तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी और समाजवादी पार्टी यानी सपा ने कहा है कि वे उस संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में शामिल नहीं होंगी जो जेल में बंद मंत्रियों को पद से हटाने के लिए प्रस्तावित विधेयक पर चर्चा करेगी। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओब्रायन ने इसकी घोषणा की। एनडीए सरकार के इस प्रस्तावित विधेयक का पूरा विपक्ष विरोध कर रहा है और इसे सुपर इमरजेंसी बता रहा है। सरकार ने मानसून सत्र के समापन से ऐन पहले इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया और विपक्षी इंडिया गठबंधन के जबर्दस्त विरोध के बीच इसे जेपीसी को भेजने की घोषणा कर दी। हालाँकि, अन्य विपक्षी दलों ने रुख साफ़ नहीं किया है कि जेपीसी में वे शामिल होंगे या नहीं।

यह विवाद संसद में पेश किए गए उन तीन विधेयकों को लेकर है जिसका मक़सद उन मंत्रियों को तत्काल पद से हटाना बताया जा रहा है जो गंभीर आपराधिक मामलों में लगातार 30 दिन से ज़्यादा जेल में बंद रहता है। यानी यह समिति तीन विधेयकों की जांच के लिए गठित की जा रही है, जो किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को गिरफ्तारी के बाद पद पर बने रहने से रोकते हैं।
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विधेयकों में क्या प्रावधान?

ये तीन विधेयक हैं - संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक। इन विधेयकों में प्रस्ताव है कि यदि कोई मौजूदा मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री किसी ऐसे अपराध के लिए 30 लगातार दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रहता है जिसके लिए पांच साल या उससे अधिक की जेल की सजा हो सकती है, तो वह एक महीने के भीतर अपना पद गँवा देगा।

इन विधेयकों को 20 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयकों को पेश किए जाने के दौरान विपक्ष के भारी विरोध और नारेबाजी के बीच हंगामा हुआ। इस दौरान कुछ विपक्षी सांसदों ने विधेयक की प्रति फाड़कर कागज के टुकड़े केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर उछाले। इन विधेयकों को अब 31 सदस्यों वाली संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को भेजा जाएगा। जेपीसी में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे।

टीएमसी, सपा का क्या फैसला?

टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओब्रायन ने शनिवार को एक पोस्ट में लिखा, 'ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक की जांच के लिए प्रस्तावित जेपीसी में अपने किसी भी सदस्य को नामित न करने का फैसला किया है।' उन्होंने कहा कि हमारे विचार में यह जेपीसी एक मजाक है। हालाँकि समाजवादी पार्टी ने आधिकारिक तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन पार्टी के नेताओं ने संकेत दिए हैं कि वे जेपीसी में शामिल नहीं होंगे।
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जेपीसी की विश्वसनीयता पर सवाल

ओब्रायन ने जेपीसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, 'संयुक्त संसदीय समितियां मूल रूप से लोकतांत्रिक और नेक इरादों से बनाई गई थीं। इन्हें संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्तावों के माध्यम से स्थापित किया जाता है और इन्हें गवाहों को बुलाने, दस्तावेज मांगने और विशेषज्ञों की जांच जैसे असाधारण अधिकार दिए जाते हैं। ये अधिकार सामान्य समितियों से कहीं अधिक हैं, ताकि पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। लेकिन 2014 के बाद इनका उद्देश्य काफी हद तक कमजोर हो गया है। अब जेपीसी का उपयोग सत्तारूढ़ सरकार द्वारा अपने हितों के लिए किया जा रहा है। प्रक्रियाओं को दरकिनार किया जाता है, विपक्ष के संशोधनों को खारिज कर दिया जाता है और सार्थक बहस की जगह पक्षपातपूर्ण बातें ले लेती हैं।'

हाल के दिनों में विपक्ष ने आरोप लगाया था कि वक्फ विधेयक पर जेपीसी में एनडीए सांसदों का दबदबा था और विपक्ष के असहमति नोट को पूरी तरह शामिल नहीं किया गया। बाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने हस्तक्षेप कर असहमति नोट के पूर्ण पाठ को रिपोर्ट में शामिल करने का निर्देश दिया था।

वैसे तो विपक्षी नेताओं ने एकसुर में ही इन विधेयकों का विरोध किया है, लेकिन लगता है कि जेपीसी में शामिल होने को लेकर एकराय नहीं है।

विपक्षी नेताओं में संशय

इसकी कुछ वजहें भी हैं। कहा जा रहा है कि पार्टियों का जेपीसी से बाहर रहना एक दुर्लभ घटना होगी। एक और वजह यह है कि यदि विपक्षी नेता इसमें शामिल नहीं होते हैं तो सरकार बिना आपत्ति के इसे संसद में पेश कर देगी। जेपीसी में विपक्ष की आपत्तियों की वजह से देश में इस पर बहस होती है और फिर उसके गुण-दोषों पर चर्चा होती है।

शायह यही वजह है कि सभी विपक्षी दलों ने जेपीसी में शामिल न होने को लेकर अब तक बयान जारी नहीं किया है। विपक्ष के एक वर्ग ने कहा है कि वे सपा और टीएमसी को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एक नेता ने कहा, 'अगर ये दोनों दल बाहर रहते हैं तो जेपीसी में बीजेपी और एनडीए के सांसदों की संख्या बढ़ जाएगी। इससे जेपीसी का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।'
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विधेयक पर ममता क्या बोलीं?

20 अगस्त को लोकसभा में विधेयक पेश किए जाने के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे घातक कदम करार दिया। उन्होंने कहा, 'मैं संविधान (130वां संशोधन) विधेयक की निंदा करती हूं। यह सुपर-आपातकाल से भी बड़ा कदम है, जो भारत के लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए खत्म कर देगा। यह घातक कदम भारत में लोकतंत्र और संघवाद के लिए ख़तरे की घंटी है। विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर के नाम पर भारतीय नागरिकों के मतदान अधिकारों को दबाना केंद्र सरकार का एक और घातक कदम है।' विधेयक के पेश किए जाने के दौरान हुई संक्षिप्त चर्चा में सपा के सांसद धर्मेंद्र यादव ने इसे संविधान विरोधी, मौलिक अधिकारों के खिलाफ और पूरी तरह से अन्यायपूर्ण बताया।

टीएमसी और सपा का जेपीसी से बाहर रहने का फैसला इन विधेयकों के खिलाफ विपक्ष के गहरे अविश्वास को दिखाता है। यह कदम संसद में इन विधेयकों पर होने वाली चर्चा और उनके भविष्य को और मुश्किल कर सकता है। जहां एक ओर विपक्ष इसे लोकतंत्र और संघवाद के खिलाफ कदम बता रहा है, वहीं सरकार इन विधेयकों को ज़रूरी सुधार के रूप में पेश कर रही है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और बहस होने की संभावना है।