जम्मू-कश्मीर में तब एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया, जब रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुलत की नई किताब द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई में किए गए दावों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला को कटघरे में खड़ा कर दिया। दुलत ने अपनी किताब में दावा किया कि फारूक अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से अनुच्छेद 370 को रद्द करने की निंदा की थी, लेकिन निजी तौर पर वे इसके समर्थन में थे। इस दावे पर फारूक ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे 'ओछी हरकत' करार दिया और दुलत पर अपनी किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए विवाद पैदा करने का आरोप लगाया। यह मामला न केवल जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उथल-पुथल मचा रहा है, बल्कि देश भर में अनुच्छेद 370 के रद्द होने की संवेदनशीलता को फिर से चर्चा में ला रहा है।


फारूक अब्दुल्ला के लंबे समय से मित्र माने जाने वाले ए.एस. दुलत ने अपनी किताब में लिखा है कि 2019 में जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया, तब फारूक ने निजी बातचीत में कहा था, 'हम मदद करते। हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?' दुलत के अनुसार, फारूक ने यह बात 2020 में उनसे मुलाकात के दौरान कही। किताब में यह भी दावा किया गया है कि फारूक हमेशा दिल्ली के साथ काम करने के लिए तैयार रहे और शायद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस प्रस्ताव को पारित करने में मदद की होती।

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यह दावा इसलिए अहम है क्योंकि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त, 2019 को रद्द कर दिया गया था। इस कदम के बाद फारूक और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को करीब सात महीने तक नजरबंद रखा गया था। फारूक ने सार्वजनिक रूप से इस फैसले को विश्वासघात करार दिया था और पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डेक्लेरेशन का गठन कर अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे की मांग को मज़बूती से उठाया था।


फारूक अब्दुल्ला ने दुलत के दावों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि यह कल्पना की उड़ान है। उन्होंने दुलत को दोस्त कहने के बावजूद उनकी मंशा पर सवाल उठाए और कहा कि यह किताब गलतियों से भरी है। फारूक ने कहा,

हमारे अनुच्छेद 370 के खिलाफ रुख को सभी जानते थे, इसीलिए हमें और उमर को महीनों तक नजरबंद रखा गया। ...दुलत की किताब केवल एक 'ओछी हरकत' है और किताब की बिक्री के लिए लिखी गई है।
फारूक अब्दुल्ला
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता

फारूक ने दुलत के दावों को खारिज करते हुए यह भी कहा कि दुलत ने उनके और उनके फ़ैसलों को ग़लत तरीक़े से पेश किया है, जैसे कि 1996 में मंत्रिमंडल के आकार को लेकर सलाह देने का दावा। यह फारूक के अनुसार पूरी तरह गलत है। फारूक ने कहा कि मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं, किसी का कठपुतली नहीं।

दुलत के दावों ने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने दुलत के दावों को विश्वसनीय बताया, क्योंकि दुलत को फारूक का 'करीबी सहयोगी और लगभग उनका दूसरा रूप' माना जाता है। लोन ने 4 अगस्त, 2019 को फारूक और उमर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि यह मुलाकात उनके लिए कभी रहस्य नहीं थी।

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पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता इल्तिजा मुफ्ती ने भी फारूक पर निशाना साधा और दावा किया कि दुलत की किताब ने लंबे समय से चली आ रही शंकाओं की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि फारूक ने संसद में रहने के बजाय कश्मीर में रहना चुना, ताकि अनुच्छेद 370 को रद्द करने और जम्मू-कश्मीर के संविधान को खोखला करने को सामान्य किया जा सके।


नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि दुलत की किताब में विरोधाभास हैं। एनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा कि अगर फारूक अनुच्छेद 370 के रद्द होने के समर्थन में थे, तो वे नजरबंदी के बाद पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डेक्लेरेशन का नेतृत्व क्यों करते?

यह विवाद जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद की राजनीतिक संवेदनशीलता को उजागर करता है। फारूक और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने हमेशा खुद को कश्मीर की स्वायत्तता और विशेष दर्जे के रक्षक के रूप में पेश किया है। दुलत के दावों ने इस छवि को चुनौती दी है, जिससे एनसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी विपक्षी दलों ने इस अवसर का उपयोग एनसी पर दोहरे चरित्र रखने का आरोप लगाने के लिए किया है। यह विवाद 2024 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में एनसी की जीत और उमर अब्दुल्ला की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के बाद और भी अहम हो गया है।


दुलत की किताब ने न केवल राजनीतिक, बल्कि नैतिक सवाल भी उठाए हैं। यह सवाल भी उठता है कि क्या दुलत ने एक मित्र के निजी विचारों को सार्वजनिक कर उनकी गोपनीयता का उल्लंघन किया है। वैसे, फारूक ने अभी तक दुलत के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की बात नहीं की है, लेकिन उनकी तीखी प्रतिक्रिया से यह साफ़ है कि वे इस मामले को हल्के में नहीं ले रहे। यह विवाद भविष्य में मानहानि या अन्य कानूनी कार्रवाइयों का आधार बन सकता है।

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ए.एस. दुलत की किताब और फारूक अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। यह मामला अनुच्छेद 370 के रद्द होने के घावों को फिर से कुरेदता है, जो कश्मीर घाटी में अभी भी एक संवेदनशील मुद्दा है। फारूक के लिए यह एक व्यक्तिगत और राजनीतिक चुनौती है, क्योंकि वे अपनी और अपनी पार्टी की विश्वसनीयता को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

सवाल यह है कि क्या यह विवाद केवल किताब की बिक्री के लिए एक 'ओछी हरकत' है, जैसा कि फारूक ने कहा, या यह कश्मीर की राजनीति के गहरे सच को उजागर करता है।