Pakistan Saudi Arab Defence Agreement and India पाकिस्तान और सऊदी अरब ने रक्षा सहयोग समझौता किया है, जिसके तहत किसी एक देश पर हमला दोनों पर हमला माना जाएगा। जानिए भारत की प्रतिक्रिया, इसके क्षेत्रीय प्रभाव और भारत-सऊदी रिश्तों के संदर्भ में इसका क्या मतलब है।
पाकिस्तान सऊदी अरब सैन्य समझौते के दौरान शहबाज शरीफ और सऊदी किंग एमबीएस
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की रियाद यात्रा के दौरान पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक-दूसरे की रक्षा करने का समझौता किया है। यानी कि अगर इन दोनों देश में किसी भी एक देश पर हमला होता है तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इस पर भारत ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ये कोई नई बात नहीं हैं। इन दोनों देशों के बीच रिश्ते पहले से ही अच्छे हैं बस अब इस दोस्ती को औपचारिक रूप दिया गया है।
सबसे पहले पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच के समझौते को गहराई से समझ लेते हैं । पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के बुलाने पर 17 सितंबर को रियाद पहुंचे। अल-यमामा पैलेस में दोनों की मुलाकात हुई। संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों ने अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक रिश्तों की समीक्षा की। कई अहम मुद्दों पर बात हुई ।
पाकिस्तान-सऊदी अरब की 80 साल पुरानी साझेदारी
फिर रक्षा समझौता हुआ। पाकिस्तान और सउदी अरब के बीच ये समझौता लगभग 80 साल पुरानी साझेदारी पर आधारित है। भाईचारा, इस्लामी एकजुटता, साझा हित - ये सब इसमें शामिल हैं। समझौते का मकसद है रक्षा सहयोग बढ़ाना। अगर किसी एक देश पर हमला हो, तो इसे दोनों पर हमला समझा जाएगा। मतलब, हमला करने वाले को संयुक्त रूप से जवाब दिया जाएगा।
इस बैठक की एक फोटो में पाकिस्तान आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर, पीएम शरीफ और सऊदी प्रिंस साथ नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान न्यूक्लियर पावर है, तो सऊदी के लिए ये और मजबूत बैकअप। लेकिन सऊदी अधिकारियों ने कहा कि ये कोई एक देश के खिलाफ नहीं, बल्कि पुराने रिश्तों को औपचारिक करने का तरीका है।
हमें पता है कि यह समझौता होने वाला हैः भारत
इस मामले पर भारत ने संयमित प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा, "हमें खबर मिली है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान ने रणनीतिक आपसी रक्षा समझौता किया है। ये दोनों देशों के बीच पहले से चली आ रही व्यवस्था को औपचारिक रूप देता है। सरकार को पहले से पता था कि ये समझौता होने वाला है ।"मंत्रालय ने आगे कहा, "हम इस समझौते के असर को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय हालात और वैश्विक स्थिरता के नजरिए से ध्यान से देखेंगे। भारत सरकार पूरी तरह ध्यान रख रही है कि हमारे राष्ट्रीय हितों की रक्षा हो और हर लेवल पर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।"
टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने इस मामले पर तंज कसते हुए कहा कि मोदी की “विश्वस्तरीय कूटनीति” का नतीजा देख लीजिए। इस समझौते के तहत, अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो उसे दोनों पर हमला माना जाएगा। उधर बीजेपी ऐसे दिखावटी कामों का जश्न मना रही है जैसे “मोदी का बर्थडे फोटो बुर्ज खलीफ़ा पर।” तो ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी की “कूटनीति” ने क्या हासिल किया? कुछ भी नहीं।
यह समझौता ऐसे वक्त में हुआ है जब पहलगाम आतंकी हमले और भारत की जवाबी कार्रवाई "ऑपरेशन सिंदूर" के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद बिगड़ गए हैं। वहीं दूसरी ओर सउदी से भारत के रिश्ते काफी मजबूत हैं । अप्रैल में जब प्रधानमंत्री मोदी सऊदी अरब गए थे, तब पहलगाम आतंकी हमले की सऊदी अरब ने कड़ी निंदा की थी।
उस वक्त जारी संयुक्त बयान में साफ कहा गया था कि “आतंकी हमलों को किसी भी वजह से सही नहीं ठहराया जा सकता।” दोनों देशों ने सीमा पार आतंकवाद की निंदा की और सभी देशों से कहा कि आतंकवाद को हथियार की तरह इस्तेमाल करना बंद करें, जहां भी आतंकी ठिकाने हैं उन्हें मिटाएं और जो लोग ऐसे हमलों के पीछे हैं, उन्हें जल्दी से जल्दी सज़ा दें।
सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्ते कई दशकों पुराने हैं। पाकिस्तान ने सऊदी को सैन्य प्रशिक्षण दिया, सुरक्षा में मदद की। अब यह सब औपचारिक रूप से समझौते में बदल गया है। लेकिन इसके समय पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि हाल ही में इसराइल ने क़तर पर हमला किया, जिसके बाद खाड़ी देशों में चिंता बढ़ गई। अमेरिका पर भरोसे को लेकर भी सवाल उठे, तो सऊदी ने पाकिस्तान का साथ लिया। भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
पाकिस्तान को सऊदी का समर्थन मिलने से सीमा पर तनाव बढ़ सकता है। परमाणु हथियारों के नज़रिए से देखें तो पाकिस्तान अपनी परमाणु छत्रछाया सऊदी तक पहुँचा सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझौता रक्षा सहयोग पर है, किसी खास मुद्दे पर नहीं।