इलेक्टोरल बॉन्ड योजना ख़त्म होने के बावजूद कॉर्पोरेट ट्रस्टों ने बीजेपी को 3100 करोड़ रुपये का चंदा दिया। बीजेपी को बाक़ी सभी पार्टियों के कुल चंदे का कई गुना ज़्यादा मिला।
राजनीतिक चंदा जुटाने में बीजेपी का कोई मुक़ाबला नहीं है, यह फिर से साबित हो गया। इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने ख़त्म कर दिया तो क्या, अब कॉर्पोरेट ट्रस्टों ने बीजेपी की झोली भर दी है। नौ इलेक्टोरल ट्रस्टों ने कुल 3811 करोड़ रुपये पार्टियों को दिए। इनमें से ज्यादातर पैसा बीजेपी को गया। बीजेपी को 3112 करोड़ रुपये मिले, जो कुल का 82 प्रतिशत से ज़्यादा है। कांग्रेस को इन ट्रस्टों से क़रीब 8 प्रतिशत यानी 299 करोड़ रुपये मिले।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को ख़त्म कर दिए जाने के बाद पहली बार ट्रस्टों के माध्यम से इतना बड़ा चंदा राजनीतिक दलों को मिला है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम राजनीतिक पार्टियों को गुमनाम चंदा देने का तरीक़ा था। इस लिहाज से ट्रस्ट के माध्यम से चंदा देना ज़्यादा पारदर्शी माना जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड को ख़त्म किए जाने के बाद 2024-2025 में इलेक्टोरल ट्रस्टों से राजनीतिक पार्टियों को बड़ा चंदा मिला है।
द इंडियन एक्सप्रेस ने इलेक्टोरल ट्रस्टों द्वारा चुनाव आयोग को सौंपी गई रिपोर्टों के हवाले से ख़बर दी है कि कांग्रेस को इन ट्रस्टों से क़रीब 8 प्रतिशत यानी 299 करोड़ रुपये मिले। बाकी सभी पार्टियां मिलकर 10 प्रतिशत यानी 400 करोड़ रुपये ले सकीं। बता दें कि पार्टियों को कुल चंदा इससे ज्यादा मिलता है, क्योंकि इलेक्टोरल ट्रस्ट राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का सिर्फ एक तरीका है। हालाँकि सबसे ज़्यादा चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से ही मिलता है।
पहले से कितना बढ़ा चंदा?
पिछले साल 2023-2024 में ट्रस्टों से कुल 1218 करोड़ रुपये का चंदा पार्टियों को मिला था। अब 2024-2025 में ये तीन गुना से ज्यादा होकर 3811 करोड़ हो गया। ये बढ़ोतरी 200 प्रतिशत से ज्यादा की है। चुनाव आयोग के पास 19 रजिस्टर्ड ट्रस्टों में से 13 की रिपोर्ट हैं। नौ ट्रस्टों ने चंदा दिया, जबकि चार ट्रस्टों- जनहित, परिवर्तन, जयहिंद और जयभारत ने कोई चंदा नहीं दिया।प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट सबसे बड़ा डोनर
प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने बीजेपी को सबसे ज्यादा चंदा दिया। इसने कुल 2668 करोड़ रुपये बांटे, जिनमें से 82 प्रतिशत यानी करीब 2180 करोड़ रुपये बीजेपी को गए। कांग्रेस को सिर्फ़ 21 करोड़ मिले। इस ट्रस्ट को जिंदल स्टील एंड पावर, मेघा इंजीनियरिंग, भारती एयरटेल, ऑरोबिंदो फार्मा और टॉरेंट फार्मास्यूटिकल्स जैसी कंपनियों से पैसा मिला। प्रूडेंट ने कांग्रेस, टीएमसी, आप और टीडीपी जैसी पार्टियों को भी कुछ चंदा दिया, लेकिन ज्यादातर बीजेपी को।प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट का योगदान
प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 917 करोड़ रुपये इकट्ठा किए और 915 करोड़ बाँटे। इसमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा यानी करीब 757 करोड़ रुपये बीजेपी को मिले। सिर्फ़ 77 करोड़ रुपये कांग्रेस को मिले। इस ट्रस्ट को मुख्य रूप से टाटा ग्रुप की कंपनियों से पैसा आया।
न्यू डेमोक्रेटिक इलेक्टोरल ट्रस्ट को महिंद्रा एंड महिंद्रा, टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों से 160 करोड़ मिले। इसमें से 150 करोड़ बीजेपी को दिए। ट्रायंफ इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 25 करोड़ इकट्ठा किए और 21 करोड़ बीजेपी को दिए। इसका बड़ा डोनर सीजी पावर था। हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट को 35 करोड़ मिले और 30 करोड़ बीजेपी को दिए। मुख्य डोनर भारत फोर्ज और कल्याणी स्टील रहे। जनकल्याण ट्रस्ट को 19 लाख मिले, जिनमें से आधे बीजेपी और आधे कांग्रेस को गये। जनप्रगति इलेक्टोरल ट्रस्ट को केईसी इंटरनेशनल से 1 करोड़ मिला, जो शिवसेना यूबीटी को दिया। समाज इलेक्टोरल ट्रस्ट एसोसिएशन को 6 करोड़ रुपये मिले और इसमें से तीन करोड़ बीजेपी को दिए।इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों खत्म हुए?
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताया। ये स्कीम 2018 में शुरू हुई थी, जिसमें डोनर का नाम छिप जाता था। इलेक्टोरल बॉन्ड की पारदर्शिता पर इसलिए सवाल उठे थे क्योंकि इसमें यह पता ही नहीं लग पाता था कि किस कंपनी ने किस दल को और कितना चंदा दिया। इसके अलावा भी इसमें कई तरह की जानकारियाँ गुप्त रखी गई थीं। अब कंपनियां चेक, डिमांड ड्राफ्ट या बैंक ट्रांसफर से सीधे चंदा दे सकती हैं। इलेक्टोरल ट्रस्ट का तरीका भी है, जिसमें कंपनियां ट्रस्ट को पैसा देती हैं और ट्रस्ट पार्टियों को बांटता है। ट्रस्ट को डोनर के नाम बताने पड़ते हैं, लेकिन ट्रस्ट से पार्टी को जाते पैसे में डोनर का सीधा लिंक नहीं दिखता।
पिछले साल की तुलना 2023-2024 में बीजेपी को कुल 3967 करोड़ का चंदा मिला था, जिसमें से 43 प्रतिशत यानी 1685 करोड़ इलेक्टोरल बॉन्ड से आए थे। अब बॉन्ड खत्म होने के बाद ट्रस्टों से चंदा बढ़ गया है।
इस ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि राजनीतिक फंडिंग में कॉर्पोरेट का बड़ा रोल है। कई लोग कहते हैं कि इससे पारदर्शिता बढ़ी है, लेकिन कुछ को लगता है कि अभी भी पूरी जानकारी नहीं मिलती।