हिजाब मामले में मंगलवार 20 सितंबर को आठवें दिन सुनवाई जारी रही। लेकिन इस सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया ने बहुत महत्वपूर्ण मौखिक टिप्पणी की। जस्टिस धूलिया ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट को हिजाब इस्लाम में आवश्यक प्रैक्टिस है या नहीं है जैसी चीजों में नहीं जाना चाहिए था। कर्नाटक सरकार की ओर से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया गया कि कर्नाटक की शिक्षण संस्थाओं में मुस्लिम लड़कियां 2021 तक हिजाब पहनकर नहीं आती थीं।
लाइव लॉ के मुताबिक हिजाब मामले में सुनवाई के आठवें दिन सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने मौखिक टिप्पणी की कि कर्नाटक हाईकोर्ट को आवश्यक धार्मिक प्रथा के सवाल में नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने फैसले में एक छात्रा के टर्म पेपर पर भरोसा किया। हाईकोर्ट को इसमें पड़ना ही नहीं चाहिए था। वो उस छात्रा के मूल पाठ पर नहीं गए। दूसरा पक्ष एक और टिप्पणी दे रहा है। कौन तय करेगा कि कौन सी टिप्पणी है सही?
कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले में सारा स्लिंगर द्वारा लिखित "वील्ड वुमेन: हिजाब, रिलिजन, एंड कल्चरल प्रैक्टिस-2013" नामक एक निबंध का उल्लेख किया गया था कि हिजाब सबसे अच्छी सांस्कृतिक प्रथा है।
बहरहाल, मंगलवार को कर्नाटक राज्य की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट रूप से सहमति व्यक्त की कि हाईकोर्ट आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस के मुद्दे पर जाने से बच सकता था। हालांकि, एसजी ने कहा कि यह याचिकाकर्ता थे जिन्होंने यह तर्क देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि हिजाब एक आवश्यक प्रथा थी।
लाइव लॉ के मुताबिक एसजी एसजी तुषार मेहता ने कहा कि अदालतों द्वारा यह पता लगाने के लिए परीक्षण विकसित किए गए हैं कि कोई प्रथा आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस है या नहीं और सुरक्षा केवल ऐसी प्रथाओं को दी जा सकती है जो जरूरतों को पूरा करती हैं। कुछ टेस्ट ऐसे भी हैं, जिनमें कहा गया है कि वो प्रैक्टिस अनादि काल से शुरू होना चाहिए, धर्म के साथ सह-अस्तित्व होना चाहिए।
लाइव लॉ के मुताबिक सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ईरान का जिक्र भी ले आए। उन्होंने कहा कि ईरान में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं। मेहता ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच के सामने कहा कि वर्दी का मकसद समानता और एकरूपता है और जब किसी को उस सीमा को पार करना होता है, तो उस व्यक्ति का टेस्ट अधिक होगा।
उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां तक कि ईरान जैसे संवैधानिक रूप से इस्लामी देशों में भी सभी महिलाएं हिजाब नहीं पहनती हैं, बल्कि वे इसके खिलाफ लड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि कुरान में इसका उल्लेख है, लेकिन इसे जरूरी नहीं बताया गया है।
मेहता ने यह भी पूछा कि क्या हिजाब का जो लोग पालन नहीं करते हैं उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है या वे इसके बिना अपने अस्तित्व के बारे में नहीं सोच सकते हैं?
इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि वे (याचिकाकर्ता) कह रहे हैं कि हम वर्दी पहनने को तैयार हैं। वे यह नहीं कह रही हैं कि हम वर्दी नहीं पहनेंगे। उन्होंने मेहता से सवाल किया कि अगर कोई बच्चा सर्दियों के दौरान मफलर पहनता है, तो वर्दी में मफलर भी तय नहीं है और क्या इसे रोका जाएगा?
मेहता ने कहा कि नियम कहता है कि धार्मिक पहचान नहीं हो सकती है और वर्दी एक समान होती है, और एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में वर्दी पहननी होती है।
तब जस्टिस हेमंत गुप्ता ने मेहता से पूछा कि क्या चमड़े की बेल्ट वर्दी का हिस्सा है और कोई कहता है कि हम चमड़ा नहीं पहन सकते, क्या इसकी अनुमति होगी?
मेहता ने कहा कि अगर वर्दी में शॉर्ट पैंट है, तो कोई इसे इतना छोटा नहीं पहन सकता कि यह अशोभनीय हो और हर कोई वर्दी और अनुशासन को समझता हो। उन्होंने कहा कि कुछ देशों में महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि वह किसी धर्म की आलोचना नहीं कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कर्नाटक में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा गया है। बुधवार को भी मामले की सुनवाई जारी रहने की संभावना है।
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