US Oil vs Russian Oil: अमेरिका भारत पर सिर्फ उसकी कंपनियों से तेल खरीदने का दबाव बना रहा है। दरअसल, यह रूस के खिलाफ एक तरह की आर्थिक मोर्चेबंदी है। नाटो देशों ने भी इसे हवा दे दी है। इसका अंत नतीजा भारत के लिए ठीक नहीं होगा।
इस खबर के आने के बाद भारत का रणनीतिक बयान भारत के तेल मंत्री हरदीप पुरी के जरिए सामने आया। इस खबर को भारत की न्यूज एजेंसियों ने उतनी प्रमुखता नहीं दी, जितनी अमेरिकन न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने दी। रॉयटर्स ने 17 जुलाई को हरदीप पुरी को कोट करते हुए बताया- अगर रूस पर प्रतिबंधों के कारण सप्लाई प्रभावित होती है तो भारत वैकल्पिक स्रोतों से अपनी तेल आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रति आश्वस्त है। पुरी ने कहा कि हमें जरा भी चिन्ता नहीं है। हम अन्य माध्यमों से इंतजाम कर लेंगे।
भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल के कंपनी के अध्यक्ष ए.एस. साहनी ने एक कार्यक्रम में कहा, "हम सप्लाई के उसी स्वरूप पर लौटेंगे, जैसा यूक्रेन संकट से पहले अपनाया गया था। तब भारत को रूसी सप्लाई 2% से कम थी।" बता दें कि उस समय भारत अमेरिका की तेल कंपनियों से महंगा तेल खरीद रहा था।
भारत पर अमेरिकी तेल खरीदने का दबाव डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरी बार (20 जनवरी 2025) अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के बाद ही बनने लगा था। अब फिर उस रिपोर्ट पर आइए जो 15 जुलाई को आई थी कि इस साल पहले चार महीनों में भारत की यूएस तेल कंपनियों से खरीद 270 % तक बढ़ गई। 17 जुलाई को तेल मंत्री हरदीप पुरी और इंडियन ऑयल के अध्यक्ष का बयान उसके बाद आया। यानी भारत ने बाकायदा संकेत दे दिया है कि वो अमेरिका से और तेल खरीदेगा। ट्रंप निश्चिंत रहें।
भारत 88% तेल आयात करता है
भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, जो अपनी तेल आवश्यकताओं का लगभग 88% आयात करता है। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद, भारत ने रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीदना शुरू किया, जिसके कारण रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। जून 2025 में, भारत ने रूस से प्रतिदिन 2.2 मिलियन बैरल तेल आयात किया, जो कुल आयात का लगभग 41% था। हाल के महीनों में, अमेरिका ने रूस पर नए और कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें रूसी तेल व्यापार से जुड़े 183 टैंकरों और तेल कंपनियों पर प्रतिबंध शामिल हैं। इन प्रतिबंधों ने भारत के रूसी तेल आयात को प्रभावित किया है, जिसके कारण भारतीय रिफाइनरियों ने अमेरिका, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका से तेल खरीद बढ़ाई है।अमेरिका-भारत ऊर्जा डील
फरवरी 2025 में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने घोषणा की थी कि भारत और अमेरिका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारत अमेरिका से अधिक तेल और गैस आयात करेगा ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम किया जा सके। भारतीय तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी उस समय कहा था कि अमेरिका से अधिक ऊर्जा खरीद की संभावना है। ट्रम्प प्रशासन ने फौरन तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने की घोषणा की है। मार्च 2025 में, भारत ने अमेरिका से 256,000 बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो पिछले एक साल में सबसे अधिक था। इसके अलावा, भारतीय तेल कंपनियां, जैसे GAIL, Indian Oil Corp, और Bharat Petroleum, अमेरिका से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) खरीदने के लिए बातचीत कर रही हैं।
आर्थिक और भू-राजनीतिक दबाव
अमेरिका की रणनीति रूस की तेल आय को कम करने की है, जिसके लिए वह भारत जैसे बड़े खरीदारों को वैकल्पिक स्रोतों की ओर धकेल रहा है। लेकिन भारत, सस्ते तेल की उपलब्धता को प्राथमिकता देता है, पूरी तरह अमेरिकी दबाव में आता जा रहा है। रूस से सस्ता तेल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। अभी तो भारत यही संकेत दे रहा है कि वो रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा।
भारत ने अपनी तेल सप्लाई को विविध बनाने के लिए कदम उठाए हैं। मार्च 2025 में, भारत ने ब्राजील, नाइजीरिया, कोलंबिया, और वेनेजुएला जैसे देशों से तेल आयात बढ़ाया। यह बताता है कि भारत किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता, चाहे वह रूस हो या अमेरिका। अमेरिका से तेल और गैस आयात बढ़ाना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर सकता है, लेकिन यह रूस या मध्य पूर्व से आयात को पूरी तरह बदलने की स्थिति में नहीं है।