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ईवीएम हैक-प्रूफ़ हैं तो गड़बड़ियों की इतनी शिकायतें क्यों?

क्या ईवीएम हैक-प्रूफ़ है? ईवीएम को हैक करने का साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजा का दावा क्या सिर्फ़ एक मज़ाक है? यदि ऐसा है तो 2014 से पहले ईवीएम में धाँधली के बीजेपी के आरोप भी क्या मज़ाक की श्रेणी में ही आएँगे? फिर तो कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य सभी नेताओं के आरोप भी मज़ाक ही होंगे! क्योंकि देश में बीजेपी, कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल कभी न कभी ईवीएम से छेड़छाड़ किए जाने के आरोप लगा चुके हैं।

ईवीएम पर सवाल लंबे अरसे से उठते रहे हैं। कर्नाटक से लेकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, और गुजरात तक और निकाय चुनाव से लेकर लोकसभा चुनावों तक में ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं। ये गड़बड़ियाँ ईवीएम की मॉक टेस्टिंग से लेकर मतदान के दौरान हुईं। विपक्षी पार्टियाँ आरोप लगाती रही हैं। चुनाव आयोग तकनीकी ख़ामियाँ बताती रही हैं। लेकिन क्या इतनी शिकायतें संदेह नहीं पैदा करतीं? पढ़िए, कब-कब और कैसी-कैसी गड़बड़ियाें की शिकायतें आई हैं-

कर्नाटक

मई 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कर्नाटक कांग्रेस के प्रवक्ता बृजेश कलप्पा ने आरोप लगाया था कि बेंगलुरु में कई पोलिंग बूथ पर ईवीएम से छेड़छाड़ हुई। कलप्पा ने आरोप लगाया था, ‘उनके माता-पिता के अपार्टमेंट के सामने वाले आरएमवी सेकेंड स्टेज बेंगलुरु में 5 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। इनमें से दूसरे पोलिंग बूथ में ईवीएम मशीन में कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी के खाते में जा रहे हैं।’

दूसरे ट्वीट में कलप्पा ने कहा था, ‘हमें राज्य भर से रामानगर, चामराजपेट और हेबलल से तीन शिकायतें मिली हैं जहाँ ईवीएम हैक या ख़राब होने की बात कही गई है।’ चुनाव आयोग ने आरोपों से इनकार किया और हालाँकि इसने मशीन में तकनीकी ख़राबी की बात कही और ईवीएम को बदला गया। बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को आधारहीन कहा और चुनाव आयोग की छवि को ख़राब करने की साज़िश बताया। इसने कहा कि यह सिर्फ़ एक तकनीकी ख़राबी थी।

उत्तर प्रदेश

नवंबर 2017 में बीजेपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के दौरान मेरठ के एक पोलिंग बूथ पर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को लेकर शिकायत आई थी। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में शिकायतकर्ताओं के हवाले से ख़बर आई थी कि कोई भी बटन दबाने पर सिर्फ़ बीजेपी वाले निशान पर ही जा रहा था। हलाँकि मेरठ के अधिकारियों ने मशीन को ख़राब बताते हुए दावा किया कि इसमें कुछ 'गड़बड़ी' थी।

बीजेपी विरोधी दलों का आरोप था कि मशीनों से छेड़छाड़ की गई थी। मेरठ के वार्ड- 89 में भी यही हाल दिखा। आरोप लगा कि यहाँ किसी भी बटन को दबाने के बाद बीजेपी की ही पर्ची निकलती दिखी थी। इसके बाद काफ़ी हंगामा हुआ। 

राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने संवाददाताओं से कहा था कि कुछ जगह मशीनों में तकनीकी ख़ामियाँ ज़रूर थीं जिन्हें तत्काल बदल दिया गया, लेकिन सत्ताधारी पार्टी को ही वोट जाने संबंधी शिकायतों के बारे में कानपुर और मेरठ के ज़िलाधिकारियों से रिपोर्ट मंगाई गई थी। कानपुर में भी ऐसी शिकायत आई थी। कांग्रेस नेता ने ट्वीट कर हमला किया था। 

गुजरात

साल 2017 में गुजरात में 9 दिसंबर को मतदान के दौरान राजकोट में 33 ईवीएम में तकनीकी ख़ामियाें की शिकायतें आईं। एक स्थानीय मीडिया वीटीवी गुजराती न्यूज़ की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि द्वारका के बूथ नंबर 168 में मतदाता जब ईवीएम में कांग्रेस का बटन दबा रहे थे, तब बीजेपी का चुनाव चिन्ह दिख रहा था। अकेले सूरत में ही लोगों ने 70 ईवीएम की शिकायतें की थी।

  • पोरबंदर में लोगों ने तीन ईवीएम के ब्लूटूथ डिवाइस से जुड़े होने का आरोप लगाया था। कांग्रेस नेता अर्जुन मोढवाडिया ने इस मामले में चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज़ कराई थी लेकिन चुनाव आयोग ने जाँच के बाद कांग्रेस की शिकायत को खारिज कर दिया था। ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत पर गुजरात चुनाव आयोग ने स्पष्टीकरण कहा था कि पूरे ज़िले में कुल 31 वीवीपीएटी और 27 ईवीएम को बदल दिया गया था।

