अदालत ने कहा कि "कहीं न कहीं, इस विचार ने जोर पकड़ लिया है कि सनातन धर्म सिर्फ और सिर्फ जातिवाद और छुआछूत को बढ़ावा देता है। जो देश समानता की बात को मानता हो, वहां छुआछूत को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। भले ही इसे सनातन धर्म के सिद्धांतों के तौर पर कहीं न कहीं अनुमति के रूप में देखा गया हो। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 17 में साफ तौर पर कहा गया है कि छुआछूत को खत्म कर दिया गया है। समानता मौलिक अधिकार का हिस्सा है।''
अदालत ने याचिकाकर्ता एलंगोवन की ओर से दलीलों का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने काफी ताकत के साथ कहा है कि कहीं भी सनातन धर्म न तो छुआछूत को मंजूरी देता है और न ही इसे बढ़ावा देता है, और यह हिंदू धर्म के अनुयायियों को सभी के साथ समान व्यवहार करने पर जोर देता है।