Countrywide SIR ECI SC: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कहा है कि वोटर लिस्ट संशोधन और एसआईआर कब कराई जाए, यह उसके संवैधानिक विशेषाधिकारों में शामिल है।
निर्वाचन आयोग ऑफ इंडिया (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि मतदाता सूचियों का विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision - SIR) किस समय हो और उसका तरीका तय करने का 'पूर्ण अधिकार' आयोग के पास है। आयोग का कहना है कि पूरे देश में नियमित अंतराल पर SIR कराने का निर्देश देना उसके विशेष संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में दखल होगा। यह बयान आयोग ने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका (PIL) के जवाब में दाखिल जवाबी एफिडेविट में दिया है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने हर संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव से पहले SIR कराने की मांग की है। उपाध्याय बीजेपी से जुड़े हुए हैं। अक्सर वो धरना-प्रदर्शन में नज़र आए हैं। पुलिस में उनके खिलाफ केस भी दर्ज है।
अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट में यह PIL दायर की थी, जिसमें कहा गया कि विदेशी घुसपैठिए नकली दस्तावेजों से मतदाता सूची में नाम दर्ज करा रहे हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता खतरे में है। याचिकाकर्ता ने मांग की कि केंद्र, राज्य सरकारों और ECI को निर्देश दिया जाए कि वे पूरे देश में नियमित SIR करें, ताकि केवल भारतीय नागरिक ही नीतियां और शासन तय कर सकें। याचिका में विशेष रूप से बिहार का जिक्र किया गया, जहां विधानसभा चुनाव आने वाले हैं।
ECI ने अपने जवाबी हलफनामे में अनुच्छेद 324 के तहत अपने व्यापक अधिकारों का हवाला दिया। इसमें कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 25 के अनुसार, मतदाता सूची के संशोधन का समय और प्रकार (सारांशिक या गहन) तय करने का अधिकार पूरी तरह आयोग के विवेक पर निर्भर है। आयोग ने तर्क दिया कि कानून में संशोधन के लिए कोई निश्चित समय-सीमा तय नहीं है, बल्कि यह सामान्य दायित्व है जो चुनाव से पहले पूरा किया जाना चाहिए। नियमित SIR का निर्देश देने से आयोग की स्वायत्तता पर अतिक्रमण होगा।
आयोग ने आगे कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह अवगत है और मतदाता सूचियों की शुद्धता बनाए रखने के लिए पहले से ही कदम उठा चुका है। 24 जून 2025 के SIR आदेश के पैरा 10 के तहत विभिन्न राज्यों में SIR की योजना बनाई गई है, जिसका शेड्यूल अलग से जारी किया जाएगा।
यह मामला बिहार के SIR अभियान से जुड़ा है, जहां आयोग ने 24 जून 2025 को अधिसूचना जारी की थी। इस अभियान के तहत बिहार की मतदाता संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे अल्पसंख्यक और गरीब वोटरों को वंचित करने का प्रयास बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने जुलाई 2025 में SIR को जारी रखने की अनुमति दी।
बिहार SIR: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं
8 सितंबर 2025: कोर्ट ने ECI को निर्देश दिया कि बिहार SIR में आधार कार्ड को 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए, हालांकि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ECI को यह निर्देश 9 सितंबर तक लागू करना होगा। इसके अलावा, EPIC (Elector's Photo Identity Card) और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर भी विचार करने को कहा गया।
14 अगस्त 2025: कोर्ट ने ECI को 65 लाख से अधिक हटाए गए मतदाताओं की सूची और हटाने के कारणों को खोजने योग्य प्रारूप में जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर प्रकाशित करने का आदेश दिया।
1 सितंबर 2025: दावा-आपत्ति की समय-सीमा समाप्त होने के बाद भी ECI ने कहा कि नामांकन की अंतिम तिथि तक दावे और आपत्तियां स्वीकार की जाएंगी। 98% मतदाताओं ने दस्तावेज जमा कर दिए हैं।
10 सितंबर 2025: ECI ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों का एक सम्मेलन बुलाया, जहां 1 जनवरी 2026 को योग्यता तिथि के साथ राष्ट्रव्यापी SIR की तैयारी पर चर्चा हुई। 5 जुलाई 2025 के पत्र के माध्यम से (बिहार को छोड़कर) सभी राज्यों को पूर्व-संशोधन गतिविधियां शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं।
बिहार SIR की अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी। आयोग ने दावा किया कि यह प्रक्रिया 'चल रही' है और 99.5% दस्तावेज पूरे हो चुके हैं। विपक्षी नेता जैसे तेजस्वी यादव और महुआ मोइत्रा ने इसे 'NRC जैसा' बताते हुए विरोध किया, जबकि BJP नेता इसे घुसपैठियों को हटाने का स्वागत योग्य कदम मान रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर अगली सुनवाई 15 सितंबर 2025 के लिए तय की है। अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि वे SIR को पूरे देश में लागू करने के लिए आवेदन दाखिल कर चुके हैं और उम्मीद करते हैं कि आयोग अगली सुनवाई से पहले कार्रवाई करेगा। ECI ने याचिका खारिज करने की मांग की है, तर्क देते हुए कि उसके पास पहले से ही आवश्यक शक्तियां हैं।
यह घटनाक्रम चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और नागरिकों के मताधिकार के बीच संतुलन को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला ECI की स्वायत्तता और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं पर बहस को तेज करेगा।