गुजरात के रहने वाले युवक ने रूसी सेना के लिए लड़ते हुए, युद्ध के मैदान में यूक्रेनी सेना के सामने सरेंडर कर दिया। 22 वर्षीय इस युवक को रूसी सेना में भर्ती होने के लिए मजबूर किया गया था। उसकी कहानी दिलचस्प है। भारत सरकार ने बयान दिया है।
गुजरात का यह युवक डॉक्टरी पढ़ने रूस गया था लेकिन जबरन सेना में भर्ती किया गया।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध क्षेत्र से चौंकाने वाली खबर सामने आई है। रूसी सेना के साथ लड़ रहे एक भारतीय नागरिक ने यूक्रेन की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। वो युवक सिर्फ तीन दिन पहले रूस की सेना में भर्ती हुआ था। युवक गुजरात का रहने वाला है और रूस में डॉक्टरी पढ़ने गया था। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वे इस दावे की सत्यता की जांच कर रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन की ओर से कोई आधिकारिक सूचना अभी तक प्राप्त नहीं हुई है।
गुजरात से रूस तक की कहानी
मंगलवार को यूक्रेन की 63वीं मशीनीकृत ब्रिगेड ने अपने टेलीग्राम चैनल पर एक वीडियो जारी किया, जिसमें एक भारतीय नागरिक को युद्ध के मैदान में आत्मसमर्पण करते दिखाया गया है। वीडियो में इस व्यक्ति ने अपनी पहचान 22 वर्षीय मजोती साहिल मोहम्मद हुसैन के रूप में बताई, जो गुजरात के मोरबी का निवासी है। हुसैन ने बताया कि वह रूस में पढ़ाई के लिए गया था, लेकिन वहां उसे नशीले पदार्थों (ड्रग्स) से संबंधित मामले में सात साल की जेल की सजा सुनाई गई। इसके बाद उसे सजा माफ करने के बदले रूसी सेना में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया। हुसैन ने कहा, “मैं जेल में नहीं रहना चाहता था, इसलिए मैंने विशेष सैन्य अभियान (रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। लेकिन मैं वहां से निकलना चाहता था।”
केवल 16 दिनों की बुनियादी प्रशिक्षण अवधि, जिसमें राइफल चलाने और ग्रेनेड फेंकने जैसी प्रारंभिक ट्रेनिंग शामिल थी, के बाद हुसैन को 1 अक्टूबर को उनके पहली युद्ध मिशन पर भेजा गया। तीन दिन बाद, अपने कमांडर के साथ विवाद के बाद, उन्होंने यूक्रेन की 63वीं मशीनीकृत ब्रिगेड के सामने सरेंडर कर दिया।
हुसैन ने कहा, “मैं यूक्रेन सेना द्वारा बनाई गई खाई के पास पहुंचा, जो लगभग दो-तीन किलोमीटर दूर थी। मैंने तुरंत अपनी राइफल नीचे रख दी और कहा कि मैं लड़ना नहीं चाहता। मुझे मदद चाहिए थी… मैं रूस वापस नहीं जाना चाहता। वहां कोई सच्चाई नहीं है, कुछ भी नहीं। मैं यहां (यूक्रेन में) जेल में रहना पसंद करूंगा।”
हुसैन ने यह भी दावा किया कि रूसी सेना में शामिल होने के लिए उन्हें आर्थिक मुआवजे का वादा किया गया था, लेकिन उन्हें कोई पैसा नहीं मिला। यूरोमैदान प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, हुसैन को पहले 1 लाख रूबल, फिर 5 लाख और अंत में 15 लाख रूबल का वादा किया गया था, लेकिन कोई भी राशि उन्हें नहीं दी गई।
रूसी सेना में भारतीयों का मामला
यह पहला ज्ञात मामला है जिसमें किसी भारतीय नागरिक को यूक्रेन की सेना ने हिरासत में लिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान कई भारतीय नागरिकों को अनुबंध के आधार पर रूसी सेना में भर्ती किया गया है, और कुछ की युद्ध में मृत्यु भी हो चुकी है। कई भारतीय, जो रूस के लिए लड़े और बाद में भारत लौटे, ने बताया कि उन्हें धोखे से या दबाव डालकर रूसी सेना में सेवा देने के लिए मजबूर किया गया था।
सरकार ने फरवरी 2025 में संसद में बताया
- 127 भारतीय रूसी सेना में शामिल हुए
- 12 की मृत्यु युद्ध के मैदान में हो चुकी
- 18 लापता हैं। बाकी बचे लोग लौट आए हैं।
सितंबर में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हाल ही में हमें पता चला कि कुछ और भारतीय नागरिकों को रूसी सेना में भर्ती किया गया है। यह जानकारी हमें उनके परिवार वालों के माध्यम से मिली। हमने इस मामले को रूस में हमारे मिशन और मॉस्को में अधिकारियों के साथ जोरदार तरीके से उठाया है, और हमारी मांग है कि इन नागरिकों को जल्द से जल्द रिहा कर भारत वापस लाया जाए। लगभग 27 भारतीय हाल ही में रूसी सेना में शामिल हुए हैं, और हम उन्हें वापस लाने के लिए काम कर रहे हैं।”
भारत का रूस से अनुरोध
भारतीय अधिकारियों ने बार-बार रूस से अनुरोध किया है कि वह भारतीयों को अपनी सेना में भर्ती न करे। इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपनी बैठकों में उठाया है।
पिछले जुलाई में रूस यात्रा के दौरान, पीएम मोदी ने मॉस्को में पुतिन के साथ इस मुद्दे को बहुत मजबूती से उठाया था। इसके बाद रूस ने सभी भारतीय नागरिकों को जल्द से जल्द वापस भेजने का वादा किया था। विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा था, “प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से उठाया कि सभी भारतीय नागरिकों को जल्द से जल्द भारत वापस लाया जाए। रूस ने इस पर वादा किया है।”
पिछले अक्टूबर में रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भी पीएम मोदी ने पुतिन के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की थी। उस समय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, “रूसी सेना में बचे हुए भारतीय नागरिकों की जल्द रिहाई का मुद्दा एक महत्वपूर्ण बिंदु था। हाल के महीनों में रूस के समर्थन से कई भारतीय नागरिक भारत लौट चुके हैं। वर्तमान में दूतावास लगभग 20 मामलों पर रूसी पक्ष के साथ काम कर रहा है, और हमें उम्मीद है कि ये सभी व्यक्ति जल्द रिहा होकर भारत वापस आ सकेंगे।”
बहरहाल, इस मामले ने एक बार फिर रूस-यूक्रेन युद्ध में भारतीय नागरिकों की भर्ती के गंभीर मुद्दे को सामने ला दिया है। भारत सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है और अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए लगातार प्रयास कर रही है। हुसैन का आत्मसमर्पण और उनकी कहानी इस युद्ध की जटिलता और विदेशी नागरिकों की इसमें अनैच्छिक भागीदारी को उजागर करती है।