मध्य प्रदेश

अप्रैल 2017 में मध्य प्रदेश के भिंड में डेमो ईवीएम से बीजेपी की पर्ची निकलने और मुख्य निर्वाचन अधिकारी का पत्रकारों को मज़ाकिया अंदाज में धमकी देने का एक वीडियो सामने आया था। दरअसल, मध्य प्रदेश के भिंड जिले में विधानसभा उपचुनाव की तैयारियों का जायजा लेने पहुंची मुख्य निर्वाचन अधिकारी सलीना सिंह ने वीवीपीएटी के डेमो के लिए 2 अलग-अलग बटन दबाए तो कमल के फूल की पर्ची निकली। इस पर पत्रकारों ने जब उनसे सवाल किया तो सिंह ने हँसकर कहा था, ‘मत छापना नहीं तो थाने में बिठवा दूँगी।’

  • दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी इस घटना को लेकर ट्वीट कर इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। मनीष सिसोदिया ने लिखा था, ‘बटन कोई भी दबाओ, वोट कमल को पड़ेगा...पर्ची में कुछ भी आए, प्रेस में नहीं आना चाहिए... नहीं तो पत्रकार को थाने में बिठा देंगे। लोकतंत्र खत्म।’ तब निर्वाचन आयोग ने अधिकारी से जवाब-तलब किया था और कार्रवाई की गई थी।

‘तकनीकी ख़राबी से कमल वाली बत्ती जली’

नवंबर 2014 में निकाय चुनाव के लिए जिलों में चल रहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की फ़र्स्ट लेबल चेकिंग में सामने आई ख़ामियों को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था। कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने राज्य निर्वाचन से शिकायत की थी कि ईवीएम के वोटिंग पैड में कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी को जा रहा था। मिश्रा ने आरोप लगाया था कि क़रीब 40 में से 17 मशीनों में कमल निशान वाले बटन को दबाने पर ही वोटिंग हो रही थी। वहीं चुनाव आयुक्त आर परशुराम ने आरोप को खारिज कर दिया था।

  • आयोग के मुताबिक़ कुछ मशीनों में ऐसी ख़राबी की शिकायत आई थी, जिसकी जाँच कराई गई। इस दौरान पाया गया कि वोटिंग पैड पर लगे बटन के ख़राब होने से मशीन फ़्रीज हो रही थी। इस स्थिति में कोई भी बटन दबाने पर ख़राब बटन की कमांड सक्रिय हो जाती थी, जिससे इसी बटन के नाम पर वोट दर्ज़ हो रहा था। आयोग के मुताबिक़ यह इत्तेफाक रहा कि इसी बटन पर बीजेपी का कमल निशाना बना हुआ था।

असम

अप्रैल 2014 में असम के जोरहाट में एक ईवीएम की मॉक टेस्ट ने चुनाव कर्मियों के होश उड़ा दिए। कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी के खाते में ही जा रहा था। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विजयेंद्र ने बताया था कि जोरहाट में एक ईवीएम में गड़बड़ी मिली और यह मशीन ख़राब थी। जब सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने ईवीएम की जाँच की जा रही थी तो मशीन की गड़बड़ी सामने आई था। उन्होंने कहा था कि इस ईवीएम को किसी भी पोलिंग बूथ पर नहीं भेजा जाएगा। 

कांग्रेस ने यह मामला सामने आने के बाद चुनाव आयोग से न सिर्फ़ जोरहाट में, बल्कि पूरे राज्य में ईवीएम की जाँच कराने की माँग की थी। 

बिहार

रेडिफ़ डॉट काम की ख़बर के अनुसार, अप्रैल 2004 के चुनाव में बीजेपी ने चुनाव आयोग से शिकयात की थी कि ईवीएम में कोई भी बटन दबाने पर वोट आरजेडी के चुनाव चिन्ह ‘लालटेन’ को जा रहे थे। तब आरजेडी राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी थी। पार्टी का आरोप था कि ईवीएम ‘लालटेन’ अलावा किसी दूसरे चुनाव चिन्ह को स्वीकार ही नहीं कर रहा था। 

  • तत्कालीन राज्य बीजेपी के कैम्पेन कमिटी के संयोजक चंद्र मोहन राय ने संवाददाताओं से कहा था कि मोतीहारी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी और बेतिया में लोगों ने शिकायत की थी कि कोई भी बटन दबाने पर सिर्फ़ लालटेन वाली बत्ती ही जल रही थी। उन्होंने आरोप लगया था कि शिकायत के बाद भी पोलिंग अधिकारियों ने पोलिंग जारी रखी थी।

अब यदि 2004 में आरजेडी का मामला छोड़ दें तो 2014 के बाद क़रीब-क़रीब सभी मामले में ईवीएम में गड़बड़ी का एक जैसा ट्रेंड दिखता है। इनमें आरोप लगते रहे हैं कि बटन कोई भी दबाने पर वोट बीजेपी को गए। क्या यह इत्तेफ़ाक है? सैयद शुजा के दावे को मानने का कोई आधार नहीं है। इसे गंभीरता से नहीं भी लें तो भी बार-बार आ रही शिकायतों से जो शंकाएँ उठ रही हैं उनके समाधान की ज़रूरत है। यह चुनाव आयोग में विश्वसनीयता को बढ़ाएगा ही।

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अमित कुमार सिंह
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