गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में एक एयर होस्टेस के साथ आईसीयू में यौन उत्पीड़न करने के आरोपी को शुक्रवार को गिरफ़्तार कर लिया गया। 6 अप्रैल को एक एयर होस्टेस के साथ आईसीयू में वेंटिलेटर पर रहते हुए यौन उत्पीड़न की चौंकाने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस मामले में गुरुग्राम पुलिस चार दिन की तलाश के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर पायी। 

आरोपी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बधौली गांव का निवासी है और अस्पताल में तकनीशियन के रूप में कार्यरत था। 46 वर्षीय एयर होस्टेस कोलकाता की रहने वाली हैं। 31 मार्च, 2025 को एक एयरलाइन कंपनी के प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए गुरुग्राम आई थीं। 5 अप्रैल को एक होटल के स्विमिंग पूल में डूबने की घटना के बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उनके पति ने उन्हें मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया। महिला को आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया था। शिकायत के अनुसार, 6 अप्रैल को जब वह अर्ध-चेतन अवस्था में थीं, अस्पताल के एक कर्मचारी ने उनका यौन उत्पीड़न किया। इस दौरान दो अन्य नर्सें भी मौजूद थीं, लेकिन उन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

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13 अप्रैल को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद महिला ने अपने पति को इस दर्दनाक घटना के बारे में बताया। अगले दिन यानी 14 अप्रैल को उन्होंने सदर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 68 यानी अधिकार में व्यक्ति द्वारा यौन संबंध और 64(2) यानी बलात्कार के लिए सजा के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई। महिला का बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष भी दर्ज किया गया।

गुरुग्राम पुलिस ने विशेष जांच दल यानी एसआईटी और आठ विशेष यूनिटों का गठन किया। इन्होंने 800 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की और अस्पताल कर्मचारियों से पूछताछ की। चार दिन की गहन तलाश के बाद आरोपी दीपक को गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया गया।

यह घटना न केवल अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति को भी उजागर करती है।

यह घटना अस्पतालों में मरीजों और खासकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए अपर्याप्त प्रोटोकॉल को उजागर करती है। आईसीयू जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां मरीज असहाय और अर्ध-चेतन अवस्था में होते हैं, वहां यौन उत्पीड़न का होना गंभीर लापरवाही को दिखाता है। एफ़आईआर के अनुसार, दो नर्सों की मौजूदगी के बावजूद कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ। 

मेदांता जैसे प्रतिष्ठित अस्पताल में कार्यरत कर्मचारी द्वारा ऐसी घटना का होना यह सवाल उठाता है कि क्या कर्मचारियों के बैकग्राउंड की जांच और प्रशिक्षण की प्रक्रिया पर्याप्त है। 

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यह घटना महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की व्यापक समस्या को दिखाती है। भारत में यौन हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जैसा कि हाल के आंकड़ों में दिखता है। जनवरी 2024 में उत्तर प्रदेश के बागपत में एक दलित महिला पर यौन उत्पीड़न के बाद गर्म तेल में धकेलने की घटना और मार्च 2024 में झारखंड में एक विदेशी व्लॉगर के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक मानसिकता को उजागर किया।


यह घटना अस्पतालों को सुरक्षित स्थान मानने वाली धारणा को चुनौती देती है। एक ऐसी जगह, जहां मरीज अपनी जिंदगी बचाने के लिए भरोसा करते हैं, वहां ऐसी घटना का होना विश्वास को तोड़ता है। 

गुरुग्राम पुलिस की त्वरित कार्रवाई और एसआईटी का गठन इस मामले की गंभीरता को दिखाता है। एनसीडब्ल्यू की सक्रियता और जनता का आक्रोश यह सुनिश्चित करता है कि इस मामले को दबाया नहीं जाएगा। हालांकि, यह भी सच है कि कई यौन हिंसा के मामलों में न्याय में देरी होती है, जो पीड़ितों के लिए निराशाजनक है।

मेदांता अस्पताल ने बयान जारी कर कहा कि वह जांच में पूरा सहयोग कर रहा है और अभी तक कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है। अस्पताल ने सभी संबंधित दस्तावेज और सीसीटीवी फुटेज पुलिस को सौंप दिए हैं। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि अस्पताल की प्रारंभिक प्रतिक्रिया रक्षात्मक थी, जिससे उनकी जवाबदेही पर सवाल उठे।


इस घटना ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, जिनका समाधान जरूरी है। अस्पतालों में आईसीयू जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में 24/7 निगरानी, लिंग-संवेदनशील प्रोटोकॉल, और कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। यौन हिंसा के मामलों में त्वरित सुनवाई और कठोर सजा सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को और मजबूत करना होगा। समाज में लैंगिक समानता और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और कार्यस्थलों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।