इसका नतीजा क्या निकलेगाः यह तय करने के बाद ही कि किसने (कॉरपोरेट/व्यक्ति) किस पार्टी को कितना दान दिया, इससे यह पता लगाया जा सकता था कि क्या किसी के चंदे का उस कंपनी या व्यक्ति के पक्ष में किसी सरकारी नीति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा। सारा मुद्दा तो यही था कि चंदा लेने के बाद उस कंपनी या उसके मालिक या व्यक्ति के पक्ष में सत्तारूढ़ पार्टी ने क्या किया। या फिर विपक्ष ने चंदा लेकर उस कंपनी या शख्सियत के खिलाफ सवाल क्यों नहीं उठाए।
इस तरह स्टेटबैंक को 12 मार्च तक डेटा के दो अलग-अलग सेट पेश करने होंगे: हर चुनावी बांड की खरीद की तारीख, बांड के खरीदार का नाम और खरीदे गए बांड के मूल्य का विवरण। चुनावी बांड के माध्यम से पैसा या चंदा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण, जिसमें हर बांड को भुनाने की तारीख और भुनाए गए बांड का मूल्य शामिल है।
किस कंपनी/कॉरपोरेट/व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया...यह रहस्य ही रहेगा।