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रहने के लिए और बदतर हुई दिल्ली और मुंबई

यदि आप देश की राजधानी दिल्ली या बॉलीवुड की चमक-धमक वाली मुंबई के बारे में सोचते हैं कि इन शहरों में रहने के लिए सुविधाएँ और हालत बढ़िया हैं तो आपको अपना विचार बदल लेना चाहिए। दरअसल, हाल की रिपोर्ट आयी है कि रहने के लिए दिल्ली और मुंबई में स्थिति काफ़ी ख़राब है और यहाँ पिछले साल की तुलना में स्थिति और बदतर हुई है। यानी साफ़-साफ़ कहें तो हवा ज़्यादा ज़हरीली हुई है, पानी की किल्लत बढ़ी है, अपराध बढ़े हैं और दूसरी परिस्थितियाँ भी ऐसी हुई हैं जिसे रहने के लिए सही नहीं माना जा सकता है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट यानी ईआईयू ने दुनिया के 140 शहरों का सर्वे किया है और ‘वर्ल्ड्स मोस्ट लिवेबल सिटी’ के नाम से सूची जारी की है। इसमें दिल्ली 118वें स्थान पर है। पिछले साल यह 112वें स्थान पर थी। यानी पिछले साल की तुलना में दिल्ली छह स्थान नीचे खिसकी है। इस सूची में एशिया में सबसे ज़्यादा नुक़सान दिल्ली को ही हुआ है। इसके अलावा भारत के दूसरे शहर मुंबई को भी दो स्थानों का नुक़सान हुआ है। अब मुंबई 119वें स्थान पर पहुँच गयी है। रहने के लिए ऑस्ट्रिया का शहर वियना दुनिया में सबसे बढ़िया शहर है और यह नंबर एक पर है। सूचकांक में जहाँ दिल्ली को 56.3 और मुंबई को 56.2 का स्कोर दिया गया है वहीं सूची में शीर्ष पर बरकरार वियना को 99.1 का स्कोर मिला है।

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इस सूची में ऑस्ट्रेलिया का मेलबर्न और सिडनी दूसरे व तीसरे स्थान पर, जापान का ओसाका चौथे स्थान और कनाडा का कैलगरी शहर पाँचवें स्थान पर है।

सूची में सबसे निचले पायदान यानी 140वें पायदान पर सीरिया का दमिस्क, नाइजीरिया का लागोस 139वें, बांग्लादेश का ढाका 138वें, लीबिया की त्रिपोली 137वें और पाकिस्तान का कराची शहर 136वें स्थान पर है।

दुनिया के 140 शहरों की रैंकिंग वाले इस सर्वे में ईआईयू ने जिन पैमानों के आधार पर सर्वे किया है उनमें स्थिरता, संस्कृति व पर्यावरण, हेल्थकेयर, शिक्षा और इन्फ़्रास्ट्रक्चर को शामिल किया गया है।

सर्वे कराने वाली संस्था ईआईयू यानी इकनामिक्स्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने कहा है कि मुंबई की रैंक में गिरावट मुख्य रूप से अपने संस्कृति व पर्यावरण के स्कोर में गिरावट के कारण है। 

दिल्ली बुरी हालत में क्यों?

दिल्ली मुख्य रूप से संस्कृति और पर्यावरण के स्कोर में गिरावट के कारण सूचकांक में 6 स्थान नीचे खिसकी है। साथ ही बढ़ते अपराध के कारण दिल्ली के स्थिरता स्कोर में गिरावट आई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सूचकांक में नीचे गिरी नई दिल्ली जैसे शहरों पर रहा है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं में हवा की ख़राब गुणवत्ता, अधिक तापमान और पेयजल का संकट है। यही कारण है कि दिल्ली के स्कोर में काफ़ी गिरावट आई है।

पानी की किल्लत

बरसात से पहले ही गर्मियों में दिल्ली में पानी की भारी किल्लत थी। आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि हर रोज़ दिल्ली को 120 करोड़ गैलन पानी की ज़रूरत है, लेकिन उपलब्ध सिर्फ़ 90 करोड़ गैलन ही है। यानी 30 करोड़ गैलन पानी की कमी है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने संसद में कहा है कि 2020 में ही भयंकर जल संकट पैदा होने के आसार हैं। 

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साँस लेना भी मुश्किल

प्रदूषण का हाल यह है कि दिल्ली में लोगों की साँसें फूल जाती हैं। आए दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ने हवा ख़राब होने के कारण लोगों को मास्क पहनने के लिए मजबूर होना पड़ता है। स्कूलों को बंद तक करना पड़ जाता है। स्थिति तो यहाँ तक पहुँच जाती है कि दिल्ली के आसपास निर्माण कार्यों और उद्योग-धंधों को बंद करना पड़ जाता है। 2018 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल एम्बिएंट एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार दिल्ली की हवा में धूल-कण इतने ज़्यादा हैं कि इस मामले में दिल्ली दुनिया में छठे स्थान पर है। 

ईआईयू का मानना है कि अभी आने वाले दिनों में पर्यावरण परिवर्तन का असर शहरों के रहन सहन के स्तर में और ज़्यादा पड़ने वाला है।

स्वास्थ्य व्यवस्था ख़राब

‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र द्वारा पिछले साल जारी एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश के 111 प्रमुख शहरों में दिल्ली स्वास्थ्य के मामले में सबसे निचले पायदान पर रहा। दिल्ली में शीर्ष सरकारी हॉस्पिटलों में सैकड़ों रोगियों को छह महीने और दो साल के बाद का नंबर आता है। यह इसलिए है कि रोगियों की संख्या बढ़ी है और डॉक्टरों, बिस्तरों और उपकरणों की भारी कमी है।

ऐसे कैसे सुधरेगी स्थिति?

संयुक्त राष्ट्र की मई 2018 की एक रिपोर्ट कहती है कि 2028 तक दिल्ली दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर बन जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार तब दिल्ली में 2.9 करोड़ लोग रहे थे और 2028 तक इसके 3.72 करोड़ हो जाने की संभावना है। ऐसी स्थिति में दिल्ली की क्या हालत होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। हालाँकि हाल के दिनों में इन समस्याओं पर चिंताएँ जताई गई हैं और सुधार के उपाय पर ज़ोर दिया गया है, लेकिन देखना यह है कि इसका कोई दीर्घकालिक उपाय निकल पाएगा या नहीं।

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क़मर वहीद नक़वी
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