीं देंगे।'
मामला क्या है?
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी और कहा था कि ‘ट्रिपल टेस्ट’ पूरा किए बिना आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
इसके बाद मार्च 2022 में राज्य सरकार ने जयंत कुमार बंठिया आयोग गठित किया। आयोग ने जुलाई 2022 में रिपोर्ट सौंपी। मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि चार महीने के अंदर चुनाव कराए जाएं और बंठिया आयोग की रिपोर्ट से पहले वाली स्थिति के अनुसार ओबीसी आरक्षण दिया जाए।
पिछले हफ्ते कोर्ट ने साफ़ किया कि उस आदेश का मतलब 50% की सीमा को तोड़ना नहीं था। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि आरक्षण 50% की सीमा के अंदर ही रहना चाहिए। आज की सुनवाई में भी यही मुद्दा उठा कि अगर 50% की सख्त सीमा लागू की गई तो कई इलाकों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाएगा।
मामले की अगली सुनवाई जल्द ही होगी। कोर्ट ने सभी पक्षों से लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही यह भी साफ़ कर दिया है कि 50% की संवैधानिक सीमा को पार नहीं किया जा सकता, लेकिन ओबीसी को पूरी तरह बाहर भी नहीं किया जा सकता है।